अरविंद कुमार सिन्हा, फ़िडे मास्टर
पटना। आपको याद हो कि बिहार शतरंज की पहली पीढ़ी की कहानी की कालावधि को हम कोई दस वर्ष का मान कर चले थे और चर्चा को 1972-73 के आसपास छोडा था|दूसरी पीढ़ी की कहानी चूंकि मुख्य विषय से इतर, और ढेर सारी घटनाओं से पटी है,हम इसे दो भागों में विभाजित करते हुये चलेंगे| आइये अब हम गत चर्चा की कालावधि के अंतिम छोर को पकड़ते हुये कहानी को आगे बढ़ाते हैं |
शायद ही कोई ऐसा मिले जिसे 1972 के बॉबी फिशर–बोरिस स्पासकी के बीच चलीउस चर्चित विश्व शतरंज चैम्पियनशिप की याद न हो जिसने विश्व भर में शतरंज की लोकप्रियता को हठातशिखर पर ला दिया था |तब विश्व भर में शतरंज जैसे बौद्धिक खेल पर रूस का वर्चस्व था| दशकों बाद इसे चुनौती देने उठ खड़ा हुआ था अमेरिका का 28 वर्षीय युवक रॉबर्ट जेम्स फिशर जिसे बोंबी फिशर भी कहते हैं|फिशर द्वारा तत्कालीन विश्वविजेता रूस के बोरिस स्पासकी को चुनौती देने की पात्रता प्राप्त करने के क्रम में क्वार्टर और सेमीफनल चक्रों में डेनमार्क केबेंट लार्सन और रूस के मार्क टायमानोव को 6-0 से पराजित करना असंभव सी उपलब्धि थी | ऊपर से बाबी फिशर के नखरे और बोरिस स्पास्की के शांत-शालीन व्यवहार के चर्चे दुनियाँ भर के समाचारपत्रों और रेडियो में प्रमुखता पाने लगे|उस दौर में रूस और अमेरिका विश्व की दो महाशक्तियाँ थीं और इस चुनौती ने सिर्फ शतरंज के खेल से कहीं आगे दो महाशक्तियों के वर्चस्व के टकराव का रूप ले लिया था |बॉबी फिशर ने जिस अप्रतिम खेल-कौशल का प्रदर्शन करते हुएविश्व खिताब जीता उसे देखते हुये फिशर को ओपनिंग का मास्टर, मध्य खेल का जादूगर और अंत खेल की मशीन माना जाने लगा |कहते हैं कि इसी के बाद दुनियाँ में लाखों लोगों ने शतरंज सीखा | बिहार का जनमानस भी,उत्सुकतावश शतरंज से जुड़ने लगा |

इसी साल गोलकपुर में बड़ी-बड़ी आँखेँ,साँवला रंग, गोल, चौड़े मुंह वाला लंबा सा किशोर सुबह -सुबह बैग लिए शतरंज संघ के सचिव डा जमुआर का पता पूछता फिर रहा था |किसी ने उसे ए आर खान केघर गोलकपुर पहुंचा दिया |वह किशोर राष्ट्रीय जूनियर खेलने के लिए बिहार संघ का अनुशंसा पत्र पाने के प्रयोजन से आया था | चूंकि बिहार में जूनियर प्रतियोगिता की शुरूआत नहीं हुई थी,जमुआर साहब ने उसे वह पत्र सहर्ष दे दिया |1972 की राष्ट्रीय जूनियर में पहली बार बिहार का प्रतिनिधित्व करने वाला वह किशोर और कोई नहीं, राजा रविशेखर था| हाँ, वही राजा रविशेखर जिसे पटना के शतरंज प्रेमियों ने 1975 में तमिलनाडु से राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता का विजेता बनते और राष्ट्रीय ए प्रतियोगिता में धुरंधरों को हराते देखा था |पिता के टाटा से रिटायर होने के बाद उनका परिवार अपने गृह प्रांत तमिलनाडु लौट गया था | तमिलनाडु में राज्य जूनियर का चयन हो चुका था |रविशेखरजब 1974 की राष्ट्रीय जूनियर प्रतियोगिता, बैंगलोर में अरविंद से मिले तो सबसे पहले खान साहब और जमुआर साहब का कुशल-क्षेम पूछते हुये बताया कि खान साहब ने उन्हें नहाने के लिए कुएं से स्वयं बाल्टी से पानी भर कर दिया था|

शायद इसके बाद ही गोलकपुर के नरेंद्र प्रसाद जो खान साहब के साथ क्रेसेंट क्लब से जुड़ कर शतरंज में आए |नंदा जी ने बाद में अपने पिताजी के स्मृति में वार्षिक तौर राजेन्द्र प्रसाद स्मारक कई प्रतियोगिताएं भी कराईं | उनकी कर्मठता उन्हें राज्य संघ में खीच लाई और इस प्रकार एक युवा आयोजक बिहार शतरंज से जुड़ा |
पटना सहित बिहार के अन्य जिले की अनेकों प्रतिभाएँ एक-एक कर मुख्य धारा में समाती गईं जिनमें मोकामा के सुरेश प्रसाद सिंह, पटना के अजीत कुमार सिंह (1975 के बिहार चैंपियन),डा सुरेश चन्द्र लाल(1976 के बिहार चैंपियन ), प्रभु नारायण लाल,अरविंद सिन्हा,कृष्ण चन्द्र, वसीम अख्तर, अभय कुमार सिन्हा, कृष्णा प्रसाद, प्रेम कुमार, मो रेयाजुद्दीन, अब्दुल हसीब, मो हसनैन, अब्बास निजामी,वीरेंद्र कुमार,बिजय कुमार, मो इम्तियाज़,ड़ी के सिंह, अरवल के प्रेम लाल सिंह, भगवान दत्त सिंह, बोकारो स्टील सिटी से आनंद कुमार, हेमचन्द्र झा, कृष्णा प्रसाद,जैसे प्रमुख नाम शामिल है जिनमें से अधिकांश ने राज्य का प्रतिनिधित्व कर राज्य का गौरव बढ़ाया|परंतु,1975 की दो राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के आयोजन से बढ़ी लोकप्रियता का युवा खिलाड़ियों एक बड़ा वर्ग,विशेष कर कॉलेज और विश्वविद्यालय के खिलाड़ी, शतरंज में आने लगे जिनमेंसुनील चंद्र माथुर, गोपाल कृष्ण सिन्हा, सुशील कुमार सिन्हा,पाण्डेय एस के सहाय, सुजय कुमार राय,अश्विनी कुमार श्रीवास्तव, कल्याण मोहन जयपुरियार (1982 के बिहार विजेता) आदिके नाम प्रमुख रूप से लिए जा सकते हैं |युवा छात्रों में पनप रही शतरंज में कुछ अच्छा करने का उत्साह और सीखने की लगन मानो बिहार शतरंज के लिए सफलता के नए सोपान गढ़ रहा था|

बिहार में जूनियर प्रतियोगिता की शुरूआत 1973 में हुई जबकि सब-जूनियर प्रतियोगिता का आरंभ 1975 में हुआ | जब राष्ट्रीय ए प्रतियोगिता अपने अंतिम चरण में थी, उसी जगह सब-जूनियर का आयोजन किया गया ताकि नन्हें खिलाडीयों को देश के सर्वोत्तम खिलाड़ियों से परिचय भी हो जाय उनका आशीर्वाद भी मिले | उस राज्य प्रतियोगिता से युसुफ हसन, प्रमोद कुमार सिंह और नवीन उपाध्याय जैसे तीन अत्यंत प्रतिभाशाली खिलाड़ी निकल कर आए |[युसुफ हसन और प्रमोद कुमार सिंह दोनों ने 1982 की राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता, अगरतला में क्रमश: 11वां और 14वां स्थान प्राप्त कर राष्ट्रीय ए प्रतियोगिता के लिए क्वालिफ़ाई किया था|उसी प्रकार,नवीन उपाध्याय ने भी राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर देश के नामचीन खिलाड़ियों में जगह पायी|1981 में नवीन बिहार छोड़ कर बैंगलोर में रह कर खेलने लगे,वहाँ से सुधाकर बाबू ( बाद में अंतर्राष्ट्रीय मास्टर) के कोच बन कर विदेश भी गए)

पटना में भी कई खेल अड्डे बने क्योंकि शंभु बाबू का क्लीनिक तो देर संध्या में ही उपलब्ध था | 1974 से ही अजीत जी का नाम हो चुका था सो भिखना पहाड़ी का उनका पंडुई लॉज खेल का नया अड्डा बन गया | दिनभर खिलाड़ियों का जमघट, पीरबहोर और आस-पास के खिलाड़ी जो फूटपाथ पर खेला करते थे, आने लगे |बाद के दिनों में सुजय कुमार राय के बिहार जूनियर विजेता बनने के बाद उनके पिता हीरा बाबू ने अपने घर, जहां पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कार्यालय हुआ करता था, पाटलीपुत्र चेस क्लब के लिए जगह दे दी जहां मुख्यत: खेल अभ्यास होता था और उस के बैनर तले, प्रतियोगिताएं भी|अगले वर्ष यानि 1976 की राज्य प्रतियोगिता में कुछ और नई प्रतिभाएंनिखर कर निकलीं जिनमें भागलपुर के जियाउदद्दीन अहमद, पटना सिटी के प्रभु दयाल हरलालका, आनंद मोहन वर्मा, बोकारो के वी एन सिंह,जैसे नाम प्रमुख हैं जिन्होंने बिहार का प्रतिनिधित्व भी किया | वी एन सिंह, जितेन्द्र कुमार,योगेंद्र उपाध्याय, नरेंद्र कुश्तवार जैसे अपने खिलाड़ियों के श्रेष्ठ प्रदर्शन से उत्साहित होकर,बोकारो स्पोर्ट्स क्लब ने 1977 में राज्य प्रतियोगिता का शानदार आयोजन किया था | उसी समय से रांची के अनिल कुमार सिन्हा, के पी आर नायर ,किशोर कुमार सिंह जैसे खिलाड़ी पहचाने नाम थे |इसी कड़ी में डाक विभाग के अधिकारी एम एस एस सुब्रहमणियम भी श्रीवास्तवजी के साथ जुड़े जिन्होने 1978 में दरभंगा की राज्य प्रतियोगिता में चैंपियन बन कर सबको चौंका दिया|
अब तक राज्य संघ के जितने सचिव बने वे सभी पटना विश्विद्यालय के प्रोफेसर थे, सो काफी योग्य और शतरंज प्रेमी थे परंतु वे नियमित खिलाड़ी नहीं थे | इस परिपाटी को बदलते हुये पहली बार नियमित खिलाड़ियों के सचिव बनने का सिलसिला शुरू हुआ | आखिरकार, खेल तो खिलाड़ियों को ही संभालना था !उनमें पहले थे डा एस सी लाल (1976-78) जो प्राध्यापक तो थे पर उससे कहीं बढ़कर खिलाड़ी थे | उनके ही कार्यकाल में पहली बार महिला शतरंज प्रतियोगिता का आयोजन साईन्स कॉलेज में हुआ जिसके प्रमुख सहयोगी थे आर एन सिन्हा |बी के श्रीवास्तव (1978-80) ने भी भी अधिकाधिक आयोजन पर काम किया और उनके कार्यकाल में पहली बार शतरंज क्लब भी खोले गए |मगध चेस क्लब को मान्यता मिली और जिसके बैनर तले बिहार में पहली बार अखिल भारतीय खुली प्रतियोगिता का सफल आयोजन हुआ, और बाद में पाटलीपुत्र चेस क्लब खुला |
शायद आपको खडिलकर बहनों (रोहिणी,जयश्री और बसंती) की याद हो ,जिन्होंने वर्षों भारतीय महिला शतरंज पर राज किया और भारत का प्रतिनिधित्व किया | नासिर अली जिन्होंने दशकों तक भारत का प्रतिनिधित्व किया, अविनाश अवाटे जो उस वक्त (1979) के राष्ट्रीय ए खिलाड़ी थे, सहित अनेकों नामी गिरामी खिलाड़ी मगध चेस क्लब द्वारा आयोजित अखिल भारतीय खुली प्रतियोगिता में खेले थे|अरविंद (1980-82)के कार्यकाल में रफ्तार ने और जोर पकड़ा और लगभग प्रतिमाह कम से कम एक प्रतियोगिता का आयोजन होने लगा |तब बिहार में माला और मंजुला तेतरवे बहनों का नाम था जिन्हें नैनू सिंह से टक्कर मिली। नैनू सिंह को राष्ट्रीय महिला ए प्रतियोगिता खेलने वाली बिहार की पहली खिलाड़ी माना जाता है |नियमित खिलाड़ियों के सचिव बन कर आने से इन चार-पाँच वर्षों में जो मुख्य उपलब्धि देखने को मिली,वह थी ताबरतोड आयोजनो से खेल-अवसर में गुणात्मक वृद्धि |पहले जहां मात्र दो ही खुली प्रतियोगिताएं (एस एस पी वर्मा, क्रेसेंट क्लब) होतीं थीं,1981 आते-आते आठ- दस हो गईं|खेल में प्रतिद्वंद्विता बढ़ी, खिलाड़ी पुस्तकें पढ़कर तैयारी करने लगे और खेल कौशल का स्तर बढ़ता गया|

1976 में जमशेदपुर से आये वर्गीज़ कोशी जिन्होनें शतरंज के लिए तब घर छोड दिया था |छ: फुटे कोशी का खर्चा उठाते थे उनके मित्र एम ए वेणुगोपाल |आय के अन्य उपाय न थे,पर पटना के प्रेमियों ने हाथों-हाथ लिया, जिनमें श्रीवास्तव जी और अजीत जी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है | आनंद मोहन वर्मा से मिलकर जोड़ी बनी और ‘लंबू-छोटू’ की इस जोड़ी ने चन्दा मांग-मांग कर कई-कई प्रतियोगिताएं आयोजित करानी शुरू कर दीं |पाण्डेय एस के सहाय, अश्विनी श्रीवास्तव की जोड़ी भी कुछ कम न थी,जिसने नेहरू युवा क्लब को जोड़ कई मैच कराये | मैच कराने में आर एन॰ सिन्हा का मगध चेस क्लब और सुजय कुमार राय का पाटलीपुत्र क्लब भी का भी योगदान रहा| पी एन शर्मा जी के मित्र कुमार नारायण शर्माजी का साथ तो पहले से था ही जिनके कदमकुआं वाले घर में बाहर से आए खिलाड़ी कई अवसरों पर ठहरे थे |उनके पुत्र अजय नारायण शर्मा को खान साहब ने जोड़ लिया,आर एन शर्मा मेमोरियल के नाम पर मैच कराये|तब पटना विश्विद्यालय के कॉलेजों में मैच हुआ करते थे | मनचाहे माहौल से मुदित खिलाड़ी,विशेष कर पटना के,नये उत्साह से खेलने लगे और उनके खेल-कौशल में उतरोत्तर निखार आता गया | [ 1980 में कोशी ने बिहार छोड दिया ]
और तब आया बिहार शतरंज को अभूतपूर्व सफलता दिलाने वाला साल1978 और फिर 1979, जिसकी राष्ट्रीय बी प्रतियोगिताओं मे क्रमश: तीसरा और चौथा स्थान प्राप्त कर अरविंद कुमार सिन्हा ने राष्ट्रीय ए प्रतियोगिता खेली | बिहार के लिए यह पहला अवसर था |1979 में फ़िडे रेटिंग प्राप्त कर, भारत का 9 वां रेटेड खिलाड़ी बनना भी बिहार के लिए गौरव की बात थी |
इन उपलब्धियों ने युवा वर्ग में शतरंज की पैठ को विस्तार और गहराई दी जिसके कारण कंपीटीशन बढ़ता गया | शायद यही वजह रही कि 1979 की राज्य प्रतियोगिता में बुरहान अली विजेता बन कर उभरे |वे 64 खानों में घोडा घुमाने में माहिर थे |तब तक उपरोक्त प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की कड़ी में युसुफ हसन,प्रमोद कुमार सिंह और नवीन उपाध्याय परिपक्व हो चले थे जिनके पीछे तैयार खड़ी थी सुमन कुमार सिंह, किशोर कुमार पांडे, पप्पू रमानी की एक और तिकड़ी |इसी प्रकार अन्य जिलों में भी युवा प्रतिभाओं की नई पौध पनप रहीं थीं |

पटना के अश्विनी कुमार श्रीवास्तव , सुधीर कुमार सिन्हा, संतोष कुमार सिन्हा, संजीव कुमार, छपरा में विजयेश नंदकेयूलियार बोकारो में शांतनु और अतनु लाहिड़ी, जमशेदपुर में प्रीतम सिंह, दिवाकर प्रसाद सिंह, चाईबासा में अमित कुमार मेड्डा मुजफ्फरपुर में संजीव कुमार जैसे ऊर्जावान बीज पनप चुके थे तथा अन्य उस प्रक्रिया में थे | बिहार शतरंज का आभामण्डल उस ऊर्जा के तेज से दीप्त हो रहा था |
यह दूसरी पीढ़ी की कहानी का पहला पार्ट है। इसका दूसरा और अंतिम पार्ट कल पढ़ें।