Monday, June 9, 2025
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छोटे कद का बड़ा उस्ताद है यह शख्स, जानें उनके बारे में

by Khel Dhaba
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शैलेंद्र कुमार

पटना। छोटा कद छोटी सवारी पर इनके काम व लग्न के आगे सभी पड जाते है छोटे। जी हां, अपने ट्रेनिंग से कई बड़े सितारे पैदा किये जिन्होंने अपने जिला से लेकर राज्य का नाम रौशन किया।अपने गृह शहर पटना में अगर हैं तो वे साइकिल से पूरे शहर को नापते हैं। पहनावा भी इनका साधारण, ग्राउंड हो या बाहर हमेशा ट्रैक शूट में नजर आयेंगे। इनके किसी पारिवारिक सदस्य का खेल से कोई दूर – दूर का नाता नहीं , पर आसपास का माहौल खेल का जरूर था। इससे ही प्रेरित होकर गांधी मैदान आते -जाते फुटबॉल खेलना शुरू किया और फिर क्या था फुटबॉल से ऐसा नाता जुड़ा जो अबतक कायम है। यह छोटे कद का उस्ताद कोई और नहीं फुटबॉल कोच नंद किशोर प्रसाद हैं, जिन्हें प्यार से लोग नंदू सर, नंदू भैया बुलाते हैं। तो आइए जानते हैं भारतीय खेल प्राधिकरण से सेवानिवृत नंद किशोर प्रसाद की उपलब्धियों के बारे में-

राजधानी के सघन आबादी वाले मुहल्ला सालिमपुर अहरा में 11 अप्रैल 1958 को स्व. केदार साव के घर में नंद किशोर प्रसाद का जन्म हुआ था। पढ़ाई-लिखाई पटना में ही हुई। वाणिज्य संकाय में स्नातक प्राप्त इनके घर के पास ऐतिहासिक गांधी मैदान और इलाके में फुटबॉलरों की लंबी जमात थी। नतीजा हुआ कि ये भी उनलोगों के पीछे-पीछे गांधी मैदान में फुटबॉल खेलने चले जाते थे। परिवार में खेल का माहौल नहीं होने पर भी नंद किशोर प्रसाद ने खेल में ही अपना कैरियर बनाने का निर्णय लिया। फलस्वरुप 1984-85 सत्र में एनआईएस डिप्लोमा की डिग्री फुटबॉल में प्राप्त की। डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश इन्हें मगध विश्वविद्यालय फुटबॉल टीम का दो बार प्रतिनिधित्व करने के कारण मिला।

एनआईएस कोर्स के करने के बाद नौकरी मिलने में दिक्कत नहीं हुई और वे भारतीय खेल प्राधिकरण में फुटबॉल कोच के रूप नियुक्त हुए। कोच बनते ही इन्होंने अपने आपको फुटबॉल के प्रति समर्पित कर दिया। वर्ष 1985 में कोच के रूप में इनकी यात्रा पटना विश्वविद्यालय फुटबॉल टीम के प्रशिक्षण देने से हुई। 1987 में ऑल इंडिया सुब्रतो मुखर्जी फुटबॉल टूर्नामेंट के फाइनल तक पहुंचने वाली पटना हाईस्कूल टीम को प्रशिक्षित किया। इसी वर्ष इन्होंने बिहार सरकार के स्कूली टीम को प्रशिक्षित किया था। वर्ष 1989 में बिहार जूनियर फुटबॉल टीम को प्रशिक्षित शिलांग में आयोजित हुए डॉ बीसी राय ट्रॉफी के लिए किया। इनके प्रशिक्षण शैली को देख बिहार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग और बिहार राज्य खेल प्राधिकरण ने अपनी टीम को प्रशिक्षित करने का मौका दिया।

कर्मवीर व श्रमवीर कोच के रूप में ख्याति अर्जित करने वाले नंद किशोर प्रसाद की पोस्टिंग वर्ष 1991 में इंफाल (मणिपुर) में हुई। वहां फुटबॉल का जूनुन था। सत्य यही है कि मणिपुर में ही इनकी पहचान उच्चस्तरीय कोच के रूप में हो गई। इनकी प्रतिभा को देख मणिपुर फुटबॉल संघ ने अपना तकनीकी विशेषज्ञ बनाया। मणिपुर में सेवाकाल के दौरान मणिपुर की जूनियर व सीनियर टीम को क्रमश: डॉ बीसी राय ट्रॉफी, कलिंगा कप और बरदोलई ट्रॉफी के लिए नंद किशोर प्रसाद ने प्रशिक्षित किया। इसके अलावा स्पोट्र्स हॉस्टल इंफाल में टैलेंटेड खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देते रहे। फलस्वरुप उस वक्त इनके प्रशिक्षुओं क्रमश: टटाओं सिंह, राजेश सिंह, जेनिथ सिंह, गोपेश्वर, ब्रज मोहन मिताई को मणिपुर की सबजूनियर व जूनियर फुटबॉल टीम में जगह मिला।

धीरे-धीरे नंद किशोर प्रसाद की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। उस साल लखनऊ (उत्तरप्रदेश) में आयोजित हुए ऑल इंडिया बी एन मल्लिक मेमोरियल पुलिस फुटबॉल टूर्नामेंट में भाग लेने वाली सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) की टीम को प्रशिक्षण देने का मौका नंद किशोर प्रसाद को मिला था। फिर 61वीं माउंटेन ब्रिगेड थॉमस ट्रॉफी की विजेता टीम ऑल इंडिया मणिपुर गोरखा स्पोर्टिंग यूनियन को प्रशिक्षित किया।

इन्हें शिलांग (मेघालय) में कोचिंग देने के लिए भेजा गया। वहां जाने के बाद नंद किशोर प्रसाद ने नार्थ ईस्ट गजन कमाई फुटबॉल चैंपियनशिप का खिताब पर संत एंथोनी हाईस्कूल शिलांग को कब्जा दिलाया था। नार्थ ईस्ट में पोस्टिंग के दौरान वहां पर आयोजित होने वाले कई फुटबॉल टूर्नामेंट को सफल बनाने में एक टेक्निकल एक्सपर्ट के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

एक कोच के रूप में फुटबॉल के प्रति समर्पित नंद किशोर प्रसाद ने बिहार के लिए भी बहुत कुछ किया। इनके द्वारा प्रशिक्षित बिहार स्कूल टीम ने 1997 में भभुआ में आयोजित हुए 42वें राष्ट्रीय स्कूली फुटबॉल टूर्नामेंट ने कांस्य पदक जीता था। ऑल इंडिया सुब्रतो मुखर्जी फुटबॉल टूर्नामेंट में बिहार की ओर से भाग लेने वाली राज्य की चैंपियन सर जी डी पाटलिपुत्र हाईस्कूल को भी 1996 में प्रशिक्षित किया था। बिहार एनसीसी फुटबॉल टीम को भी इंडिपेडेंट कप के लिए प्रशिक्षित किया था।

कल्याणी (पश्चिम बंगाल) में 1997 में आयोजित हुए 43वीं राष्ट्रीय अंडर-17 स्कूली फुटबॉल टूर्नामेंट का खिताब जीतने वाली बिहार टीम को नंद किशोर प्रसाद ने ही प्रशिक्षित किया था। वर्ष 2000 में दुमका में आयोजित हुई राष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लेने वाली बिहार अंडर – 21टीम को भी प्रशिक्षित किया था।

इन्होंने प्रशिक्षण की बदौलत ही साई सेंटर की टीमों को ऊंचाई पर पहुंचाया। साई पूर्वी क्षेत्र फुटबॉल टीम को कई बार प्रशिक्षित किया। इनके द्वारा प्रशिक्षित साई की टीम ने उम्दा प्रदर्शन किया। एसटीसी पटना में पोस्टिंग के दौरान भी उम्दा प्रशिक्षण दिया। वर्ष 2002 में बिहार राज्य क्लब चैंपियनशिप का आयोजन वैशाली में हुआ था। टिस्को की टीम ने फाइनल में एसटीसी पटना को 1-0 से हराया था। पूर्वी क्षेत्र अंतर साई फुटबॉल टूर्नामेंट के फाइनल में इनके द्वारा प्रशिक्षित एसटीसी पटना को कटक साई ने 3-4 से हराया था। इन्होंने कई जिलों की टीम को भी मोइनुल हक कप फुटबॉल के लिए प्रशिक्षित किया है। इन्होंने ही मोइनुल हक फुटबॉल का खिताब जीतने वाली किशनगंज को प्रशिक्षित कर सबको चौंकाया था।

इनके प्रशिक्षुओं की लंबी फेहरिस्त है। अंडर-18 आई लीग में लाल बहादुर सिंह, मुसरफ, राहुल कुमार और अंडर-16 आई लीग में दिनेश बेसरा, मोती कुमार राम, आशीष टुडू, लाल टुडू ने हिस्सा लिया था।

बिहार स्कूली अंडर-17 टीम जिसने राज्य को पहली बार पदक दिलाया था उसे भी इन्होंने ही प्रशिक्षित किया गया था। इनके द्वारा प्रशिक्षित टीमों ने सबजूनियर, जूनियर, अंडर-21 व स्कूली नेशनल फुटबॉल में नौ स्वर्ण, चार रजत और तीन कांस्य पदक जीते हैं। साथ ही राज्य फुटबॉल की सबसे बड़ी प्रतियोगिता मोइनुल हक कप पर भी कब्जा जमाया है।

श्री प्रसाद ने वर्ष 1999 में ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन द्वारा संचालित एएफसी टेक्निकल एक्सपर्ट के अंडर में कोचेज का कोर्स किया। वर्ष 2002-03 में एडवांस कोर्स फॉर कोचेज के साथ-साथ एएफसी लाइसेंस फुटबॉल कोच की परीक्षा वर्ष 2008 में उत्तीर्ण किया। वर्ष 2007 में एंटी डोपिंग कंट्रोल सेंपलिंग ऑफिसर का कोर्स भी कर चुके हैं। राज्य फुटबॉल रेफरी की परीक्षा भी इन्होंने पास कर रखा है। इनके कार्यों को देखते हुए वर्ष 2009 में कला, संस्कृति एवं युवा विभाग ने खेल दिवस के अवसर पर बेस्ट फुटबॉल कोच का पुरस्कार प्रदान किया था।

नन्दु उस्ताद कहते हैं कि कोचिंग के क्षेत्र में चिंतामुक्त हो कार्य करने तथा इस मुकाम तक पहुंचने में उनकी पत्नी मनीषा देवी का बहुत बड़ा योगदान है। वे कहते हैं कि घर-परिवार संभालने की खातिर मनीषा ने उच्च शिक्षा प्राप्त होने के बावजूद शिक्षक की नौकरी में योगदान नहीं किया। इनके दो पुत्र शक्ति सागर और मनीष आनंद भी फुटबॉलर बने। मनीष आनंद का चयन भारतीय सबजूनियर फुटबॉल के कैंप हेतू भी हुआ था। दोनों पुत्रों ने उच्च शिक्षा ग्रहण की है। ज्येष्ठ पुत्र शक्ति सागर अभी बायोटेक्नोलॉजी में पीएचडी कर रहे हैं। छोटा पुत्र मनीष आनंद चाटर्ड एकाउंटेड करते-करते केनरा बैंक में प्रोवेशनरी ऑफिसर बन गए और अभी वे मदुरै में कार्यरत हैं। आज यह खुशहाल जीवन जी रहे हैं।
नंद किशोर प्रसाद के प्रशिक्षुओं की फेहरिस्त काफी लंबी है। इनमें से अधिकांश सरकारी सेवा में जा चुके हैं। कुछ व्यापार में लगे हैं, लेकिन कुछ की चर्चा न की जाए तो नंद किशोर के शिष्यों के साथ नाइंसाफी होगी।

स्वर्ण विजेता टीम के सदस्य रहे इनके प्रशिक्षुओं में तनवीर आलम (1995), अनवर हुसैन (1997), बाबर आलम, मनोज कुमार, रणजीत सिंह राणा, असगर अली, सुमन कुमार दयाल (सभी 1997)जैसे विलक्षण प्रतिभाशाली फुटबॉलर रहे जिन्होंने कई बार राज्य को स्वर्ण पदक दिलाया। इसके अतिरिक्त मनोज कुमार, असगर अली, बाबर आलम, रणजीत सिंह राणा, नादिर परवेज, रवि रंजन, राजेश कुमार सिंह, विकास कुमार, राजगृह यादव, विक्की कुमार, श्याम बहादुर यादव इत्यादि ने भी अपने प्रदर्शन का लोहा मनवाया तथा राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उम्दा प्रदर्शन कर बिहार को स्वर्ण दिलाया।

सन् 2015 में इनके शिष्यों क्रमश: विधान कुमार, मो मुसरफ परवेज, राजू पासवान, राजू कुमार, मो फैजल, राहुल कुमार, लाल बहादुर सिंह, मो इकबाल, दिनेश बेसरा, नीरज साहनी, विश्वजीत राय, राकेश विश्वास ने मोइनुल हक फुटबॉल टूर्नामेंट का स्वर्ण पदक खिताब जीता था।
भारतीय खेल प्राधिकरण से सेवानिवृत होने के बाद नंद किशोर प्रसाद का मैदान से मोह भंग नहीं हुआ है। अभी ये गांधी मैदान में स्थानीय बच्चों को नियमित रूप से प्रशिक्षित करते हैं। अब तो इनका पोता इन्हें गांधी मैदान जबर्दस्ती फुटबॉल के साथ चलने पर मजबूर करता है। आखिर क्यों न हो जिसके घर को खेल व शिक्षा ने संवारा हो वहां के बच्चे में कुछ तो खानदानी गुण विरासत में आएगा ही।

ऐसे भी कोच व शिक्षक कभी रिटायर नहीं होते, वहीं बुजुर्ग खिलाड़ी को मैदान व खेल देखकर फिर से दो दो हाथ करने का जोश भर आता है। बिहार के फुटबॉल प्रेमियों को उम्मीद है कि राज्य के फुटबॉल के विकास में इनका इसी तरह से योगदान मिलता रहेगा।

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