पटना। एक तरफ विश्व में महामारी के रूप में कोरोना संकट से बचाव से लोग परेशान हैं वहीं दूसरी तरफ बिहार के क्रिकेटर व खेल प्रेमी क्रिकेट विनाशक रूपी कोरोना वायरस से निजात पाने का रास्ता ढू़ढ रहे हैं। रास्ते ढ़ूढ़ते-ढ़ूढ़ते पहले भी कई साल बीते हैं और हाल का एक वर्ष का अमूल्य समय नष्ट हो गया जो फिर से बिहार क्रिकेट के लिए लौट कर आने वाला नहीं है। हर बार यही लगता है इस बार बेहतर होगा। ऐसा कुछ पिछले 29 सितंबर को भी लगा था।
बिहार में क्रिकेट की नई सरकार बनने के दिन (29 सितंबर) पटना के एक सितारा होटल में एक-दूसरे के लिए जीने-मरने की कसमें खाईं थीं। कसमे-वादे टूटते रहे और तेज अंधेरा छाता रहा। भविष्य की चिंता बिना किये एक-दूसरे को निपटाने में लगे रहे। संकल्प अधूरा, अहंकार बढ़ता गया।

बिहार क्रिकेट की अजब-गजब कहानी से 12 करोड़ लोगों वाला राज्य बिहार के लोग पूरी तरह से परिचित हैं लेकिन खिलाड़ियों व लोगों की चिंता को कूचल कर एक-दूसरे को बड़ा दिखाने में एक वर्ष का पूरा समय निकाल दिये। अब केवल दो वर्षों का समय शेष रह गया है अगर एक-दूसरे को पलटने के इरादे से बाहर नहीं निकले तो इसका खामियाजा राज्य के होनहार खिलाड़ियों को फिर से भुगतना पड़ेगा। खेल एवं खिलाड़ियों की चिंता को छोड़ कर लोग अहंकार की लकीर को बड़ा करने में लगे हैं जिसे आने वाला इतिहास कभी माफ नहीं करेगा। हद तो तब हो जाती है कि जब संगठन से बड़ा कुर्सी पर बने रहने की लालसा हो जाती है।
बिहार क्रिकेट एसोसिएशन में सबकुछ ठीक-ठाक रहे ऐसा कदापि नहीं हो सकता। अन्य राज्यों की प्रगति के आगे बौना दिखता बिहार को पटरी पर लाने का इरादा किसी में दिखता नजर नहीं आ रहा है। बीसीए के अंदर अहम की लड़ाई में कई तरह के खामियाजा अबतक भुगतना पड़ा। चाहे व बिहार सरकार से संघ का रजिस्ट्रेशन का मामला हो या बैंक खाते के संचालन का मामला हो, सपोर्टिंग स्टॉफ सहित विभिन्न तरह की नियुक्ति का मामला हो, विभिन्न कमेटियों के निर्माण का मामला हो, खिलाड़ियों के कल्याण का मामला हो, कार्यालय से जुड़ा मामला हो सभी जगह केवल मनमानी ही मनमानी अबतक देखने को मिली है। अगर इसी तरह के मामले आते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब बीसीसीआई के स्तर से कठोर कार्रवाई हो जायेगी।

अब जरा एक साल घटनाचक्र नजर डालें
►29 सितंबर को बिहार क्रिकेट संघ का चुनाव हुआ।
►दो पक्ष मैदान में थे और दोनों पक्षों को आधी-आधी सीट आई यानी तीन-तीन सीटें।
►फिर बिहार क्रिकेट की चिंता हुई और साथ चलकर विकास करने की बात हुई।
►विजय हजारे ट्रॉफी में बिहार टीम खेलने गई।
►बीच में छह प्लेयर चेंज किये गए और यहीं से दोनों पक्षों में दूरियां बढ़ने लगीं। अध्यक्ष खेमे से खूब पत्राचार किया गया। कई नोटिस जारी किये गए।
►इसके बाद भी बिहार का क्रिकेट अपनी गति से चलता रहा। टीम चेंज होते रहे।
►एक बड़े आयोजन की मेजबानी बिहार क्रिकेट एसोसिएशन ने की।
►जिला विवाद को निपटाने का काम ठीक-ठाक रहा। दोनों तरफ से अलग-अलग लिस्ट जारी किये गए पर लगभग समानता थी।
►इसके बाद एजीएम कराने की घोषणा हुई। अध्यक्ष खेमे ने एजीएम को आरा में कराने की घोषणा की। इधर सचिव खेमे ने इसे पटना में कराने की घोषणा कर डाली। इस विवाद को भी खत्म कर लिया गया और अंतत: एजीएम आरा में हुआ।
►एजीएम में कुछ विवाद हुआ और सचिव और कोषाध्यक्ष वहां हिस्सा नहीं लिये। साथ ही वहां खिलाड़ियों के प्रतिनिधियों को हिस्सा लेने को विवाद हुआ। इसी एजीएम में सचिव के काम पर रोक लगाने का ऑर्डर भी पास हुआ और एक जांच कमेटी बना दी गई।
►खिलाड़ियों के प्रतिनिधियों के हिस्सा नहीं लेने का विवाद भी लंबा खींचा।
► इसके बाद अध्यक्ष खेमे ने सचिव खेमे को दो पदाधिकारियों को अपने पक्ष में करने का प्रयास शुरू किया जिसमें वे सफल हुए। इसी बीच क्रिकेट सीजन भी समाप्त हो गया।
►उसके बाद लॉकडाउन हो गया। क्रिकेट गतिविधियां पूरी तरह ठप हो गईं। क्रिकेट गतिविधियां ठप हुई पर बयानवीरों के तीर निकलते रहे। एक-दूसरे पर बयान देते रहे।
►कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगा। बैंकों के अकाउंट सीज हुआ, खुला और फिर सीज हुआ।
►लॉकडाउन में ढील हुई तो फिर तल्खी आई। अध्यक्ष खेमे के एसजीएम में सचिव को बर्खास्त कर दिया गया। साथ ही इसी खेमे से ताल्लुक रखने वाले पूर्व सचिव को निलंबित कर दिया गया। इसके बाद पूरी तरह से दो खेमा तैयार हो गया।
►फिर सचिव खेमे का एजीएम हुआ तो अध्यक्ष खेमे के अध्यक्ष व संयुक्त सचिव को निलंबित कर दिया गया।
► झगड़ा अभी शांत नहीं हुआ है और दोनों एक-दूसरे को क्रिकेट से विदा करने के कसमों के साथ जुटे हैं।
►इन झगड़ों के बीच एक ही क्रिकेट की भलाई की बात हुई वह जिला संघों को एक-एक लाख रुपए सहायता राशि दी गई।

सवाल पूछता है बिहार क्रिकेट जगत
पहले .Com वालों से
►बिहार क्रिकेट एसोसिएशन में जितनी नई नियुक्तियां अबतक की गई क्या उसका एडवरटिजमेंट निकाला गया।
►कमेटियां बनीं उसमें क्या जिला संघ से नाम मांगे गए। मांगे गए होते पटना कोटे से जिन व्यक्तियों को अलग-अलग कमेटियां में जगह दी गई वह नहीं होता। कहीं यह तो नहीं संघ में एक खास दल और अपने चहेतों को जगह देने का प्रयास किया जा रहा है।
► माना लॉकडाउन के कारण अप्रैल के बाद आप क्रिकेट गतिविधियां नहीं करा पाये पर आप तो सत्ता में सितंबर में ही आये थे। घरेलू क्रिकेट तो जनवरी-फरवरी में शुरू किया जा सकता था। पड़ोसी राज्य झारखंड में तो जूनियर लेवल के घरेलू क्रिकेट तो दिसंबर से लेकर फरवरी तक आयोजित किये गए।
► माना लॉकडाउन में क्रिकेट गतिविधियां नहीं करा सकते थे पर अगर मोइनुल हक स्टेडियम की बुकिंग की होती तो उसकी देखभाल होते रहती तो आज हम कुछ इवेंट कराने की दहलीज पर रहते। इस दौरान आप अपने ग्राउंड स्टॉफ से पटना से इतर शहरों में बेहतर ग्राउंड का निर्माण करा सकते थे पर कुछ नहीं हुआ।
►खिलाड़ियों को पैसे देने की बात इतने देर से की जा रही है वह क्या पहले नहीं हो सकती थी।
► इस लॉकडाउन में बेविनार के जरिए खिलाड़ियों से लेकर अंपायर व कोच को जोड़ कर कुछ अच्छी क्रिकेट की बातें हो सकती थीं पर यह भी नहीं हुआ।
► नियुक्ति करने में बहुत जल्दीवाजी दिखाई पर काम लेना नहीं जानते। अगर काम लेना जानते तो मीडिया में खबर भेजने का जिम्मा जीएम पीआर के जिम्मे होता। पैसा कोई और ले और मुफ्त में न्यूज भेजे संघ के प्रवक्ता और मीडिया कमेटी। यह कैसा न्याय है।
► जब हर काम के लिए जीएम की बहाली हुई तो फिर पदाधिकारी को पीए रखने की परंपरा क्यों शुरू कर दी। उन पैसों से दूसरे काम किये जा सकते थे। क्रिकेट जानकार तो कहते हैं कि केवल बिहार में ही ऐसी परंपरा शुरू है।
► बड़े-बड़े पदाधिकारियों को मेहताना मिलता रहा। आपका सीओएम से लेकर एजीएम-एसजीएम होता रहा पर खिलाड़ियों को बेहतर मैदान उपलब्ध कराने वाले ग्राउंड स्टॉफ को वेतन क्यों नहीं मिला।
► कोरोना का बहाना बना कर उन ग्राउंड स्टॉफ का वेतन काटने का प्रयास गलत नहीं है। आपने उनसे काम नहीं लिया वह तो तैयार थे। आपके पास ग्राउंड नहीं था और दोष उन पर मढ़ रहे हैं।

अब सवाल संसद (जिला संघों) से
►सवाल उन सांसदों यानी जिला संघों के पदाधिकारियों से। जिस तरह आप सभी एजीएम व एसजीएम के दौरान सचिव सहित कुछ अन्य लोगों पर तरह-तरह के आरोप गढ़े और उनका निलंबन से लेकर बर्खास्तगी तक करा दिया। आप सभी संसदीय प्रणाली के तहत बिहार क्रिकेट एसोसिऐसन के अंतर्गत कार्य करते हैं। प्रत्येक आमसभा,विशेष आमसभा आदि के दौरान किसी व्यक्ति विशेष को प्रत्येक नियुक्ति, समिति गठित करने आदि के लिये अधिकृत किये जाने के संघ के निर्णय पर क्या आप सबों ने अध्यक्ष महोदय/हॉउस से इस बाबत् कभी पूछा कि संसदीय प्रणाली के प्रतिकूल/विरुद्ध इस प्रकार संघ द्वारा कार्य क्यों किया जा रहा है और यदि इसी प्रकार सभी कार्यों के लिये किसी व्यक्ति विशेष को हीं अधिकृत किया जाना है तो इतने लोगों या आमसभा,विशेष आमसभा आदि की अवश्यकता हीं कहां है। इसके क्या प्रक्रिया आपने अपनाई। या बॉस ने कह दिया ये फलाना जीएम, ये फलाना जीएम, ये सीईओ नियुक्त किये जाते हैं और आपने हां में हां मिलाई,कृपया बताएं।
► सवाल उठाने पर जो डंडा चलाया जा रहा है। ऐसा तो पहले भी होता था। आप तो लोकतंत्र स्थापित करने के लिए आये थे। क्या जो पहले होता था वह अब भी होगा। कभी इस बात को लेकर सवाल दागे गए।

अब सवाल कुछ सिद्धांतवादियों से जो हमेशा सत्ता पक्ष में रहते हैं
► सवाल उन कुछ सिद्धांतवादियों से जो हमेशा सत्ता पक्ष के साथ रहते हैं और कुछ समय के बाद उनसे अलग भी हो जाते हैं। वे बड़े-बड़े सिद्धांत की बात करते हैं। क्या वे दिल पर हाथ रख कर बोल सकते हैं कि अगर यही काम पूर्व के सचिवों के काल में होता तो वे चुप रहते। जानता हूं आप कुछ नहीं बोलेंगे। आप चुप नहीं बैठते। अपने-अपने तरीके से विरोध जताते। कोई सोशल मीडिया पर प्रवचन देता तो कोई दूसरे से प्रवचन दिलवाता। जरा सोचिए। कमेटी बनती है और पटना कोटे से सत्ताधारी दल के कई नेता कमेटी में आ जाते हैं और आप सभी देखते रह जाते हैं। अगर उस नेता का पटना के किसी क्लब से ताल्लुक रहता तो कोई बात नहीं थी पर उस शख्स को पटना के क्रिकेट रहनुमा भी नहीं जानते हैं और वह बीसीए की कमेटी। इस तरह की नियुक्ति प्रक्रिया अगर पहले के अधिकारियों ने किया होता तो आप न जाने क्या-क्या कर देते है। यह दोहरी नीति मत अपनाएं साहेब।
अब सवाल .in वालों से
► इनसे ज्यादा सवाल नहीं किये जा सकते हैं। बस कुछ सवाल हैं। पहला सवाल जिला कमेटियों को लेकर। आपकी ही साइट पर कुछ महीनों पहले जिला विवाद निपटने के बाद जो लिस्ट जारी हुई थी और साइट पर फूल मेंबर वाली जो लिस्ट है उसमें अंतर है। ऐसा क्यों। दो तरह की बातें कैसे।
► एक सवाल और। एक एफिलिएशन रिव्यू कमेटी बनी थी। उस एफिलिएशन रिव्यू कमेटी ने कुछ ऐसे जिलों के बारे में कुछ नहीं लिखा जहां के पदाधिकारी नौ साल तो छोड़िए उसके काफी पहले से हैं। ऐसा क्यों।
आखिर जिला विवाद को इतनी तरजीह क्यों। क्रिकेट जानकारों की मानें तो जिला विवाद को बेवजह तरजीह दिया जा रहा है। जिसने वोट कर सत्ता में बैठाया वही सही हैं। अगर किसी को गलत लगता था वोटरलिस्ट तैयार करने के समय विरोध करना चाहिए था और चुनाव कराने नहीं देना चाहिए था। क्रिकेट जानकार कहते हैं कि विधायक जीत कर आयें और मुख्यमंत्री चुन दें और उसके बाद कहा जाए कि आप उस क्षेत्र के विधायक नहीं रहे हम वहां दूसरा विधायक नियुक्त कर देते हैं। ऐसे तो जिला विवाद की नींव वर्ष 2015 में पड़ा। उससे सत्ता भी हासिल हुई पर क्या सत्ता में आने के बाद उन लोगों ने वैसे लोगों को पूछा नहीं।
अब सवाल चौकीदार को जोकर व चोर कहने वाले लोगों से
बिहार क्रिकेट एसोसिएशन में अबतक जितने वे चौकीदार (यानी सचिव) अपनी जगह अड़े रहे पर उन्हें कभी चोर, जोकर जैसे विशेषणों से सोशल मीडिया पर कमेंट करने वाले नतमस्तक होते रहे। इससे यही समझा जाए न कि सारे चौकीदार सही थे और उन पर आरोप लगाने वाले ही गलत थे और वे अपने फायदे के लिए चौकीदार से हटते व सटते गए। जो व्यक्ति अबतक बिहार क्रिकेट एसोसिएशन की बुराई और इसके लोगों को कितनी बातें कहीं वह आज नेतृत्व करने की बात कर रहे हैं। उसने थाने से लेकर कोर्ट तक बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को घसीटा। वाह भई वाह। कहां गया सिद्धांत।
अंत में बिहार क्रिकेट के सारे रहनुमाओं को चाहिए की नफरत की लाठी फेंक, जिद को त्याग कर आगे आना चाहिए। आप सभी क्रिकेट प्रेमी हैं। इसीलिए आपस में मिलजुल कर बिहार के क्रिकेट के विकास की बात करें। सबों का संकल्प बिहार क्रिकेट की भलाई की बात है तो झगड़ा किस बात का। पर अगर संकल्प बिहार क्रिकेट के विकास का नहीं तो यों तो लड़ते-झगड़ते रहें। कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगते और लगाते रहें। पर जरा ध्यान रहे क्रिकेट खेलने वाला आपके बीच का भी होगा जिसका कैरियर कहीं आपसबों की जिद की बलि न चढ़ जाए। सद्बुद्धि के इंतजार में हजारों बिहारी क्रिकेटर के साथ बिहार करोड़ों जनता।