नई दिल्ली। रांची के जवाहर विद्या मंदिर में स्कूल की फुटबॉल टीम में गोलकीपिंग करने वाले शर्मीले से लड़के को अचानक क्रिकेट टीम में विकेटकीपिंग की जिम्मेदारी देने वाले केशव रंजन बनर्जी को यकीन था कि महेंद्र सिंह धौनी सबसे अलग है और एक दिन जरूर उन्हें अपने इस फैसले पर नाज होगा ।
धौनी को क्रिकेट का ककहरा सिखाने वाले उनके बचपन के कोच बनर्जी के उस फैसले क्रिकेट जगत सदैव उनका ऋणी रहेगा। रांची के उस स्कूल से भारतीय क्रिकेट टीम के सफलतम कप्तान बनने तक के सुनहरे सफर पर शनिवार को धौनी के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद विराम लग गया।
बनर्जी आज भी रांची में बच्चों को खेल सिखाते हैं और धौनी की कामयाबी के बाद तो हर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे भी वही सब हासिल करें लेकिन कोच का कहना है कि धौनी जैसा शिष्य बरसों में एक ही होता है।
उन्होंने न्यूज एजेंसी भाषा से बातचीत में कहा, मैंने तो उसे बस राह दिखाई लेकिन रास्ता उसने तय किया। उसके जैसा शिष्य किस्मतवालों को मिलता है। उसकी कहानी एक मिसाल है और आने वाली कई पीढ़ियों को उससे प्रेरणा मिलेगी। एक गुरू का फर्ज है कि हर शिष्य पर मेहनत करे और जब धौनी जैसा मुकाम कोई शिष्य हासिल करता है तो यही असल गुरूदक्षिणा होती है।
धोनी के संन्यास के फैसले पर उन्होंने कहा, उसका हर फैसला यूं ही सरप्राइज होता है। मैं हमेशा कहता आया हूं कि वह खुद जानता है कि उसे कब संन्यास लेना है। किसी को उसे बताने की जरूरत नहीं है और यही बात उसे अलग बनाती है।
सबसे पहले 1992 में धोनी से मिलने वाले बनर्जी फुटबॉल के मैदान पर धोनी की गोलकीपिंग देखकर उसके मुरीद हो गए थे। उन्होंने अतीत के पन्ने खोलते हुए उस दिन के बारे में बताया ,‘‘ मुझे आज भी वह दिन अच्छी तरह याद है ।मैंने उसे फुटबॉल मैच खेलते देखा और उसकी डाइविंग, ग्रिप , गोलकीपिंग की समझ देखकर मैं हैरान रह गया । उस समय स्कूली स्तर पर इतने प्रतिभाशाली बच्चे कम होते थे तो मैने सोचा इसे क्रिकेट टीम में क्यो ना डाला जाये।