अरविंद कुमार सिन्हा,फिडे मास्टर
आज की चर्चा के हीरो हैं अद्भुत बालप्रतिभा सैमुअल हर्मन रेशेव्स्की,जो न तो पूरी तरह पेशेवर होकर शतरंज खेल पाया और न तो कभी विश्वविजेता ही बन पाया, पर विश्व के शतरंज गगन में लगभग चालीस दशक तक देदीप्यमान नक्षत्र के समान दमकता रहा। पुराने रूसी साम्राज्य के ओजोर्कोव शहर ( अब पोलैंड ) के एक यहूदी परिवार में 26 नवंबर 1911 को जन्मा यह प्रतिभाशाली बालक मात्र चार वर्ष की आयु में ही शतरंज खेलना सीख गया और आठ वर्ष का होते-होते 20-25 उम्रदराज नामी –गिरामी खिलाड़ियों को एक साथ बैठाकर यूं हराता मानो सभी उसके सामने बच्चे हों।
उस दौर में, यह किसी अचंभे से कम न था। शीघ्र ही उस अतीव प्रतिभाशाली बालक की चर्चा दूर-दराज तक फैल गई और आस-पास बसे यूरोप के अन्य शहरों में उसके ऐसे कई प्रदर्शन होते जिसे देखने के लिए भारी भीड़ जुटती, यहाँ तक कि लोगबाग टिकट खरीद कर तमाशा देखने आते। उसके माँ-बाप अपने बेटे के करतब से फूले नहीं समाते सो अधिक आयोपार्जन की मंशा लेकर समुद्री जहाज से न्यूयोर्क पहुँच गए। नन्हा रेशेव्स्की उस समय मात्र 9 वर्ष का था। बड़ा शहर, बड़े लोग,उस सुनहरे बालों वाले सुंदर-सलोने बालक के कौतुक को देखने लिए भारी भीड़ जुटने लगी और बहुत शीघ्र ही वह बालक अमेरिका के अखबारों की सुर्खियां बन गया। अमेरिका के अन्य शहरों से भी बुलावे आने लगे। इस प्रकार शहर-दर-शहर उसके खेल प्रदर्शन होने लगे उसी प्रकार उससे ज़ोर-आजमाईश करने वाले खिलाड़ियों की संख्या भी बढ़ कर 40-50 तक हो गई जिनसे वह अकेले एक साथ खेलता| नामी खिलाड़ी भी खेलते पर शायद ही उससे कोई जीत पाता। इतनी व्यस्तता के कारण उस बालक की स्कूली शिक्षा एक दिन के लिए भी नहीं हो सकी जो अमेरिका में अनिवार्य थी।
बात फैली तो मेनहटन कोर्ट ने संज्ञान लेते हुये उसके माँ-बाप को सम्मन भेजा,अनुपयुक्त अभिभावक्त्व का दोषी ठहराते हुये डांट पिलाई और खेल-तमाशे को बंद कर पहले स्कूली शिक्षा पूरी करने का आदेश दे दिया। अब तो भारी मुश्किल आ गई, क्योंकि तब तो शतरंज तो छूट जाना तय था ही, आय का स्रोत भी भी जाता रहा। शिकागो के एक धनी व्यवसायी जूलियस रोजेनवाल्ड मदद को आगे आए। उसकी पढ़ाई पूरी करने, और बाद तक बच्चे का कैरियर संभालने का जिम्मा लिया। रेशेव्स्की ने शतरंज का तमाशा दिखाना छोड कर समझौते के मुताबिक ,माध्यमिक शिक्षा पूरी करके शिकागो विश्वविद्यालय से एकाउंट्स की डिग्री ली। इस पूरी अवधि में अर्थात 1924 से 1931 तक 12 वर्ष की उम्र से पढ़ाई शुरू कर माध्यमिक स्कूल शिक्षा पूरी होने तक वह शायद ही किसी प्रतियोगिता में भाग ले पाया हो। पर कहते हैं कि जो होता है, वह अच्छे के लिए होता है।

अच्छा ही हुआ क्योंकि 1934 मे शिकागो विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री लेने के बाद रेशेव्स्की ने पेशेवर एकाउंटेंट के तौर पर अपना और अपने परिवार का भविष्य तो सुरक्षित कर ही लिया था |कहते हैं कि 1920 के दशक में बालक रेशेव्स्की की प्रसिद्धि अपने चरम पर थी जिसकी तुलना चार्ली चैपलिन, जैकी कूगन जैसे सितारों से होने लगी थी और दुनियाँ भर में उसके करोड़ों प्रशंसक बन चुके थे। खेल की चढ़ती उम्र में ही अर्ध-अवकाश में रहने की बाध्यता झेलते हुये माध्यमिक शिक्षा पूर्ण होने के बाद 1931 में रेशेव्स्की ने पहली बार नियमित खिलाड़ी के रूप में यू एस ओपन प्रतियोगिता में भाग लिया जिसे उस समय वेस्टर्न ओपन कहा जाता था। काफी दिनों से शतरंज छूट जाने के कारण रेशेव्स्की का प्रदर्शन वैसा तो नहीं रहा जैसी अपेक्षा थी, पर वह उत्साहजनक तो था ही।1934 में 23साल की उंम्र में स्नातक बन कर अमेरिका के उस दौर के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रियुबन फाईन के साथ यू एस ओपन प्रतियोगिता का संयुक्त विजेता बना और 1936 की यू एस चैम्पियनशिप पहली बार जीती। 1934 से 1969 तक, जो यू एस ओपन का उसका आखिरी बार था (यानी 35 वर्षों में ), रेशेव्स्की ने 21 बार वह प्रतिष्ठित प्रतियोगिता खेली जिसमें 7 बार (1936, 1938,1940,1941,1942,1946) वह विजेता बना, दो बार संयुक्त विजेता बना, 3 बार वह शीर्ष तीन स्थान पर था। यह वैसा रिकॉर्ड है जो शायद किसी अमेरिकन खिलाडी के लिये सपना हो सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यदि रेशेव्स्की की उपलब्द्धियों पर नजर डालें तो पाते हैं कि रेशेव्स्की को पहली बार 1935 मे इंग्लैण्ड जाने का अवसर मिला जहां उसने ग्रेट यरमौथ ( इंग्लैण्ड के समुद्री तट का एक शहर) की प्रतियोगिता 10/11 अंकों के साथ जीती,जिसकी अगली कड़ी थी मारगेट की प्रतियोगिता। मारगेट में उसे मिली अन्य सफलताओं में क्यूबा के पूर्व विश्व विजेता जोस राउल कैपाब्लांका से मिली ऐतिहासिक जीत भी शामिल है। अगले वर्ष, यानि 1936 में रेशेव्स्की को नोटिङ्घम की प्रतियोगिता में संयुक्त रूप से तीसरा स्थान मिला जबकि 1937 में केमरी, (लाटिविया) में संयुक्त रूप से पहला। उसी के अगले वर्ष 1938 में नीदरलैंड के विश्वप्रशिद्ध आवरो (AVRO) अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में मिले संयुक्त रूप से चौथे स्थान के कारण,तार्किक रूप से देखें, तो रेशेव्स्की उस समय विश्व के सर्वश्रेष्ठ आठ खिलाड़ियों में आ खड़े हुये थे।
सच में देखा जाय तो रेशेव्स्की 1935 से 1960 के मध्य तक विश्व विजेता बनने के गंभीर दावेदारों में शामिल रहे। 1948 की विश्व शतरंज मैच (विशेष) प्रतियोगिता के लिए रेशेव्स्की को सर्वशेष्ठ पाँच खिलाड़ियों में शामिल किया गया जिस प्रतियोगिता का पहला चरण नीदरलैंड के हेग में और दूसरा चरण मास्को में खेला गया था। रेशेव्स्की को संयुक्त रूप से पॉल केरस, जो सोवियत गणराज्य के एस्टोनिया प्रांत से थे, के साथ तीसरा स्थान मिला था। उनसे ऊपर मात्र दो ही खिलाड़ी आए , वे थे सोवियत रूस के मिखाइल बोटविनिक और वैसिली स्माइस्स्लोव। आपको शायद यह पता हो या नहीं कि उपरोक्त प्रतियोगिता विशेषरूप सेविश्वविजेता के उस पद को भरने के लिए आयोजित की गई थी, जो विश्वविजेता अलेक्ज़ेंडर अलेखिन/अलेखाइन के 1946 में निधन के कारण रिक्त पड़ी थी। अगली विश्व प्रतियोगिता 1952 किस विश्वविजेता को चुनौती दी जाएगी , यह तय करने के लिए ही हेग और मॉस्को में उपरोक्त प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। आपको शायद पता हो कि उस दौर में विश्वविजेता को अलग रखते हुये,दुनिया भर के आठ क्षेत्रों से चयनित होकर जो खिलाड़ी आते थे उन्हें विश्व शतरंज प्रतियोगिता के चैलेंजर के “कैंडिडेट “ कहा जाता था|उन कैंडीडेट्स के बीच आपस में क्वार्टर फाइनल, सेमीफाइनल के मैच, जो सामान्यत: छ: या बारह मैचों का सीरीज होता था,के बाद उभर कर आए खिलाड़ी (चैलेंजर ) के साथ ही विश्वविजेता को फाइनल में खेलना होता था। सभी देशों की राष्ट्रीयप्रतियोगिता,तदुपरान्त ज़ोनल, इंटरजोनल से कैन्डिडेट्स चुने जाने तक अमूमन चार साल लग जाते थे।
1950 में जब फ़िडे (विश्व शतरंज महासंघ ) द्वारा अंतराष्ट्रीय ग्रैण्डमास्टर की पहली सूची निकाली गई तो उसमे रेशेव्स्की का नाम ग्रैण्डमास्टर के रूप में शामिल था। फिर भी रेशेव्स्की, 1950 में आयोजित कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में अपनी पात्रता होने के बावजूद, नहीं खेल पाये। कारण था, वे नाटो देश से नहीं थे, और अमेरिका उस काल के शीत युद्ध में शामिल था। सच्चाई तो यही थी, भले ही रेशेव्स्की कहते कि 1950 की कैन्डिडेट्स में उनहोने अपनी मर्जी से भाग नहीं लिया। अगले कैंडिडेट्स टूर्नामेंट , जो 1953 में स्वीटजरलैण्ड के ज्यूरिख़ शहर में खेली गई थी, में रेशेव्स्की को अपने जीवन का बेहतरीन मौका मिला था। कहते हैं कि अपनी पूरी ऊर्जा झोंकने के बावजूद वे वैसिली स्माइस्स्लोव और डेविड ब्रोन्स्टीन (दोनों सोवियत रूस) के अंकयोग से दो अंक पीछे ही रहे।
उस प्रतियोगिता में क्वालिफ़ाई करने वाले 15 खिलाड़ियों में 9 खिलाड़ी मात्र सोवियत संघ से थे। कहते हैं कि उन सभी रूसी खिलाड़ियों को सोवियत नेतृत्व और के जी बी का यह निर्देश था कि चाहे जो भी हो, रेशेव्स्की को आगे न निकलने दिया जाय। वैसे तो सोवियत खिलाड़ियों की आपसी सांठ-गांठ से परिणाम को प्रभावित करने के किस्से होते रहे हैं पर इसका खुलासा डेविड ब्रोन्स्टीन की मृत्यु के बाद 2007 की उनकी अंतिम किताब ‘ द लास्ट सीक्रेट’के प्रकाशन के बाद हो पाया। अन्य लेखक अलेक्सी सुईटिन ने भी बहुत बाद में इस बात की पुष्टि अपनी किताब में की है। आप जान लें कि सुइटिन उपरोक्त कैंडीडेट्स प्रतियोगिता में पेट्रोशियन के सेकंड बन कर गए थे जिसके वे चश्मदीद थे। |आपको याद हो कि बॉबी फिशर ने भी 1962 के कैंडीडेट्स में इस धांधली का विरोध किया था।
जहां तक चेस ओलंपियाड (टीम) में रेशेव्स्की के प्रदर्शन की बात है, उन्होंने 8 बार अमेरिका की ओर से खेला जिसमें 6 बार वे पहली बिसात पर खेले। अमेरिका को 1937 में स्वर्ण तथा 1974 में कांस्य पदक दिलाया और एक बार 1950 में व्यक्तिगत प्रदर्शन के आधार पर कांस्य पदक भी जीता।
रेशेव्स्की एक सुदृढ़ मैच प्लेयर थे क्योंकि रेशेव्स्की का प्रदर्शन सीरीज मैच में बेहतर रहा है जिसे विश्वविजेता बनने के लिए खूबी के तौर पर माना जाता है। स्विस लीग (टूर्नामेंट) में उतनी पकड़ नहीं देखी गई थी। अपने लंबे खेल-जीवन काल में रेशेव्स्की ने शुरूयाती 12 विश्वविजेताओं में से 11 से खेला जिनमें से 7 विश्वविजेताओं, इमैनुअल लास्कर, कैपाब्लांका, अलेखाइन,मैक्स इयूवे,बोटविनिक, स्माइस्लोव और बॉबी फिशर को हराने का गौरव उन्हें प्राप्त है|1952 में रेशेव्स्की और नैज्डोर्फ़ के बीच एक “स्वतंत्र विश्व की प्रतियोगिता” न्यूयोर्क में आयोजित की गई थी जिसके अतिरिक्त 5 गेम सैनफ़्रांसिसको में तथा अगले 5 गेम मेक्सिको सिटी में खेले गए थे। रेशेव्स्की ने वह सीरीज 11-7 से जीता। उसी प्रकार 1941 में अन्य सीरीज मैच, आई ए होरोविट्जसे प्ले ऑफ में (+3-0 =13 ); 1942 में आइजैक कासदान से (+6-2= 3) से; 1952 में गिल्गोरिक से (+2-1 =7) से; 1956 में विलियम लोमबार्डी से (+1-0=5 ); 1957 में आर्थर बिसगियर से (+4-2=4) से, 1957 में ही डोनाल्ड बायर्न से (+7-3=0)से और 1960 में पॉल बेंको से (+3-2=5 ) से मिली जीत रेसेव्स्की के स्थापित मैच प्लेयर की अवधारणा को पुष्ट करती है।
परंतु बॉबी फिशर से रेशेव्स्की की खेल-प्प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर रही। फिशर जब 14 वर्ष के थे, तब से ही यू एस चैम्पियनशिप में रेशेव्स्की, जो सात बार चैंपियन रहे थे,को कठोर चुनौती देते रहे या कहें कि हाबी रहे |कांटे की टक्कर होती पर खेल के स्टाइल और उनकी ढलती उंम्र का असर अक्सर फिशर के पक्ष में रहा। कहते हैं कि रेशेव्स्की ने एक बार कहा कि “ मैं 19वें स्थान से भी संतुष्ट रहूँ अगर फिशर को 20वां स्थान मिले। “फिशर, रेशेव्स्की का बहुत सम्मान करते थे और उन्होने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक“मेरे 60 यादगार खेल“में अपने साथ हुये रेशेव्स्की के कई खेलों को उद्धृतकिया है। कहना न होगा कि बॉबी फिशर को पुख्ता करने में रेशेव्स्की से मिले कड़े प्रतिरोध का बड़ा योगदान रहा है।
ओजोर्कोव शहर में सूती कपड़ों का कारोबार करने वाले कट्टर यहूदी माता-पिता की संतान रेशेव्स्की आने बचपन से ही विनम्र और धार्मिक व्यक्ति थे। एक धर्मपरायण यहूदी। यहूदी धर्मानुष्ठानों के दिन और साप्ताहिक सब्बथ (यहूदी पूजा-पाठ का दिन शनिवार) का दिन पवित्र धर्मानुचरण के लिए रखते और मैच नहीं खेलते। उनका सम्मान रखते हुये आयोजक उनका मैच उन दिनों में नहीं रखते थे। न्यूयोर्क के एक अस्पताल में चार अप्रैल, 1992 को 80 वर्ष की आयु में हृदयाघात से रेशेव्स्की का निधन हो गया।
अंत में, हम रेशेव्स्की के कुछ प्रसिद्ध खेल पर नजर डालें :
