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Saturday, April 20, 2024

बिहार शतरंज की पांचवीं पीढ़ी की कहानी-कुछ आंखों देखी और कुछ सुनी जुबानी

अरविंद कुमार सिन्हा, फ़िडे मास्टर
पटना।
गत चौथी पीढ़ी के अंतिम भाग में हमने देखा था कि किस  प्रकार खान साहब की अनुपस्थितिमें हुये हाजीपुर के चुनाव में अजीत कुमार सिंह, सचिव और गोपाल प्रसाद कोषाध्यक्ष बने |तब ऐसा लगा कि अब सब कुछ शांति के साथ चलेगा, पर ऐसा हुआ नहीं| शायद इतनी सरलता से सत्ता काहस्तांतरण, जिसमें सत्ता पक्ष को कुछ भी हासिल न हो, आसानी से पचा पाना मुश्किल था |

बहरहाल,अजीत कुमार सिंह के नेतृत्व में नई कार्यकारिणी द्वारा बिहार शतरंज संघ का नया संविधान लागू किया गया जो कुछेक अंश को छोड कर, भारतीय महासंघ के संविधान का प्रतिरूप था|इस नए संविधान में  चेस क्लब और एकाडेमी को भी जिला संघ के समान ही मताधिकार आदि प्राप्त थे, सिर्फ निबंधन शुल्क दोगुना और खिलाड़ी कोटा आधा था | उसके साथ ही, महासंघ की तर्ज पर बिहार संघ का वित्तीय विनियम भी बना, जिसमें विभिन्न प्रकार के शुल्क , प्रतियोगिता के लिए बिड फी , पारितोषिक राशि आदि निहित थे |परंतु,राज्य प्रतियोगिता के आयोजन के साथ बिहार टीम के राष्ट्रीय प्रतिभागिता के लिए रियायती रेल-भाड़ा, प्रवेश शुल्क आदि का मौद्रिक भार पूर्ववत, अर्थात आयोजक जिला संघों पर ही रहा |

खान साहब के कार्यकाल में जिन आयु वर्ग की प्रतियोगिताओं का आयोजन बाकी था, उनके आयोजन तथा राज्य की टीम की राष्ट्रीय प्रतिभागिता के पूरा होने के बाद अगले वर्ष 2006 की राज्य प्रतियोगिता अनिल सुलभ और धर्मेन्द्र कुमार के ‘चेस ट्रैक’के बैनर तले, इंडियन इन्स्टीच्युट ऑफ हेल्थ एडुकेशन एंड रिसर्च, बेउर पटना में आयोजित हुई, जिसके विजेता बने प्रमोद कुमार सिंह जबकि दूसरे और तीसरे स्थान पर आए राजकुमार चौहान तथा सौरव रूप| राजकुमार चौहान और सौरव रूप नई पीढ़ी के प्रतिभावान खिलाड़ियों के रूप में सामने आए थे|उसी प्रकार भागलपुर में मुस्लिम माईनोरिटी कॉलेज में सम्पन्न 2007 की राज्य प्रतियोगिता के पहली बार विजेता बने पटना के विपल सुभाषी, दूसरे स्थान पर आए बेगूसराय के प्रेमवर्धन जबकि तीसरे स्थान पर आए मुजफ्फरपुर के कुमार गौरव |आप जान लें कि मुजफ्फरपुर के कुमार गौरव आज के दिनों में चर्चित अररिया/पूर्णिया के कुमार गौरव नहीं हैं | कुमार गौरव और प्रेमवर्धन की गिनती कुछेक शास्त्रीय शतरंज खेलने वालों में होती है | आयु वर्ग की राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर चुके  कुमार गौरव ने बाद के दिनों में बिहार राज्य की प्रतियोगिताओं से नाता तोड़ लिया |इन तीनों युवा खिलाड़ियों की तिकड़ी का एक साथ टीम में चुना जाना बिहार शतरंज के लिए शुभ संकेत था |

उसी प्रकार 2008 की राज्य प्रतियोगिता खगड़िया में पहली बार आयोजित की गई जिसके विजेता के रूप में छपरा से खेल रहे आशुतोष कुमार, दूसरे,  तीसरे और चौथे स्थान पर क्रमश: कुणाल, सौरव रूपतथा प्रमोद कुमार सिंह ( सभीपटना) आए | आशुतोष कुमार का प्रथम बार विजेता बनना तथा नए खिलाड़ियों की दस्तक बिहार शतरंज मेबढ़ रही चुनौतियों की ओर इंगित कर रहा था, वहीं पी के सिंह जैसे पुराने खिलाड़ियों की ठोस तैयारी और अपार अनुभव की महत्ता भी बता रहा था |

यहाँ पर आशुतोष कुमार की चर्चा दो कारणों से जरूरी है | पहली तो यह कि आशुतोष को भी संतोष सिन्हा और जितेंद्र चौधरी की त्तरह नौकरी  नहीं मिली और न शतरंज से आय अर्जन का उपयुक्त अवसर | नतीजा यह है कि आशुतोष भी बिहार से बाहर जाकर प्रशिक्षण-सेवा के माध्यम से जीवन यापन कर रहे हैं |प्रसंगवश आपको यहीं बता दें कि  आशुतोष कुमार ने अररिया/ पूर्णिया के नामचीन भाई-बहनों  कुमार गौरव, सौरभ कुमार और गरिमा गौरव को उनके घर पर रह कर शतरंज का गहन प्रशिक्षण दिया है, जिनकी उपलब्धियों की गूंज से गौरवान्वित है पूरा प्रांत |सौरभ कुमार और कुमार गौरव ने बाद के दिनों में भारत के अंडर -9 तथा जूनियर (अंडर19) के विजेता बने और दोनों को अंतर्राष्ट्रीय मास्टर का नॉर्म भी मिल चुका है जिसकी चर्चा की कालावधि आना बाकी है |

प्रसंगवश,खगड़िया जिला संघ की मान्यता तो वहाँ के मशहूर खिलाड़ी सुमन कुमार ने खान साहब के समय ही ले रखी थी और वे राज्य प्रतियोगिताओं में भाग भी लेते थे।पर वहाँ से नियमित तौर पर अन्य आयु वर्ग में खिलाड़ी आते नहीं थे, सो खगड़ियाजिला शिथिल ही रहा|सुमन कुमार ने 1988 की राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता, बीकानेर में बिहार का प्रतिनिधित्व भी किया था। बाद मेंबिपलव रणधीर, जो मुंगेर जिला संघ के खिलाड़ी और सचिव थे, ने गृह जिला लौट कर खगड़िया जिला का पुनर्गठन किया, 2006 में (चर्चावधि में ) सचिव के रूप में राज्य संघ से मान्यता ली, और 2008 में राज्य प्रतियोगिता आयोजित की |

अब लगे हाथ 1990 के दशक में उभर रहे उन प्रतिभावान खिलाड़ियों का जिक्र करते चलें,जिन्होंने जूनियर वर्ग मे धूम मचा रखी थी |पटना के समीर कुमार तो दो तीन बार बिहार जूनियर विजेता रह कर बिहार का प्रतिनिधित्व किया और वर्तमान चर्चावधि मे अपने गृह जिला जहानाबाद के सचिव बने और दो-तीन राज्य रैपिड प्रतियोगिताएं भी आयोजित कीं | बेगूसराय के मानव कुमार और दीपक कुमार भी उसी दौर के खिलाड़ी थे जिन्हे बिहार का राष्ट्रीय जूनियर मे प्रांत का प्रतिनिधत्व करने का गौरव प्राप्त है | दीपक कुमार तो बाद में  राज्य सीनियर वर्ग में बिहार से चयनित भी हुये और वर्तमान चर्चावधि में बेगूसराय जिला संघ के सचिव बने और दो-तीन  राज्य टीम प्रतियोगिता का आयोजन भी किया | अंत में,हम बड़हिया के श्याम सुंदर झा को भी याद कर लें, जिन्होंने 1988 की राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता, बीकनर में राज्य का प्रतिनिधित्व किया था | ग्रामीण रहन-सहन और सौम्य स्वभाव के धनी झा जी को फिर राज्य प्रतियोगिता में देखा नहीं गया |

अजीत कुमार सिंह ने  बिहार शतरंज को ऊंची छलांग दिलाने का प्रयास भी किया जब 2007 में ठाकुर प्रसाद स्मारक अखिल भारतीय खुली अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग शतरंज प्रतियोगिता, पटना में कराने की बात तय की |[ स्व ठाकुर प्रसाद, बिहार के पूर्व मंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के पिता ]  प्रतियोगिता के आयोजन संबंधी स्वीकृति और प्रस्तावित तारीख भी उनकी धर्मपत्नी से मिलकरउनकी इच्छानुसार,तय की ताकि 14 जनवरी (स्व ठाकुर की जन्मतिथि) को या तो उद्घाटन सो या समापन|प्रतियोगिता का आयोजन भी स्व ठाकुर प्रसाद न्यास भवन का हॉल में होना था |तदनुसार महासंघ को प्रतियोगिता की मान्यता हेतु महासंघ के पास निर्धारित शुल्क– जिसमें पुरस्कार राशि का 10 प्रतिशत एवं रेटिंग मान्यता के लिए फिडे का निर्धारित शुल्क 15 हजार शामिल था, के साथ आवेदन दिसंबर 2006 में ही भेज दिया गया|परंतु महासंघ की ओर से बताया गया कि प्रतियोगिता के आयोजन के लिए जनवरी माह में तारीख नहीं मिल पाएगी, सो बाद की कोई तारीख बतायी जाय |बताते हैं कि जनवरी महीने में भरत सिंह चौहान पार्श्वनाथ शतरंज का आयोजन करते थे, इसलिए जनवरी की कोई तारीख उत्तरी भारत के इलाके में किसी आयोजक को नहीं दी जाती थी|जन्मतिथि की बात थी, जिसे छोडना यहाँ आयोजकों को मंजूर नहीं था |नतीजा यह रहा कि प्रतियोगिता को महासंघ की मान्यता नहीं मिली | और तो और,जमा किए गए शुल्क की वापसी के लिए भी कई निवेदन के बाद हुई | कहना न होगा कि बिहार के लिए यह ऐतिहासिक शुरूआत होती जिसका आयोजन हर वर्ष किए जाने से राज्य संघ और उत्तरी भारत को एक और नियमित प्रतियोगिता खेलने को मिल जाती |

आईए अब बिहार शतरंज की उपर से शांत पर भीतर से उफान खाती राजनीति की ओर नजर डालें जिसकी भूमिका हाजीपुर के चुनाव में खान साहब के अनुपस्थिति ने ही लिख दी थी |सीधी बात तो यह है किखान साहब बिहार का चुनाव घोषित ही क्यों करते जब वे जानते कि उन्हें हटाने की योजना के साथ भरत सिंह चौहान आने वाले हैं |बाद में कहते भी थे कि उन्हें धोखा मिला या अंधेरे में रखा गया था |इतना तो मानना ही होगा कि खान साहब की निष्ठा कोया के साथ ही रही|उधर उमरकोया ने भी हार मानी नहीं थी और केरल,तमिलनाडु तथा सुप्रीम कोर्ट तक कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे |इधर 2006 फरवरी में ही अरविंद का स्थानांतरण गुवाहाटी हो गया| शायद इसी के एक दो माह बाद खानसाहब-राजीव सिन्हा समर्थकों ने हाजीपुर के चुनावको असंवैधानिक बताते हुये विद्रोह का बिगुल फूँक दिया |

मुजफ्फरपुर में खान-राजीव खेमे के सारे जिला संघ आए, जो स्वाभाविक रूप से बहुमत में रहे होंगे |हाजीपुर के चुनाव को गलत तथा मुजफरपुर के चुनाव को सही ठहराते हुये पूरी कार्यकारिणी  गठित कर ली जिसके सचिव बने वाई पी श्रीवास्तव|अजीत खेमा भी कहाँ चुप बैठने वाला था |  विरोधी खेमे के कुछ जिला संघ  हों या अपनी कार्यकारिणी के सदस्य, विरोधियों के पक्ष में आवाज उठाई नहीं कि वह,दूसरे ही दिन बाहर | प्रतिपक्ष की कार्रवाई तथा उन्हें हटाने का सिलसिला लगभग आठ-दस दिनों तक चला जिनमें जिलाजिला संघों में पटना और मुजफ्फरपुर प्रमुख नाम हैं |कहते है कि उन दिनों पटना और मुजफ्फरपुर के अखबार राज्य  संघ में गुटबाजी की खबरों तथा जबाबी कार्रवाई के समाचारों से छाए रहते | दोनों पक्ष  अपने अपने दावों के साथ महासंघ को लिखते भी,पर महासंघ तो पहले से मन बनाए बैठा था, सो महासंघ समर्थित अजीत खेमे को मान्यता बनी रही | उधर कोया को भी कोर्ट से कोई उल्लेखनीय सफलता नहीं मिल पा रही थी जिससे खान-राजीव  खेमे को थोड़ी राहत होती |बीतते वक्त के साथ धीरे-धीरे स्थिति सामान्य  होती चली गई |  इस बीच गोपाल प्रसाद की जगह राज्य संघ के नए कोषाध्यक्ष हरीनाथ शर्मा बना दिये गए थे और उनके पटना जिला संघ के सचिव पद पर अब राकेश रंजनकाबिज हो गये थे | मुजफ्फरपुर में नए सचिव के रूप में  संजय वर्मा को मान्यता दी गई | नए जिला संघ भी बनाए गए जिसमें रोहतास, मधुबनी और जहानाबाद प्रमुख है |साथ ही छपरा, बेगूसराय और मुजफ्फरपुर में चेस एकाडमी  को भी मान्यता दी गई जिनके बैनर तले (छपरा को छोड कर ) राज्य प्रतियोगिताओं के आयोजन भी हुये |

आपको याद हो कि हाजीपुर चुनाव से घंटे भर पहले तक सर्किट हाउस,पटना में भरत सिंह चौहान द्वारा अरविंद से राज्य संघ के भावी सचिव के लिए एक एक कर नाम मांगे और काटे जाने के बाद जब अरविंद ने अजीत कुमार सिंह का नाम दिया,तब जाकर सर्किट हाउस के कमरे में उपस्थित खान-राजीव खेमे के प्रतिनिधि माने थे | उसी प्रकार अरविंद-अजीत समर्थक खेमा भी बाहर जमा था जहां यह तय हुआ था कि साल- छ्ह महीने में अरविंद को सचिव पद दे दिया जाएगा |तदनुरूप,जब अरविंद गुवाहाटी से वापस आए तो अक्तूबर 2008 में अजीत सिंह ने अपना त्यागपत्र देते हुये अरविंद को सचिव पद भार दिये जाने तथा स्वयं अरविंद के जगह उपाध्यक्ष पद पर नियुक्त किए जाने का अनुरोध-पत्र अध्यक्ष संजीव कुमार को भेजा |अध्यक्ष ने अपनी स्वीकृति देते हुये महासंघ को लिखा और इस प्रकार अरविंद राज्य संघ के सचिव बने| तीन चार महीने बाद अगले साल 2009 में राज्य संघ काछपरा में चुनाव हुआ जिसमें विजय प्रकाश,आई ए एस, अध्यक्ष, अरविंद कुमार सिन्हा , सचिव तथा मनोज कुमार वर्मा’संकल्प’ कोषाध्यक्ष चुनेगए |

बिहार शतरंज ने अपनी स्थापना 1968 से 2008 तक (40 वर्षों ) की यात्रा में कई झंझावात झेले, विभाजन का दंश भी सहा, पर यह गौरव की बात है कि वर्णित पात्रों के बीच चाहे जितनी भी खेल वा राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता/ महत्वाकांक्षा रही हो पर,एक पल भी ऐसा नहीं आया है जब आपसी सम्बन्ध, स्नेह, आदर और सम्मान में लेश मात्र भी अंतर आया हो | आवेश के क्षण की एक-दो घटनाएँ भी है, पर वह मर्यादा की सीमा तक न छू पायीं |यहाँ तक कि बाद में अपनी शर्मिंदगी को खुले मन से स्वीकारा भी गया | धोखा, फरेब, जालसाजी और आरोप-प्रत्यारोप की बात तो कल्पना से भी परे रही | पाला बदलने वाले पात्र भी रहे,परंतु बिना किसी को गलतफहमी में डाले | निश्चित रूप सेइसका श्रेय पिछली पीढ़ी से मिली शालीन सांस्कृतिक विरासत को जाता है |

अब तक की कहानी में सिर्फ उन्हीं घटनाओं और उनसे जुड़े पात्रों की चर्चा है जिनका तथ्यपरक संबंध बिहार शतरंज से है और जिसके बिना कहानी का तारतम्य का बना रह पाना मुश्किल था| आगे की कहानी अरविंद के कार्यकाल से जुड़ी है ,जिसे स्वयंआगे बढ़ाना उचित नहीं होगा क्योंकि उसे शायद कोई और लिखना चाहे | अतएव, बिहार शतरंज की लड़खड़ाती-संभलती लंबी यात्रा की कहानी को फिलहाल विराम देने से पूर्व, भविष्य की शुभकामनाओं सहितयदि भूलवश कुछ नाम छूट गए हों, या किन्हीं की भावनाओं को कोई ठेस लगी हो,तो उसके लिए लेखक हृदय से क्षमाप्रार्थी है |

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