अरविंद कुमार सिन्हा, फ़िडे मास्टर
पटना। दूसरी पीढ़ी की कहानी के प्रथम भाग की पिछली चर्चा के अंत में हम उभर रहीं युवा प्रतिभाओं की चर्चा करते हुए वर्ष 1979 तक पहुंचे थे |इसके पहले कि हम बिहार शतरंज में अचानक उपजी गुटबंदी और राजनीति की चर्चा करें, जिसने बिहार शतरंज का विभाजन तक करा दिया, हम 1982 की राज्य प्रतियोगिता में उभरी युवा प्रतिभाओं से परिचित हो ले ताकि घटनाओं तथा चर्चा का तारतम्य न टूट पाये | हाँ, तो 1982 की पटना साईन्स कॉलेज में आयोजित राज्य प्रतियोगिता में पटना के कल्याण मोहन जयपुरियार विजेता बन चमके जबकि छपरा के वाई पी श्रीवास्तव,जो बाद में कई बार बिहार चैंपियन भी रहे और राष्ट्रीय स्तर पर नामी खिलाड़ियों में जगह बनाई, भी जुड़ गए |
तभी धाडवाड और खामगांव की 1980 और 1981 की राष्ट्रीय जूनियर प्रतियोगिता में प्रमोद कुमार सिंह का विजेता होना बिहार शतरंज के भाल पर मानो मुकुटमणिके समान जगमगाने लगा |

प्रमोद को एशियन जूनियर में ढाका तथा वर्ल्ड जूनियर में मेक्सिको जाना था, जो 1981 में होनी थी|सचिव अरविंद ने भारतीय शतरंज महासंघ एशियन जूनियर के लिए कोच के रूप में अजीत कुमार सिंह का नाम भेजाऔर वे प्रमोद के साथ ढाका गए | अब बारी थी वर्ल्ड जूनियर, मेक्सिको की जिसके लिए कार्यकारिणी में अरविंद के मुक़ाबले अजीत कुमार सिंह के पक्षधार के बहुमत होने के कारण,निर्णयानुसार,अजीत सिंह का नाम भेजा गया, पर भारतीय महासंघ द्वारा फंड नहीं दिये जाने के कारण कोच नहीं गया और प्रमोद सिंह को अकेले जाना पड़ा |
अगले वर्ष यानी 1981 में फिर जूनियर खिताब बिहार के नाम आया |1981 जूनियर में दूसरा स्थान मिला था अरविंद एरन को जो मैनुएल एरन के पुत्र थे |मैनुअल एरन जो शतरंज महासंघ के सचिव थे, 1981 में पड़ा छोड़ा और नसीरुद्दीन गालिब सचिवबने और अध्यक्ष बने बी वर्मा |मैनुअल एरन द्वारा प्रमोद की वास्तविक उम्र पर सवाल उठाए गए|तत्कालीन अध्यक्ष बी वर्मा साहब, जो केंद्रीय पुलिसबल के माहानिरीक्षक तथा भारत के आंतरिक सुरक्षा एकैडमी के महानिदेशक भी, ने बिहार सचिव को गोपनीय पत्र के माध्यम जांच कर रिपोर्ट मांगी |उम्र की जांच के मेडिकल का चलन तब नहीं था |अरविंद ने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति से प्रमोद के मैट्रिक प्रमाणपत्र की प्रति लेकर अभिप्रमाणित कर भेज दी,और तब मामला शांत हो पाया|

दूसरी बारी थी एशियन जूनियर प्रतियोगिता की, जो फिलीपींस में होनी थी| इस बार कार्यकारिणी के बहुमत पक्ष ने पी एन शर्मा साहब का नाम दे दिया जिस पर एतराज कौन करता ? सो उन्हें प्रमोद सिंह के कोच के रूप में भेजा गया | वर्ल्ड जूनियर डेनमार्क में अगले साल यानि 1982 जून-जुलाई में थी |पर अरविंद ने मार्च में ही हटने का फैसला कर लिया और चुनाव की घोषणा कर दी | परंतु चुनाव पूर्व की आम सभा में नई सदस्यता के द्वार खोल दिए|तब 5 रुपये का फार्म भरकर कोई भी सदस्य या वोटर बन सकता था | कार्यकारिणी के भीतर और बाहर रहे (मुख्यत: आर एन सिन्हा तथा ए आर खान ) दोनों प्रकार के लोगों को अपनी संख्या बढ़ाने का मौका मिला|बंडल में सदस्यता फॉर्म आए जिससे किसी एक पक्ष का बहुमत नहीं रहा अर्थात अब योजक का साथ अपरिहार्य था |
बहरहाल,ए आर खान (अपने गुट के साथ)सचिव बने और अध्यक्ष पद पर प्रो रामाकांत प्रसाद सिंह आए | खान साहब का नाम इसलिए आया क्योंकि माना गया कि महासंघ के सचिव गालिब साहब से उनके अच्छे संबंध हैं इसलिए डेन्मार्क जाने की राह आसान होगी | जैसा अपेक्षित था,अजीत सिंह का नाम फिर पास हो गया और वे डेनमार्क गए |
पिछली कार्यकारिणी के घटनाओं से परिचित अनुभवी खान साहब ने कार्यकारिणी में अपने समर्थकों को ख़ासी संख्या में रख लिया था और जैसी अपेक्षा भी थी,शीघ्र ही खान साहब अपनी चाल में चलने लगे| पकड़ ढीली होते देख साल भी न बीता कि खान साहब को हटाने के मुहिम चल पड़ी |पर तब तक बिहार शतरंज पर अपनी पकड़या बहुमत की महत्ता सबको समझ में आ चुकी थी | वैसे प्रमोद सिंह ने तीसरी बार 1982 में भी नेशनल जूनियर खेल कर चांस लिया पर पिछड गए |

खान साहब को हटाए जानेका खान साहब के समर्थक अजय शर्मा ने पुरजोर विरोध किया और गरमागरम मीटिंग में 3 अप्रैल 1983 को चुनाव का दिन तय हुआ और एक बार फिर दोनों पक्षों द्वारा सदस्यता की होड़ लगी| दोनों तरफ से सदस्यता फॉर्म के बंडल,पैसे, यहाँ तक कि ब्लैंक चेक तक दिये गए | अजय शर्मा गुट ने प्रेमेन्द्र कुमार और प्रभाकर झा को आगे किया जबकि अजित समर्थक गुट ने शर्मा साहब तथा आर एन सिन्हा को आगे कर चुनाव में उतरने की नीति बनाई |फिर समर्थन लेनेकी मुहिम चली |देर रात, कभी एक बजे तक भी बैठकें होतीं, रणनीतियाँ बनतीं | प्रभावशाली सदस्यों को पक्ष में करने के लिए ….’रथ चला परस्पर बात चली, सम दम की टेढ़ी घात चली’ की तर्ज पर साम,दाम,भेद, सभी चले | (1982 के अंत आते आते श्रीवास्तव जी गंभीर बीमारी की जकड़ में आ चुके थे और अस्पताल में थे | उनके असामयिक निधन 2 मार्च 1983 को हो गया) आपसी समझौते के कई दौर चले, पर निष्फल रहे|अनुभवी खान साहब ने चतुर राजनीतिज्ञ की भांति जब यह भाँप लिया कि उनका दोबारा सचिव बन पाना संभव नहीं है, 3 अप्रैल 1983 को अपने गुट को अलग करते हुये चुनाव करा लिए जिसमें प्रेमेन्द्र कुमार को सचिव तथा प्रभाकर झा की अध्यक्ष के रूप चुन लिया गया | तब गुटबाजी चरम पर थी| साम,दाम,भेद सब चले |यहाँ तक कि समझौते के कई प्रयास भी हुए, पर सभी निष्फल रहे |अजित समर्थक दूसरा गुट भी हार मानने वाला नहीं था उसने भी अपना चुनाव अलग से उसी दिन कराया |असली संघ होने के दावे के साथ दोनों गुट शतरंज महासंघ के अध्यक्ष बी वर्मा साहब के पास माउंट आबू तक गए,गया परंतु उन्होंने बिहार शतरंज की मान्यतानिलंबित कर दी |

बताते चलें कि चूंकि 1983 के चुनाव पूर्व की मीटिंग में ही पूर्णिया को राज्य शतरंज प्रतियोगिता का आबंटन हो चुका था, सो राज्य प्रतियोगिता अबाध चली और अहमदाबाद की राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता में बिहार टीम यथावत खेली | परंतु, 1984 के लिए आर एन सिन्हा दवारा राज्य प्रतियोगिता पटना कॉलेज में शुरू करा दी गई |मान्यता के असमंजस में पड़े कई खिलाड़ी नहीं खेल पाये जिसकी सूचना मिलते ही शतरंज महासंघ ने त्वरित कार्रवाई करते हुये सिंहभूम जिला को जमशेदपुर में आयोजित कराने का आदेश दे दिया | पटना में खेल रहे काफी खिलाड़ी खेल छोड कर आनन-फानन जमशेदपुर भागे |

इसी बीच आर एन सिन्हा गुट के तरफ से मुकदमा दायर हो गया और कोर्ट के आदेश के साथ आर एन सिन्हा अपनी टीम लेकर तेनाली में आयोजित राष्ट्रीय बी में गए परंतु शतरंज महासंघ ने जमशेदपुर से चुनी टीम को ही खेलने दिया | धीरे- धीरे वह टाईटिल सूट हाई कोर्ट तक गया| बिहार शतरंज संघ जो सोसाईटीज़ के रूप में निबंधित था परंतु शिथिलावस्था में पड़ा था| आर एन सिन्हा गुट ने इस बीच निबंधन विभाग में चुनाव की सूचना और कार्यकारिणी की सूची जमा कर दी थी और फिर निबंधित होने के उचित दावे के आधार पर टाईटिल सूट में जीत तो मिली पर कोर्ट ने कह दिया कि मान्यता देना या न देना शतरंज महासंघ का परमाधिकार है | इस प्रकार,अंत्तत: 1985 जनवरी में प्रेमेन्द्र कुमार और प्रभाकर झा के खेमे को को भारतीय शतरंज महासंघ की मान्यता मिल गई |[ परंतु इस बीच प्रेमेन्द्र कुमार के निधन हो जाने के बाद प्रभाकर झा सचिव तथा डा अमरनाथ सिंह अध्यक्ष और अजय नारायण शर्मा कोषाध्यक्ष बने ]साथ ही, चूंकि नियमानुसार बिहार शतरंज संघ नाम में बदलाव आवश्यक था, विजेता पक्ष द्वारा 26 जनवरी 1985 को दरभंगा हाउस में आहूत आम सभा की बैठक में राज्य संघ का नाम बदल कर ऑल बिहार शतरंज संघ कर दिया गया | परिणाम चाहे जो भी हो,बिहार शतरंज के दो महत्वपूर्ण वर्ष आपसी गुटबाजी की भेंट तो चढ़ ही गए !

आप देखें कि एक वह दौर था जब सचिव पद के लिए पहले आप- पहलेआप की रीति थी | संघ की स्थापना से 1982 तक कभी सचिव पद के लिए न तो कभी चुनाव हुये और न किसी सचिव ने दोबारा चुनाव लड़ा | यहाँ तक कि अरविंद कोइच्छुक पा बी के श्रीवास्तव जैसे वरिष्ठ सम्मानित खिलाड़ी ने भी दोबारा चुनाव नहीं लड़ा |परंतु अब हस्तिनापुर हथियाये रखने की होड़ हो रही थी |उन दिनों महाभारत के पात्र मानों सजीव हो उठे थे जिनमे श्रीकृष्ण भी थे, भीष्म, द्रोणाचार्य बी, यहाँ तक कि शकुनी और शल्य भी | पर निर्विवाद रूप से विदुर थे,प्रो रामाकांत प्रसाद सिंहजिन्हें दोनों पक्षों में समान आदर प्राप्त रहा और वे पूरे झंझावात में निर्लिप्त रहे |बिहार शतरंजत्रेता के बाद द्वापरयुग में प्रवेश कर चुका था |
यह दूसरी पीढ़ी की कहानी का दूसरा और अंतिम पार्ट है।