पटना। मेरे अंदर वह बच्चा जिंदा है जिसे जीतने की भूख थी और इस कारण मैं अपने खेल कैरियर में सफलता हासिल की। आप अपने अंदर अगर कुछ करने की लालसा रखें तो सफलता जरूर हासिल होगी। उक्त बातें शुक्रवार को राजधानी पटना के बापू सभागार में आयोजित प्रतिभा सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि पटना पहुंचे भारतीय बैडमिंटन टीम के मुख्य प्रशिक्षक पुलेला गोपीचंद ने कहीं।
द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित पुलेला गोपीचंद ने बैडमिंटन खिलाड़ियों संग हॉल में मौजूद लोगों के बीच अपने संघर्ष से लेकर द्रोणाचार्य अवार्डी बनने तक के सफर को साझा करते हुए कहा कि जबतक आप में जुनून नहीं होगा तबतक अपने गोल को हासिल नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि मैं एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखता हूं। मेरे घर में भी इंजीनियर व डॉक्टर बनाने की सोच अभिभावकों में थी। कैंपस में जब पड़ोसियों के कांच टूटे व शिकायत घर पहुंची तक मां ने खेल में डालने को चाहा।
पहले क्रिकेट, लेकिन प्रवेश नहीं मिला। उसके बाद टेनिस गया खेलने लेकिन कोर्ट के बाहर महंगी कारें देखीं तो परिजन वापस लौट गए, क्योंकि वह महंगा खेल था। बैडमिंटन कोर्ट पहुंचा तो खाली पाया। बस तब से बैडमिंटन ने मुझे अपना लिया। इतना ही नहीं भाई ने जब आईआईटी पास कर लिया तो मुझे भी आईआईटी करने का दवाब दिया गया, लेकिन फेल हो गया। इसी बीच मुझे नौकरी टाटा कंपनी में मिल गई, लेकिन बिहार तो ज्ञान की धरती है। मुझे भी यहीं ज्ञान मिला।
नौकरी के छह माह बाद मुझे अहसास हुआ कि नौकरी तो कभी भी मिल जाएगी और मैं फिर बैडमिंटन की ओर वापस लौट गया। आज भी यही अहसास होता है कि अब भी बहुत कुछ सीखना है। मैं हर अपने प्रशिक्षुओं से रोज सीखता हूं। बिहार के खिलाड़ियों व बैडमिंटन के भविष्य के ऊपर कहा कि यहां बहुत स्कोप है। मैं यहां के बदलते खेल के माहौल के बारे में सुनकर ही इतने व्यस्त शेड्यूल के बावजूद यहां आया हूं। रही एकेडमी खोलने व प्रशिक्षण देने की बात तो भविष्य के योजनाओं में शामिल है। पुलेला गोपीचंद ने ओलंपिक में भारत के उम्मीद पर कहा कि इसबार पिछले दो ओलंपिक से ज्यादा पदक का भरोसा है।