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Tuesday, December 24, 2024

Bihar Cricket में डस्टबीन की तरह उपयोग हुए कई मठाधीश

पटना। दरअसल डस्टबीन का प्रयोग घर में यूज किए गए सामान को जमा कर बाहर फेंकने में होता है। आजकल इसी डस्टबीन की चर्चा बिहार क्रिकेट संघ में खूब हो रही है। हो भी क्यों नहीं बिहार क्रिकेट संघ के महादेव ने पुरानी कहावत है कि “खेत खाये गदहा, मार खाये जोलहा” उसी तर्ज पर समय-समय पर अपने हित में डस्टबीन की तरह उपयोग करने के बाद एक-एक मठाधीश को किनारे लगा दिया और फिर अगला उपयोग होने वाला व्यक्ति कौन होगा? उसकी तलाश में लग गए।

संघ में महादेव के नाम से चर्चित उस व्यक्ति ने सबसे पहले सचिव संजय कुमार मंटू का उपयोग किया। उसे सेलेक्शन का लोभ देकर खुद ही त्रिस्तरीय कमेटी के चेयरमैन बन बैठे और लोकपाल पर भी अपने हिसाब से बनवा लिया। बाद में भस्मासुर की तरह उसी सचिव को झुठा आरोप लगाकर बाहर का रास्ता दिखा दिया। तबतक बिहार क्रिकेट संघ के भी मठाधीश उसकी इस चाल को समझ नहीं पाए।

सचिव मंटू की विदाई के बाद बारी आई संयुक्त सचिव कुमार अरविंद की। कुमार अरविंद ठहरे ठेंठ बाबू साहब। वे उसकी इस चाल को समझ गए और डस्टबीन बनने को तैयार नहीं हुए। फिर क्या महादेव ने उनकी विदाई की पृष्ठ भूमि तैयार कर ली। अबकी बारी आई जिला संघों के प्रतिनिधि संजय सिंह की और क्रिकेट संचालन के लिए बना दिया क्रिकेटिंग गतिविधि के इंचार्ज।

महाशय बिहार क्रिकेट के सबकुछ खुद बन बैठे हैं। संजय सिंह के कंधे पर बंदूक चलाने की रणनीति बनाई और काफी हद तक सफल भी रहे और अंत होते होते संजय सिंह को भी डस्टबीन बनाकर छोड़ दिया। यह तो कहानी है कमेटी ऑफ मैनेजमेंट की।

अब सुनिए उनलोगों की कहानी जिन्होंने उन्हें बिहार क्रिकेट संघ में स्थापित किया। इसमें अरविंद सिंह ,नीरज राठौर, सुबीर मिश्रा, ओमप्रकाश तिवारी और सोना सिंह सरीखे लोग शामिल हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि महादेव के नाम से चर्चित व्यक्ति ने बीस साल पुराने संबंध वाले रिश्तेदार ओमप्रकाश तिवारी को भी नहीं बख्शा।

उनका भी जमकर उपयोग किया और, जब उपयोगिता खत्म हुई तो उन्हें भी एक केस में फंसाने की बड़ी रणनीति बनाई। भला जो आदमी आपके साथ बीस साल सार रहा हो तो वह भी आपकी हर चाल को बखुबी पहचानता होगा। समय रहते उसने ऐसी काट खोजी कि साहब आजकल मुंह छिपाते फिर रहे हैं। आजकल क्रिकेट छोड़ उसी मामले को मैनेज करने में उनका समय जाया हो रहा है।

सुबीर मिश्रा और नीरज राठौर से भी क्रिकेट सभी नुस्खे सीख लिए और उपयोगिता खत्म हुई तो दोनों को डस्टबीन बनाकर किनारा कर दिया।

इसके साथ ही प्रवक्ता व अध्यक्ष के मीडिया सलाहकार संजीव कुमार मिश्र, वित्तीय समिति के सदस्य अजीत शुक्ला और इंफ्रास्ट्रक्चर कमेटी के सुनील दत्त मिश्रा को भी चंद पल में बाहर का रास्ता दिखा दिया। इन सबों से महादेव के संबंध में क्रिकेट गतिविधि में आने से पहले ही हुआ था।

आजकल हेमन ट्रॉफी अंतर जिला क्रिकेट टूर्नामेंट के आयोजन में भी चेयरमैन संजय सिंह के उपयोग करने की चर्चा भी आम है। कहा जा रहा कि मौका पर पेड़ की ऊंचाई पर चढ़ा दिया और समय आया तो खिसक लिए।

हालांकि चेयरमैन साहब पिछले कई लोगों के डस्टबीन बनने की कहानी को जानते थे। इसलिए वे तो अभीतक नहीं बने हैं। लेकिन महादेव के करतूत से दुखी जरूर हैं। अब महादेव संघ के दो लोगों सीईओ मनीष राज और मीडिया कमेटी के संतोष झा को डस्टबीन बनाने के चक्कर में हैं। हालांकि संतोष झा तो चतुर हैं परंतु सीईओ चाल में फंसते नजर आ रहे हैं।

हाल में ही एक प्रकरण उसका ताजा उदाहरण है। कहा जाता है कि यह प्रकरण भी महादेव की ही चाल है। दरअसल बहुत दिनों से महादेव सीईओ को हटाना चाहते हैं लेकिन सीईओ ने भी गेस्ट प्लेयर के मामले में उनका बहुत ही कच्चा चिट्ठा जमाकर रखा है। इसलिए उसे हटाने का जुगाड़ नहीं लगा रहा है। इसलिए महादेव ने नया जुगाड़ (हाल ही में सीईओ पर लगा आरोप) लगाकर उसे हटाने की कवायद से जोड़कर देखा जा रहा है।

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