बाएं हाथ के अनुभवी तेज गेंदबाज जयदेव उनादकट ने दूसरी पारी में 85 रन देकर छह जबकि मैच में नौ विकेट चटकाए जिससे सौराष्ट्र ने रविवार को यहां रणजी ट्रॉफी के फाइनल के चौथे दिन बंगाल को नौ विकेट से शिकस्त दी। सौराष्ट्र ने पहली पारी में 230 रन बड़ी बढ़त लेने के बाद ही जीत की ओर कदम बढ़ा दिया था। बंगाल ने दिन की शुरुआत चार विकेट पर 169 रन से आगे से की लेकिन उसकी पूरी टीम 241 रन पर आउट हो गयी।
सौराष्ट्र को मैच अपने नाम करने के लिए 12 रन का लक्ष्य मिला। आकाशदीप की गेंद पर सौराष्ट्र ने सलामी बल्लेबाज जय गोहिल (शून्य) का विकेट गंवाया लेकिन टीम 2.4 ओवर में 14 रन बनाकर दूसरी बार रणजी ट्रॉफी चैम्पियन बनी। सौराष्ट्र को पिछला खिताब 2019-20 सत्र में मिला था। उस समय टीम ने पहली पारी की बढ़त के आधार पर बंगाल को पछाड़ा था। सौराष्ट्र ने पिछले 10 सत्र में पाँच बार रणजी ट्रॉफी फाइनल में जगह बनाकर अपनी निरंतरता साबित की।
बंगाल की टीम एक बार फिर चैम्पियन बनने से चूक गयी। उसने अपना पिछला खिताब 1989-90 में इसी ईडन गार्डन्स मैदान में सितारों से सजी दिल्ली को हरा कर जीता था। टीम का पहला खिताब 1938-39 में आजादी से पहले के दौर में आया था। उनादकट ने दिन के शुरुआती सत्र में एक बार फिर अपनी गेंदबाजी का लोहा मनवाया। उन्होंने शाहबाज अहमद (27) के रन आउट होने के बाद आखिरी पांच में से चार विकेट चटकाये। शनिवार को उन्होंने दो विकेट लिये थे।
बंगाल के अनुभवी बल्लेबाज कप्तान मनोज तिवारी (68) और अनुस्तूप मजूमदार (61) ने अर्धशतकीय पारी खेल जुझारूपन दिखाया लेकिन टीम को शीर्ष क्रम के बल्लेबाजों ने निराश किया। अभिमन्यु ईश्वरन फाइनल की दो पारियों में शून्य और 16 रन ही बना सके। सेमीफाइनल में शतक जड़ने वाले सुदीप घरामी शून्य और 14 का योगदान ही दे पाये। घरामी ने इस सत्र में 800 से ज्यादा रन बनाने है। फाइनल में सुमंत गुप्ता को पदार्पण का मौका देना भी बंगाल को भारी पड़ा। उनके पास शीर्ष क्रम के बल्लेबाज के लिए जरूरी तकनीक की कमी दिखी। वह बाहर निकलती गेंदों पर असहज दिखे।
राज्य के खेल मंत्री और टीम के कप्तान तिवारी ने रणजी ट्रॉफी खिताब जीतने के लिए अपने संन्यास के फैसले को टाला था। यह उनका चौथा फाइनल था लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही हाथ लगी। इससे पहले, तिवारी और शाहबाज की पिछले दिन की जोड़ी तीसरा रन चुराने की कोशिश में गफलत की शिकार हुई। इसका खामियाजा शाहबाज को रन आउट होकर भुगतना पड़ा।