पटना। आमतौर पर यह देखा जाता है कि जैसे-जैसे सुविधाएं बढ़ती हैं वैसे-वैसे उसके क्वालिटी में बढ़ोत्तरी होती है पर बिहार क्रिकेट एसोसिएशन में इसका उलटा होता है। अगर ऐसा नहीं होता तो बिहार क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा आयोजित होने वाले घरेलू क्रिकेट का स्तर बढ़ता पर ऐसा नहीं है।
कभी बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) द्वारा आयोजित होने वाला हेमन ट्रॉफी अंतर जिला क्रिकेट टूर्नामेंट के मुकाबले डेज हुआ करते थे। इसके दो डिवीजन होते थे। अंडर-19 के लिए आयोजित होना वाला रणधीर वर्मा क्रिकेट टूर्नामेंट और अंडर-16 के लिए होना वाला श्यामल सिन्हा क्रिकेट टूर्नामेंट भी डेज में हुआ करता था पर वर्तमान हालात यह है कि यह डेज से वनडे पर आ गया है। केवल वनडे पर ही नहीं आया पर इन सभी टूर्नामेंट के मूल रुप को ही समाप्त कर दिया गया।

बिहार क्रिकेट एसोसिएशन ने नए सत्र के लिए अपना जो घरेलू टूर्नामेंट का जो फॉरमेट जारी किया है उसमें इन सभी टूर्नामेंट के मूल रूप खत्म हो जायेंगे। अब ये सारे टूर्नामेंट अंतर जिला नहीं कहला पायेंगे क्योंकि नये घोषित फॉरमेट के अनुसार इन टूर्नामेंटों का चैंपियन जिला की होगी या कोई दूसरी।
नये फॉरमेट के अनुसार मुकाबले 8 जोन में बांट कर होंगे। सुपर लीग में जोन की टॉप 8 टीमें पहुंचेंगी। यह तो जिला की टीम होगी लेकिन शेष 8 टीमों को जो सुपर लीग में इंट्री दी जायेगी वह हर जोन से रेस्ट ऑफ जोन के नाम से बनेगी। यानी अंतर जिला चैंपियनशिप का कॉन्सेप्ट यहीं पर खत्म। शायद इस तरह देश के किसी भी राज्य में उसका घरेलू टूर्नामेंट नहीं होता होगा।

आप बीसीसीआई के ही घरेलू टूर्नामेंट को लीजिए। क्या रणजी ट्रॉफी में हारी हुई टीमों से रेस्ट ऑफ ग्रुप नाम से कोई टीम बनती है नहीं ना। तब बीसीए में ऐसा क्यों?

बीसीए इस नये फॉर्मेट को लेकर तर्क दे रहा है कि ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ियों को कंपीटिशन में भागीदारी होगी। भाई अगर खिलाड़ियों को अगर ज्यादा से ज्यादा मैच की सुविधा उपलब्ध कराना है तो दूसरे नाम अलग से टूर्नामेंट आयोजित करा दें। अलग टूर्नामेंट की बारी आयेगी तो कहेंगे कि पैसा कहां है। पैसा पहले भी नहीं था। बीसीसीआई से अनुदान भी नहीं मिलता पर टूर्नामेंट डेज होता और बेहतर तरीके से होता पर जैसे-जैसे बीसीसीआई से बीसीए की मान्यता पुख्ता होती चली गई, घरेलू टूर्नामेंट खत्म होता चला गया। यह सही है कि कोरोना काल के कारण कुछ परेशानियां पर वर्तमान समय तो सबकुछ ठीक है तो टूर्नामेंट के मूल रुप को खत्म करने का क्या मलतब है, यह समझ से परे है। क्रिकेट जानकार भी इस फॉरमेट से खुश नहीं दिख रहे हैं।