पटना। बिहार क्रिकेट संघ के द्वारा बिहार सीनियर महिला टीम का गठन को लेकर कराए गए दो दिवसीय ट्रायल के बाद बीसीए की वेबसाइट पर जारी 22 सदस्यीय टीम सूची के बाद खिलाड़ियों व उनके अविभावकों में जबर्दस्त रोष है।
अभिभावकों का कहना है कि जब सीनियर वीमेंस टीम के मैच का शेड्यूल आया नहीं क्या हड़बड़ी थी जो फाइनल टीम की घोषणा कर दी। अभी पूरा समय था ट्रायल मैच करा लेते। 36 या 48 प्लेयरों का लिस्ट बना कर सभी को 40-50 ओवर का तीन-तीन मैच दे देते और उसके बाद टीम का अनाउंसमेंट करते। प्लेयरों को अपनी क्षमता दिखाने का मौका मिलता।
अभिभावकों ने बिहार क्रिकेट संघ के अध्यक्ष राकेश कुमार तिवारी, कार्यकारी सचिव कुमार अरविंद सहित कमेटी ऑफ मैनेजमेंट से यह आग्रह किया है कि ट्रायल देने वाली लगभग 140 से 150 महिला खिलाड़ियों में से तीन या तीन टीम का गठन कर अभ्यास मैच कराने का गुहार लगाया।
अभिभावकों का आरोप है कि टीम चुनने वाली एक महिला चयनकर्ता ने सबसे अधिक भेदभाव करते हुए कई उदीयमान खिलाड़ियों का नाम शामिल नहीं किया है।
उनका कहना है कि ट्रायल मैच कराने से दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। उसके बाद हम लोगों का किसी प्रकार का आरोप और प्रत्यारोप किसी के ऊपर नहीं होगी और बिहार क्रिकेट संघ के समस्त पदाधिकारियों और संस्था के प्रति आस्था और विश्वास बढ़ेगी।
अभिभावकों का कहना है कि जिस साजिश के तहत कई लोग बिहार क्रिकेट संघ के पदाधिकारियों और संघ की छवि धूमिल करने में लगे हैं। वैसे लोगों का चेहरा जगजाहिर हो ऐसा ही कुछ करने का प्रयास एक चयनकर्ता द्वारा किया जा रहा है। जिससे सावधान रहने की आवश्यकता है और ट्रायल मैच करा कर लोगों का विश्वास जीत कर उनके गलत मंसूबों पर पानी फेरा जा सकता है।
एक अभिभावक का कहना है कि एक और बात है। जरा उन मैचों में किये गए प्रदर्शनों पर अपनी नजर डाल लेते तो हाल के दिनों में कई जिला संघों व संगठनों द्वारा काराया गया है। वे मैच भी बीसीए से रजिस्टर्ड ही थे। जिन प्लेयरों को बीसीए के अधिकारियों ने मैन ऑफ द मैच, प्लेयर ऑफ द मैच, बेस्ट बैट्समैन का अवार्ड दिया और वह लड़की टीम में जगह बनाने से चूक गई। मैचों में बेहतर प्रदर्शन करना क्या गुनाह है। केवल दो-चार बॉल बेहतर खेल ले और सेलेक्टेड हो जाए यह कहां का कानून है सर।
एक नजर सेलेक्टरों पर दौड़ा लें। सेलेक्टर जिन्हें बिहार क्रिकेट के हालिया गतिवधियों के बारें में नहीं पता है और दो-चार बॉल पर सेलेक्शन कर लेते हैं। वे बिहार क्रिकेट से वर्षों से दूर हैं और दो दिन में टीम का सेलेक्शन कैसे बेहतर तरीके से कर पायेंगे। वे सेलेक्शन तो खिलाड़ियों से पूछ करते हैं। इन सेलेक्टरों को क्या हाल के मैचों का कोई रिपोर्ट सौंपा गया था। इनके ऊपर एक सेलेक्शन डेवलपमेंट कमेटी को बिठाना चाहिए।
पिछले दो वर्षों में सीनियर वीमेंस टीम का प्रदर्शन काफी खराब रहा है। मणिपुर, मेघालय जैसी टीमों से बड़े अंतर से हारी हैं और उन्हीं प्लेयरों को टीम में जगह दे दी गई। नये को मौका देना चाहिए था जो हाल में बेहतर खेले हों।
इस बीच याशिता सिंह के पिता ने भी अपनी बेटी द्वारा किये गए प्रदर्शन का लेखा-जोखा मीडिया को भेजा है। उनका कहना कि सेलेक्शन का क्या पैमाना है पता ही नहीं चलता है। याशिता सिंह पिछले सत्र में अंडर-19 में बेहतर परफॉरमेंस किया था। साथ ही हाल के दिनों में आयोजित टूर्नामेंटों में हरफनमौला परफॉरमेंस है तो फिर सेलेक्शन क्यों नहीं।

