कुमार अनिल
पटना। क्रिस गेल, धौनी, रैना जैसे धुरंधर बल्लेबाजों के लिए बल्ले बना कर देनेवाले बल्ला-निर्माण की बारीकियों से वाकिफ देव प्रकाश पांडेय और उनकी कारीगरों की टीम पटना स्थित जावा Sports के लिए काम कर रही है।
पटना में भी अब रेडी टू प्ले बल्ले बन रहे हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर के हैं। जावा स्पोर्ट्स ने कुछ ही महीने पहले बिहार की राजधानी पटना में प्रोडक्शन शुरू किया है। इसके फेसबुक पेज पर आप जाएं, तो वहां सबा करीम, वर्तमान में बिहार रणजी टीम के कप्तान आशुतोष अमन के वीडियो मिलेंगे। बिहार के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी प्रत्यय अमृत मैदान में खेलकर यहां बने बल्ले की ग्रिप और बैलेंस की सराहना कर रहे हैं। यहां के बिहार से आईपीएल के लिए चुने गए खिलाड़ियों ने भी अपने सामने खड़े होकर बल्ले बनवाए हैं।
इंटरनेशनल क्लास के बल्ले यहां बनने के पीछे कड़ी मेहनत, क्वालिटी के साथ कोई समझौता नहीं का उसूल है। कश्मीर में श्रीनगर तक तो कोई भी जा सकता है, पर अनंतनाग जाने के लिए हिम्मत चाहिए। देव प्रकाश पांडेय खुद कश्मीर के अनंतनाग सहित भीतर के इलाकों में जाते हैं और बल्ले के लिए बागड़(क्लैप्ट) का चुनाव करते हैं। हर बागड़ पर हस्ताक्षर करते हैं, ताकि वही बागड़ ट्रांसपोर्ट होकर जावा स्पोर्ट्स, पटना पहुंचे। फिर पटना में उसकी कटिंग, ग्रैंडिंग,प्लानर, चुग मशीन की प्रक्रिया, फिनिंशिंग, नोकिंग और से फाइनल प्रेसिंग और फिनिशिंग की जाती है।
सिंगापुर की लकड़ी से हैंडल
बल्ले में हैंडल का अपना महत्व है। अगर यह सही ढंग से नहीं बना, तो जब 150 की स्पीड से गेंद आएगी, तो हाथ में झन्नाटा लगेगा। साथ ही हैंडल बल्ले में बैलेंस भी देता है। यहां हैंडल के लिए बांस सिंगापुर से आता है, जो लाठी जैसा होता है। कटिंग के बाद उसके भीतर खास तरह से रबर लगाया जाता है, ताकि उसमें लचक आए।
कोई केमिकल का इस्तेमाल नहीं
बल्ले की बफिंग से पहले इसे छूने पर थोड़ा रुखड़ापन महसूस होता है, बफिंग के बाद यह इतना चिकना हो जाता है जैसे किसी ने इसपर चेहरे पर लगाए जानेवाला पावडर लगा दिया हो। इसी तरह प्रेसिंग भी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। अच्छी प्रेसिंग हो, तो बल्ले से ठक-ठक की आवाज आती है। यहां चार बार प्रेसिंग की जाती है, जबकि कई जगह एक ही बार प्रेसिंग करके दे दी जाती है।

यहां हर बल्ले की नोकिंग भी
बल्ला तैयार होने के बाद मशीन में उसकी नोकिंग की जाती है, जिसमें 8-10 हजार बार बल्ले को नोक किया जाता है। इसी काम के लिए खिलाड़ियों को बल्ला खरीदने के बाद दो-ढाई हजार अलग से खर्च करने पड़ते हैं। जावा नोकिंग करके देता है। नोकिंग से बल्ले में दाग लग जाते हैं, इसलिए नोकिंग के बाद फाइनल फिनिशिंग की जाती है और रेडी टू प्ले बल्ला दिया जाता है।
सभी कारीगर पंजाब-कश्मीर से
यहां काम करनेवाले कारीगर, जिन्हें कलाकार कहना ज्यादा उचित होगा, मूलतः बिहार के हैं, पर वे 20-20, 25-25 साल से कश्मीर या पंजाब में बल्ला बना रहे थे। इन कलाकारों को जावा ने बिहार बुलाया। पवन पासवान 25 साल कश्मीर और पंजाब में बल्ला बना चुके हैं। देश के जितने बड़े खिलाड़ी हैं, सबके लिए।
देवप्रकाश पांडेय प्रोडक्शन डायरेक्टर हैं। वे धौनी से लेकर देश के सभी बड़े खिलाड़ियों को बल्ले बनाकर दे चुके हैं। उनका पहला सवाल यही होता है कि आपको कैसा बल्ला चाहिए। कितने ग्राम का बल्ला चाहिए। फिर वैसा ही बल्ला बनाकर देते हैं।

कीमत आधी से भी कम
जावा स्पोर्टस में इंटरनेशनल स्तर के बल्ले ब्रांडेड कंपनियों से आधी से भी बहुत कम कीमत पर मिलती है। इसकी वजह है ब्रांडेड कंपनियों को प्रचार पर करोड़ों खर्च करना पड़ता है। देवप्रकाश कहते हैं कि इससे बल्ले महंगे हो जाते हैं, जिसे साधारण खिलाड़ी खरीद नहीं पाते। जो बल्ले ब्रांडेड कंपनियां 50-60 हजार देंगी, वही बल्ला उनके यहां 10-12 हजार में मिल जाएंगे। यहां बल्ले की कीमत 4200 रुपए से शुरु होती है।

सबसे बड़ी बात
देव प्रकाश बताते हैं कि उनके यहां एक व्यक्ति आए और कहा कि कश्मीर विलो पर इंग्लिश विलो लिखकर चिपका दीजिए। कौन पहचानेगा! इस पर देवप्रकाश ने कहा कि सामने गेट खुला है, आप जा सकते हैं। यहां फर्जी काम नहीं होता। जावा जो दावा करता है, उस पर आप भरोसा कर सकते हैं। और भरोसा भी किसी के कहने पर आंख मूंदकर करने की जरूरत नहीं, बल्कि खुद अपने सामने बल्ला तैयार होते देख कर भरोसा करें।
जावा Sports के बारे में क्या है राय देखें इस वीडियो में





