पटना। भारतीय टेबुल टेनिस इतिहास में मंजीत दुआ और कमलेश मेहता बड़े खिलाड़ियों में गिने जाते हैं। इनके खिलाफ जीतने को छोड़िये, खेलना ही अपने आप में बड़ी उपलिब्ध मानी जाती है। बिहार के संदर्भ में देखें तो इसे और बड़े चश्मे से देखा जा सकता है। बिहार के मनोज कुमार के लिए वह क्षण आज भी रोमांच भर देने वाला है जब उन्होंने मंजीत दुआ को कड़े मुकाबले के बाद हरा दिया था। दूसरी ओर दिलीप गांधी ने भी कमलेश मेहता का सामना किया। तब कमलेश से मिले सलाह को दिलीप आज भी भूल नहीं पाये हैं।



बात 1994 की है। तब मनोज कुमार स्टेट बैंक की ओर से अखिल भारतीय स्टेट बैंक टेबुल टेनिस प्रतियोगिता में खेलने इलाहाबाद में गए थे। प्री क्वार्टर फाइनल में मनोज का सामना दिल्ली स्टेट बैंक के मंजीत दुआ से हुआ। मंजीत दुआ तब से एक दशक पहले तक देश के सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों में से एक थे और राष्ट्रीय चैंपियन भी थे। 1980 में वे जर्मनी में प्रोफेशनल टेबलि टेनिस खेलने वाले भारत के पहले खिलाड़ी भी बने थे। मनोज ने यह जानते हुए कि मंजीत का कोई तोड़ नहीं, जमकर सामना किया और 3-2 से मैच अपने नाम कर लिया। उस दिन तो इलाहाबाद में बस मनोज का ही ‘नाम’ था।

पूरे शहर में उन्हीं की चर्चा थी। मनोज इसे याद करते हुए बताते हैं कि पांचवां गेम ड्यूस पर चल रहा था और फैसला किसी के भी पक्ष में भी जा सकता था। लेकिन मुझे जीत मिली। 20 साल तक बिहार के लिए कई बार राष्ट्रीय प्रतियोगिता में खेल चुके मनोज ने कहा कि जीतने के बाद मुझे मंजीत से शाबाशी मिली। यह पूछने पर कि आखिर उस दिन आपने मंजीत को कैसे हरा दिया, जवाब में मनोज का कहना है उनकी टॉप स्पिन काफी मजबूत थी। मैंने अपने ड्राइव के जरिये उनके टॉप स्पिन पर काबू पाया। मेरा स्ट्रोक हमेशा सटीक रहा। मैंने उनकी सर्विस का बढ़िया जवाब दिया और उन्हें मूव कराकर मैच निकाल लिया। मनोज 1991 में बिहार चैंपियन रहे। दो बार उपविजेता और कई बार सेमीफाइनल तक पहुंचे।

दूसरी ओर बिहार टेबुल टेनिस के पर्याय समझे जाने वाले दिलीप गांधी का मानना है कि कमलेश मेहता जैसे खिलाड़ी के सामने अंक हासिल करना आसान नहीं था। दूसरे शब्दों में जब तक कमलेश नहीं चाहते, किसी को प्वाइंट नहीं मिल सकता था। 1990 में जब पटना में ईस्टर्न इंडिया चैंपियनशिप का आयोजन हुआ था तब दिलीप गांधी का एक बार कमलेश मेहता से सामना हुआ था। तब यह मैच कमलेश ने सीधे गेमों में जीत लिया था। लेकिन दिलीप ने पहले गेम में कमलेश को ‘नेट टू नेट’ टर दी थी। आज लगभग 30 साल पहले के मुकाबले को याद करते हुए दिलीप गांधी कहते हैं कि कमलेश की टॉप स्पिन और पंच अपने आप में किसी को हराने का मुक्ष्य हथियार था। उस दिन भी वैसा ही हुआ। मैं लगातार गलती करता रहा। यह पूछने पर कि मैच के बाद आपको कमलेश से कैसी प्रतिक्रिया मिली, पांच बार के राज्य चैंपियन दिलीप ने जवाब में कहा कि उन्होंने और मेहनत करने को कहा। दिलीप का मानना है कि कमलेश मेरे आदर्श खिलाड़ी रहे हैं और मैं हमेशा उनका सम्मान करता रहा हूं।
साभार : राष्ट्रीय सहारा (पटना)