आजकल एक पिच क्यूरेटर की पटना में काफी चर्चा हो रही है। नाम है प्रभु। पहले ये बिहार के बाहर काम करते थे पर वे कोरोना काल के पहले अपने घर वापस आ गए हैं।
प्रभु रहने वाले हैं पटना जिला के मसौढ़ी प्रखंड के कररिया गांव के। उनकी पढ़ाई-लिखाई बिहार में हुई है। उनका क्रिकेट के प्रति लगाव बचपन से था। दिन-दिन भर बैठ कर क्रिकेट मैच देखता करते थे। इसके बाद वे जीवन-यापन के लिए तमिलनाडु का रुख किया। वहां भी उनका क्रिकेट के प्रति लगाव बना रहा है। उसी दौरान उन्होंने ग्राउंड की बारिकियां सीखीं और फिर पिच क्यूरेटर का काम करने लगे। तमिलनाडु के जिस जिले में वे काम करते थे वहां के ग्राउंड के अलावा कई अन्य जगहों पर बने क्रिकेट पिच को बनाने में उन्होंने सहायक की भूमिका अदा की।
तमिलनाडु के बाद वे कर्नाटक चले गए और वहां भी उनका पिच क्यूरेटर का काम चलता रहा। साथ में उन्होंने अपने नौकरी-पेशे को भी नहीं छोड़ा। जिस कंपनी में काम करते वहां के मैनेजर या हाकिम उनके बारे में जानकर काफी खुश होता और उन्हें पिच क्यूरेटर के काम पर जाने की छुट्टी दे देता।
प्रभु कहते हैं कि हमारे पास पिच क्यूरेटर की कोई डिग्री नहीं है पर काम जानता हूं। कभी डिग्री लेने का प्रयास नहीं किया। प्रयास भी कैसे करता जानकारी ही नहीं थी। मैं इस काम को तो पैशन के रूप में लेता हूं। मैं यह कह सकता हूं मुझमें काफी खुबियां हैं यह तो परखने की चीज है। मौका मिला तो बेहतर देने का प्रयास करुंगा। पटना और बाहर के जिलों ने कई लोगों ने पिच बनाने के लिए कॉल किया है पर अभी कोरोना काल में कहीं जाना संभव नहीं दिख रहा है।
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