आमतौर पर यही देखा गया है कि ज्यादातर बच्चों व बच्चियों का क्रिकेट, एथलेटिक्स, फुटबॉल, बैडमिंटन समेत नामी खेलों में रूचि रहती है पर दिल्ली की इस बाला को स्कूल के दिनों में इससे परे एक ऐसे गेम से दिल लग गई जिसका देश के नामी गेमों की तरह क्रेज नहीं था पर उसके स्कूल में इस गेम की तूती बोलती थी। दिल्ली की बाला ने बिना कुछ समझे इस गेम को अपने दिल से लगा लिया और आगे चल कर इसे अपने जीवन का साथी यों कहें इसमें अपना कैरियर भी बना डाला। दिल्ली इस बाला का नाम दीपिका वत्स और उस गेम का नाम है थ्रोबॉल। दीपिका वत्स छात्रा, खिलाड़ी, शिक्षिका का सफर तय करते हुए वर्तमान समय में दिल्ली सरकार में थ्रोबॉल गेम की कोच के रूप में पदस्थापित है। तो आइए चलिए जानते दीपिका के खेल कैरियर के बारे में।
दिल्ली की रहने वाली दीपिका ने वर्ष 2004 में थ्रोबॉल गेम को खेलना शुरू किया। इस वर्ष दीपिका का चयन दिल्ली की स्टेट स्कूली टीम में हो गया। नेशनल एसजीएफआई अंडर-19 थ्रोबॉल चैंपियनशिप में दिल्ली टीम ने स्वर्ण पदक जीता जिसमें दीपिका ने अहम भूमिका निभाई। इसके बाद इलाहाबाद में इलाहाबाद में आयोजित अंडर-17 थ्रोबॉल चैंपियनशिप में हिस्सा लिया। कर्नाटक में आयोजित अंडर-19 थ्रोबॉल चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता।
इसके बाद दीपिका का सफर चल पड़ा। स्कूली खेल के सफर के साथ-साथ दीपिका फेडरेशन द्वारा आयोजित जूनियर से लेकर सीनियर चैंपियनशिप में दिल्ली टीम का प्रतिनिधित्व और नेतृत्व किया और अपनी टीम को कई खिताब दिलाये। इन मैच में दीपिका ने बेस्ट प्लेयर से लेकर पूरे टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का पुरस्कार दिया।
वर्ष 2017 में थाईलैंड और मलेशिया में आयोजित इंटरनेशनल थ्रोबॉल चैंपियनशिप में वह भारतीय टीम की कप्तान बनी और टीम को स्वर्ण और कांस्य पदक दिलाया।
खेल के साथ-साथ दीपिका की पढ़ाई का सफर जारी रहा। आट्र्स सब्जेक्ट से आनर्स करने के बाद बीएड किया और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से एमपीएड की डिग्री ली। इन अर्हताओं के बाद दीपिका ने स्कूलों में आम टीचर से लेकर खेल शिक्षिका के रूप में काम किया और थ्रोबॉल से पूरी तरह जुड़ी रहीं। कई वर्षों तक उन्होंने दिल्ली महिला टीम की कमान संभाली और खिताब दिलाये।
दीपिका के घर में खेल का माहौल नहीं था पर पिता राजेंद्र प्रसाद और मां राजेश का पूरा साथ मिला। पिता दिल्ली सरकार के विद्युत विभाग में नौकरी करते थे और मां गृहिणी हैं।
वर्तमान समय में दीपिका दिल्ली के राजीव गांधी स्टेडियम बबाना में थ्रोबॉल कोच के रूप में काम कर रही हैं। दीपिका को अन्य गेमों से भी प्यार है और वह प्रतिदिन बैडमिंटन का भी अभ्यास करती हैं।
दीपिका कहती हैं यहां तक सुनहरे कैरियर में जितना सपोर्ट हमें अपने परिवार से मिला उतना या यों कहें उससे ज्यादा थ्रोबॉल परिवार का मिला। खास कर थ्रोबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया के महासचिव सह थ्रोबॉल एसोसिएशन ऑफ दिल्ली के अध्यक्ष नरेश मान सर और थ्रोबॉल एसोसिएशन ऑफ दिल्ली के सचिव कर्म सिंह कर्मा सर का। इनका अगर सपोर्ट हमें नहीं मिलता था मैं आज नहीं पहुंच पाती है। थ्रोबॉल गेम से आज मेरी पहचान है और साथ ही इस गेम के कारण ही मैंने अपना कैरियर बेहतर बना लिया है। अभी भी वह प्रतिदिन थ्रोबॉल के खिलाड़ियों को अभ्यास करा आगे बढ़ा रही हैं।
वर्तमान में वह दिल्ली टीम की महिला कोच के रूप में टीम को ट्रेनिंग दे रही हैं जो 45वीं सीनियर नेशनल थ्रोबॉल चैंपियनशिप में हिस्सा लेने वाली है।
दीपिका कहती हैं कि कोई गेम बड़ा या छोटा नहीं होता है बल्कि आप उस गेम को अपना अपने दिल से कितनी तन्मयता लगाते हैं और उसको अपनी जिंदगी में कैसे ढालते हैं। वह कहती हैं कि ईमानदारी से दृढ़संकल्पित होकर मेहनत की जाए तो मीठा फल अपने आप आपकी गोद में गिर जायेगा