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इस तरह ऊंचाइयों को छुआ बलबीर सिंह सीनियर ने

by Khel Dhaba
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मोहम्मद अफरोज उद्दीन
हॉकी में भारत को काफी सालों से ओलंपिक स्वर्ण पदक के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। लेकिन भारत को पिछले कई सालों से स्वर्ण पदक तो दूर, हॉकी का कोई दूसरा पदक भी नसीब नहीं हुआ है। 25 मई को भारत ने हॉकी का अपना एक सितारा खो दिया, जिसका नाम बलवीर सिंह है। बलवीर सिंह पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। उनकी दिली तमन्ना थी कि भारत वर्ष 2024 में पेरिस ओलंपिक में जरूर स्वर्ण पदक जीते क्योंकि तब बलवीर सिंह 100 साल के हो जाते। कहते हैं कि आदमी की हर तमन्ना पूरी नहीं होती और ऐसा ही कुछ बलबीर सिंह सीनियर के साथ हुआ। न तो वह 100 साल पूरे कर सके ना ही वह 2024 के पेरिस ओलंपिक तक स्वर्ण पदक जीतते हुए देखने के लिए जीवित रहे।

बलबीर सिंह सीनियर इतने बड़े खिलाड़ी थे कि भारत का हर खेल प्रेमी उन्हें जानता है। अब जबकि वह हमारे बीच नहीं हैं तो उनके बारे में कुछ ऐसी बातें जानने की जिज्ञासा बढ़ जाती है जिसे हम बहुत कम जानते हैं।

यह तो सबको पता है कि बलबीर सिंह सीनियर ने 1948, 1952 और 1956 के ओलंपिक खेलों में भारत को हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाया था। इस दौरान भारत ने ओलंपिक खेलों में कुल मिलाकर लगातार छह बार हॉकी का गोल्ड जीता था।

अगर 1948 के लंदन ओलंपिक खेलों की बात की जाए तो यह जानना बड़ा ही दिलचस्प होता है कि भारत आजादी के बाद पहली बार किसी बड़े खेल मुकाबले में स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब रहा। भारत ने उसी इंग्लैंड को फाइनल में हराया था जिसके अधीन वह पिछले कई सालों से गुलाम था। इस तरह आज़ादी के बाद पहली बार विदेश में तिरंगा लहराया था।

हालांकि वर्ल्ड वॉर टू के कारण 1940 और 1944 के ओलंपिक खेल नहीं हुए थे, लेकिन उससे पहले के तीन ओलंपिक खेलों में भारत गोल्ड जीत चुका था। उस दौर में ध्यानचंद भारतीय हॉकी के सबसे बड़े खिलाड़ी थे । 1936 के ओलंपिक में जब भारत ने स्वर्ण पदक जीता था तब बलवीर सिंह केवल 12 साल के थे। उस समय वह गोलकीपर के रूप में खेलते थे लेकिन बाद में उन्होंने फॉरवर्ड के रूप में खेलना शुरू किया। भारतीय हॉकी महासंघ के नवल टाटा तब अध्यक्ष थे और वह चाहते थे कि 1948 के लंदन ओलंपिक में भारत और पाकिस्तान की संयुक्त टीम ही भाग ले। लेकिन उनकी यह कोशिश नाकाम हुई और दोनों देशों ने अपनी अलग-अलग टीमें भेजी थी।

बलबीर सिंह को 1948 के ओलंपिक टीम में शामिल होने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। पहले 39 खिलाड़ियों की टीम में उन्हें शामिल नहीं किया गया था, लेकिन बाद में उनको टीम में शामिल किया गया ।

बलवीर सिंह को पहले मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मौका नहीं मिला था। लेकिन उन्हें अर्जेंटीना के खिलाफ दूसरे मैच में शामिल किया गया था। इस मैच को भारत में 9-1 से जीता था, इसमें से अकेले छह गोल बलबीर ने किए थे। परंतु विडंबना देखिए अगले मुकाबले के लिए बलवीर को फिर भारतीय टीम में शामिल नहीं किया गया। कई विरोध के बाद मैनेजमेंट ने बलबीर को फाइनल के लिए टीम में शामिल किया और ब्रिटेन को 4-0 से हराकर भारत ने गोल्ड अपने नाम किया था। इसमें से दो गोल अकेले बलबीर ने किए थे। फाइनल मुकाबले में कुछ भारतीय खिलाड़ी नंगे पैर खेले थे, हालांकि बलबीर सिंह ने पूरे जीवन पूरी पोशाक में और बूट पहन कर ही हॉकी खेली थी।

1952 के हेलसिंकी ओलंपिक खेलों में बलबीर सीनियर भारतीय टीम के उप कप्तान थे और उन्होंने तब पूरे टूर्नामेंट में 9 गोल दागे थे। इस तरह भारत का ओलंपिक खेलों में लगातार छठा स्वर्ण पदक झोली में आया था। हेलसिंकी की विशेषता यह थी कि बलबीर सिंह ओपनिंग सेरेमनी में भारतीय टीम के फ्लैग बीयरेर थे। उन्होंने सेमीफाइनल में हैट्रिक जमाई थी और फिर फाइनल में पोलैंड के खिलाफ 6-1 की जीत में अकेले पांच गोल किए थे। यह पांच गोल आज भी ओलंपिक हॉकी के फाइनल में सबसे ज्यादा व्यक्तिगत गोल का रिकॉर्ड है।



1956 के मेलबर्न ओलंपिक में बलबीर सिंह सीनियर को भारतीय टीम का कप्तान बनाया गया और इस बार उनके नेतृत्व में भारत ने फाइनल में पाकिस्तान को हराकर स्वर्ण पदक जीत लिया था। इस तरह बलबीर सिंह सीनियर भारतीय हॉकी के लीजेंड बन गये। इस ओलंपिक के अगले साल यानी 1957 में उनको पद्मश्री से सम्मान किया गया। यह सम्मान पाने वाले वे भारत के पहले खिलाड़ी थे। तब खिलाड़ियों के लिए अर्जुन पुरस्कार देने की शुरुआत नहीं हुई थी इस कारण इस सूची में उनका नाम शामिल नहीं है।
खेल छोड़ने के बाद बलबीर सिंह सीनियर ने कोचिंग में हाथ आजमाया। 1971 में वे भारतीय टीम को बतौर कोच कांस्य पदक दिलाने में सफल रहे। भारत को अब तक का एकमात्र विश्व कप चैंपियन बनाने वाला वाली टीम के भी बलबीर मैनेजर थे।
बलबीर ने। कुल 8 ओलंपिक मैचों में 22 गोल किए थे।

बलबीर का परिवार काफी क्रांतिकारी था। उनके पिता और चाचा इसके लिए विख्यात थे। एक बार पंजाब पुलिस ने बलबीर सिंह को गिरफ्तार कर लिया था। इसकी वजह यह नहीं थी कि वह कि उन्होंने कोई गलत काम किया था बल्कि टीम चाहती थी कि वह उनकी ओर से खेले।
बलबीर सिंह के जीवन में मई का महीना काफी मायने रखता है। जिस खिलाड़ी ने तीन ओलंपिक गोल्ड जीते थे, उस खेल में भारत को पहली बार 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में स्वर्ण पदक मिला था। तब भारत ने हॉलैंड को 26 मई 1928 को 3-0 से हराकर फाइनल जीता था। स्वर्ण पदक जीतने के 92 साल पूरे होने के एक दिन पहले ही 25 मई 2020 को बलवीर ने आखिरी सांस ली।

इसी तरह उन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय हॉकी कैरियर मई 1947 में शुरू किया था। जब वह श्रीलंका के दौरे पर गए थे। दूसरी ओर उनका अंतरराष्ट्रीय कैरियर मई 1958 में समाप्त हुआ था। इस तरह मई का महीना उनके जीवन के साथ जुड़ा रहा। अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में बलबीर सिंह ने 61 मैचों में कुल 246 गोल किए थे।

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