पटना। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल (बीसीसीआई) द्वारा आयोजित होने वाली सीनियर राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए घोषित बिहार टीम को लेकर चर्चाओं का बाजार थमने का नाम नहीं ले रहा है। तरह-तरह की चर्चाएं अभी भी मार्केट में हो रही है। उन्हीं सबों को आपके सामने प्रस्तुत कर रहा है खेलढाबा.कॉम।
आखिर चयनकर्ताओं का साइन किया हुआ लिस्ट क्यों नहीं हुआ जारी
इस सत्र में बिहार क्रिकेट एसोसिएशन ने अभी तक दो टीम घोषित की। पहला मुश्ताक अली टी-20 ट्रॉफी का दूसरा विजय हजारे ट्रॉफी। इन दोनों लिस्ट को बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के सीईओ द्वारा संघ की बेवसाइट पर डाला गया। विजय हजारी ट्रॉफी की लिस्ट में चयनकर्ताओं के हस्ताक्षर वाली लिस्ट भी अटैच रहती थी पर सीनियर महिला क्रिकेट टीम के साथ ऐसा नहीं हुआ।
आखिर क्या वजह हुई कि जो सीनियर महिला टीम का लिस्ट जो बिहार क्रिकेट एसोसिएशन की बेवसाइट पर डाली गई उसमें चयनकर्ताओं द्वारा जारी लिस्ट को अटैच नहीं किया गया। लोगों का कहना है कि कुछ चयनकर्ताओं का कहना है कि हमने लिस्ट पर साइन ही नहीं किया है। जब इतना हंगामा हो रहा है तो वह लिस्ट बीसीए को जारी करनी चाहिए जिस पर चयनकर्ताओं की साइन है।
कोच व सहायक कोच को लेकर सवाल
लोगों का कहना है कि क्या जरुरत थी टीम के कोच व सहायक कोच को बाहर से बुलाने की। टीम के कोच मारिया क्लैरय का नाम लोग गूगल पर सर्च कर रहे हैं। आखिर यह है कौन। लोगों का कहना है कि बड़े प्लेयर के रूप मे इनका नाम तो कहीं दिख ही नहीं रहा है। साथ ही यह लेवल ए कोच है कि इसका पता नहीं चल पा रहा है। यह पता जरूर चल रहा है कि यह हैदराबाद महिला टीम की कोच रह चुकी हैं।
सहायक कोच सैयद निशांत फातिमा को लेकर लोगों का कहना है कि सत्र 2018-19 में वह बिहार की ओर से खेलीं। क्या कोच बनने का कोई पैमाना है। वह रिटायरमेंट के कितने दिनों के बाद कोच बन सकती हैं। क्या निशांत फातिमा ने क्रिकेट को अलविदा कहा है। सूत्र तो यह भी बता रहे हैं कि इन्होंने इस पद के लिए अप्लाई भी नहीं किया था।
लोगों का कहना है कि लोढ़ा कमेटी का नियम तो यह कहता है कि सपोर्टिंग स्टॉफ की बहाली सेलेक्शन कमेटी के द्वारा किया जायेगा। क्या ऐसा हुआ है क्या।
आखिर क्यों लाये बाहरी कोच
लोगों का कहना है कि क्या बिहार में इस पद के योग्य उम्मीदवार नहीं था। तरुण कुमार भोला, विकास रानू महिला टीम के कोच रह चुके हैं। विकास रानू ने पिछले साल अंडर-19 महिला टीम के साथ बेहतर कार्य किया था और टीम का परफॉरमेंस काफी बेहतर रहा था। इन सबों को रखने में क्या दिक्कत थी।
एक सवाल यह भी
कहा यह गया था कि इस बार चयनकर्ता से लेकर सारी चीजें बेहतर होंगी। बिहार के दिग्गजों पर बेईमानी का ठप्पा जड़ा गया और कहने को ईमानदार छवि लोगों को चयनकर्ता से लेकर अन्य जगहों पर दी गई। सवाल यह उठता है कि जब सबकुछ ईमानदारी से करने का ढ़ोंग रचा जा रहा है तो यह बेईमानी कहां से आ गई। कोई न कोई है जो ईमानदारों चयनकर्ताओं को बेईमान बना कर अपना उल्लू सीधा कर रहा है। कहीं यह तो चयनकर्ता केवल नाम के हैं और काम कोई और क्या है। अगर चयनकर्ता गलत हैं तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखाएं। चयनकर्ताओं को भी चाहिए की अगर उन पर आरोप लग रहे हैं तो सामने आकर अपनी बात रखें। चुप रहने से तो काम नहीं चलेगा।

