पटना। बिहार में एक कहावत चर्चित है कि ‘‘हर साल की भांति-इस साल भी”। भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) द्वारा सत्र 2022-23 के लिए सभी आयु वर्गों के लिए घरेलू टूर्नामेंटों की शुरुआत की जा रही है।
बीसीसीआई द्वारा एक अक्टूबर से महिला अंडर-19 टी20 क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन देश के कई हिस्सों में किया जा रहा है। इसी के साथ मुश्ताक अली ट्रॉफी, सीनियर वीमेंस टी20, वीनू मांकड़ ट्रॉफी की शुरुआत भी अक्टूबर महीने से होनी तय है। जब-जब बीसीसीआई द्वारा मैचों का आयोजन होता है तो बिहार से एक अलग ही भोंपू बजने शुरू हो जाते हैं मानो बिहार बीसीसीआई का एक अलग अंग हो। बिहार से बड़ा प्रदेश उत्तरप्रदेश में भी इस तरह की बातें सुनने को नहीं मिलती है।
बीसीसीआई का घरेलू सत्र जैसे शुरू होता है बिहार में चयन को लेकर आपस में सिर फुटव्वल शुरू हो जाता है। मीडिया और सोशल मीडिया में बिहार क्रिकेट से जुड़े लोगों द्वारा न जाने कौन सी प्रसिद्धी प्राप्त करने के लिए तरह-तरह के दावे किये जाते देखे जाते हैं।
बिहार क्रिकेट के वैसे लोगों को रणजी ट्रॉफी, मुश्ताक अली ट्रॉफी और विजय हजारे ट्रॉफी में भाग लेने वाली बिहार टीम के प्लेयरों के चयन को लेकर विशेष चिंताएं बनी रहती हैं और इन्हीं टीमों को अपने-अपने पाले में सौ प्रतिशत कर लेने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा देते हैं और बीसीसीआई भी अंत में हमेशा कुछ खास लोगों के प्रभाव में आकर अपना पिंड छुड़ा लेती है। यह सिलसिला बिहार में वर्षों से चला आ रहा है। इस पर विराम लगने का नाम अबतक नहीं लग रहा है।
बिहार में चर्चा का बाजार गर्म है कि बिहार क्रिकेट को सुधारने का दावा करने वाले ऐसे लोगों को उक्त तीनों टीमों को छोड़कर बाकी टूर्नामेंटों में भाग लेने वाली अन्य बिहार की टीमों की चयन प्रक्रिया में आखिर दिलचस्पी क्यों देखी जाती है? और बाकी टीमों के लिए बीसीसीआई से चयनकर्ता क्यों नहीं बुलवाया जाता है। लोगों का कहना है कि इसका सीधा अर्थ है कि सही में कोई समाज सुधारक राजा राममोहन राय नहीं बनना चाहता बल्कि किसी तरह बार-बार अपनी गोटी लाल करना चाहता है। ऐसे लोग एक सफल कव्वाल की तरह पूरी तरह सफल होते अबतक दिखते रहे हैं।
लोगों का मानना है कि बार-बार ऐसे लोगों को बिहार बर्दाश्त नहीं कर सकता है। वो दिन दूर नहीं जब ऐसे लोगों पर किसी भी समय पूर्ण विराम लगता दिखेगा। बिहार क्रिकेट जगत में चर्चा का बाजार गर्म है कि बीसीसीआई को इस मामले में एकरुपता बरतनी चाहिए और अगर टीम चयन में गलत हो रहा है तो बिहार के सभी आयु वर्गों के टीमों के चयन में एक मापदंड अपनाना चाहिए।