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Monday, December 23, 2024

1983 WORLD CUP फाइनल : जीत में अहम योगदान था इस गेंदबाज का, जानें उसके बारे में

वल्र्ड कप क्रिकेट 1983 की चैंपियन भारतीय टीम के सदस्य बलविंदर सिंह संधू आज (3 अगस्त) 64 साल के हो गए हैं। मध्यम गति के इस तेज गेंदबाज ने अपने छोटे से क्रिकेट कैरियर बड़े काम किये हैं। 37 साल पहले जीते विश्व कप के फाइनल क्या पूरे टूर्नामेंट में इन्होंने जो गेंदबाजी की उसकी बात मत पूछिए। तो आइए जानते हैं इनके बारे में कुछ अहम बातें।बलविंदर सिंह संधू के पिता हरनाम सिंह नाज नामी पंजाबी कवि थे। वे भारतीय जीवन बीमा कंपनी कंपनी के एजेंट थे। अपने बेटे का मैच देखने वे जो ग्राउंड जाते और चुपचाप एक कोने में बैठकर अपने बेटे को खेलते देखते रहते।

बलविंदर सिंह संधू शुरुआती दिनों में ऑफ स्पिन गेंदबाजी किया करते थे। एक दिन वे प्रैक्टिस ग्राउंड में नये बॉल से गेंदबाजी कर रहे थे। सचिन तेंदुलकर के गुरू रहे रामाकांत आचरेकर ने उन्हें गेंदबाजी करते देखी और कुछ टिप्स दिये। उन्होंने कप्तानों को निर्देश दे रखा था कि एक छोर से इनसे 20 से 20 ओवर गेंदबाजी करायी जाए और स्पिन फेंकने नहीं दिया जाए।


बलविंदर सिंह संधू की बहन परमजीत कौर की शादी नामी बास्केटबॉल खिलाड़ी सज्जन सिंह चीमा से हुई है। चीमा ने भारतीय टीम का भी प्रतिनिधित्व किया है। चीमा को वर्ष 1999 में शानदार अर्जुन पुरस्कार दिया गया।

टेस्ट क्रिकेट में दो अद्र्धशतक हैं। हालांकि संधू को उनकी गेंदबाजी के लिए याद किया जाता है, लेकिन उनकी बल्लेबाजी को अक्सर गुमनामी में धकेल दिया जाता है। उच्चतम स्तर पर उन्होंने अपनी प्रतिभा की झलक दी। हैदराबाद में पाकिस्तान के खिलाफ अपने पहले टेस्ट में इमरान खान और सरफराज नवाज सहित सात बल्लेबाजों को 72 रन देकर पवेलियन भेजा था। इस समय ये दोनों फॉर्म में थे। इस मैच में संधू ने 88 गेंदों पर नौ चौकों और दो छक्कों की मदद से 71 रनों की तेज पारी खेली। उस प्रयास से ही भारत को कुछ सम्मान हासिल हुआ,क्योंकि पाकिस्तान का स्कोर बहुत बड़ा था और भारत को फॉलोऑन खेलना पड़ जाता।

बलविंदर सिंह संधू 1983 विश्व कप विजेता भारतीय टीम के महत्वपूर्ण सदस्य रहे हैं। उन्होंने इस टूर्नामेंट में शानदार गेंदबाजी की है। संधू ने अपनी जीवनी भी लिखी है जिसका नाम है “द डेविल्स पैक”। इस पुस्तक के सह-लेखक ऑस्टिन कॉटिन्हो थे, जो मुंबई के पूर्व रणजी संभावित और संधू के करीबी दोस्त थे।

अब बात 1983 विश्व कप की जिसमें संधू ने शानदार खेल दिखाया। 184 रनों के छोटे लक्ष्य का पीछा करने उतरी वेस्टइंडीज टीम के धुरंधर ओपनर गॉर्डन ग्रीनिज (1 रन) को बोल्ड कर भारत को पहली सफलता दिलाई थी। दरअसल उस मैच में भारत को शुरुआती ब्रेकथ्रू की जरूरत थी, जिसे संधू ने पूरा किया और वह अपने कप्तान के विश्वास पर खरे उतरे थे। ग्रीनिज इस विश्व कप में दूसरी बार संधू के शिकार बने थे। दोनों ही बार उन्होंने ग्रीनिज को बोल्ड किया। फाइनल मैच में कपिल देव ने संधू से कहा था कि ”आप सिर्फ ब्रेकथ्रू दिलाओ..आगे हम देख लेंगे।’

बलविंदर सिंह संधू का बिहार से काफी गहरा नाता है। वे यदा-कदा यहां बच्चों को विशेष ट्रेनिंग देने के लिए राजधानी में चलने वाले क्रिकेट एकेडमी ऑफ बिहार में भारतीय युवा क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान अमिकर दयाल के बुलावे पर आते रहते हैं।

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