Thursday, September 25, 2025
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हॉकी गोलकीपर PR Sreejesh ने कहा-अपना गेम खेलें, किसी के बताये पर न जाएं

by Khel Dhaba
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भारतीय हॉकी टीम के दिग्गज गोलकीपर पीआर श्रीजेश गुरुवार को पटना में थे। ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने के साथ ही हॉकी को अलविदा कहने वाले श्रीजेश को बिहार पहला राज्य है जिसे सम्मानित करने जा रहा है। बता दें कि श्रीजेश के शानदार गोलकीपिंग की बदौलत भारतीय हॉकी टीम लगातार 2 ओलपिंक में 2 मेडल जीतने में कामयाब रही। भारतीय हॉकी टीम 1980 के बाद पहला ओलंपिक मेडल जीतने में सफल रही थी। 1972 के बाद पहली बार है जब भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक में लगातार 2 ब्रॉन्ज जीती है। केरल के एर्नाकुलम में जन्में पीआर श्रीजेश ने 2006 साउथ एशियन गेम्स में भारत के लिए डेब्यू किया था और तब से ही वह भारतीय गोल पोस्ट की मजबूत दीवार बने हुए थे। श्रीजेश से खास बातचीत को पढ़ें…

पेरिस ओलंपिक के सेमीफाइनल में आपको बैठा दिया गया था, क्या वजह रही?
मुझे बैठा नहीं दिया गया था। हॉकी में नया नियम यह है कि यदि आप हार रहे हो तो गोलकीपर को बाहर करके एक्सट्रा प्लेयर को डाल दो। यदि एटैक करेगा तो हो सकता है। कहीं गोल हो जाए। यहीं वजह है कि जर्मनी के खिलाफ सेमीफाइनल में हमने एटेकर प्लेयर्स को मैदान में भेज कर मैं बाहर बैठा। हमारा प्लान सक्सेस रहा।

हरमनदीप का पेनाल्टी कॉर्नर कमजोर रहा। क्या कहेंगे ?
ऐसा नहीं है जहां जरूरत पड़ी है हरमन ने गोल मारा। आजकल का हॉकी बहुत एडवांस हो गया है। हर विपक्षी टीम दूसरे प्लेयर को रीड करके मैदान में उतर रही है। ऐसा ही हरमन के साथ रहा है। हर प्लेयर की स्ट्रेटजी होती है हरमन को गोल करने से रोकने की। हरमन के प्रोफॉमेंस पर सवाल उठाना सहीं नहीं। हम लो ओर इप्रूव करने पर अभी काम कर रहे हैं।

ओलंपिक में हम कहां चूके?
कोई भी टीम जीतने के लिए खेलती है। एक गोलकीपर के रूप में मेरी भी रिस्पॉसबिलिटी है कि गोल को रोकूं। हमारा कोशिश यहीं रहा की गोल रोकना है। मैच को शूटआउट में लेकर जाना है। उस वक्त हम टीम व कोच की सुनते है।

बतौर गोलकीपर आपके उपर कितना दबाव होता है. आप कैसे जज करते हैं कि गोल किधर मारेगा?
नहीं, ऐसा नहीं है आप सिर्फ गेंद को देखों। यह कभी मत सोचों की वह गेंद किधर मारेगा। गोलकीपिंग का बेसिक है गेंद को देखें और उसका बचाव करें। यह पेनालटी स्ट्रोक में हम सब देखते हैं कि उसका पैर किधर है, स्टीक को कैसे पकरा है। उसका आंखों का मूवमेंट किधर है। सामान्य गोलकीपिंग में नहीं

भारतीय हॉकी काफी डाउन फॉल में चली गई ?
यह सच है, लेकिन किसी ने यह नहीं देखा कि अचानक से हम एस्ट्रोटर्फ पर आ गए। यूरोपियन कंट्री के लिए यह काफी इजी था। वहां कम से कम 5000 से अधिक एस्ट्रोटर्फ होंगे। हमारे यहां मुश्किल से 1000 भी नहीं होंगे, लेकिन अब एस्ट्रोटर्फ पर हम खेल रहे हैं। आज ब्रांज व सिल्वर तक पहुंच गए है। उम्मीद रखिए आने वाले बच्चे हमारे सुनहरे दिन को वापस लाएंगे। हॉकी में इंडिया गोल्ड भी जीतेगा।

बिहार के राजगीर में एस्ट्रोटर्फ लगा है। क्या आप वहां जाएंगे?
बिल्कुल, रविंद्रन शंकरण सर ने मुझे बिहार इसलिए ही तो यहां बुलाए हैं। ओड़िशा ने जैसे हॉकी के लिए किया है। उम्मीद है बिहार में भी हॉकी की दुनिया में तेजी से बदलाव आएगा। भारतीय महिला हॉकी टीम आई थी। आगे पुरुष टीम भी आयेगी। इंडिया कैंप भी लगेगा। रही बात बिहार के प्लेयर्स की तो यहां के प्लेयर्स में काफी प्रतिभाएं हैं।

नए प्लेयर्स के लिए आप क्या कहना चाहेंगे?
बस यहीं कहना चाहूंगा। आप जिस खेल में हो उसे पूरा डेडिकेशन के साथ खेलों। निराशा को हावी नहीं होने दो। साथ ही यह ही कहूंगा कि खिलाड़ी अपनी पढ़ाई को अधूरा नहीं छोड़े। क्योंकि यह खेल है। कब किसके साथ क्या हो जाए। यह कहना मुश्किल है। शिक्षा है तो आपके लिए पूरा जहां खुला है। मुझे किताब पढ़ना बहुत पसंद है। मैं अलग-अलग समय में अलग-अलग किताब पढ़ता हूं। सुबह मैं जहां मैं माकेर्टिंग या स्टॉक मार्केट की किताबें पढ़ता हूं तो दोपहर में स्पीरिचुअल बुक्स की रिडिंग करता हूं। तो रात में सोते वक्त फ्रीक्शन वाली किताबे पढ़ता हूं।

रिटायरमेंट के बाद का क्या प्लान है?
अपने पूरे कैरियर में 300 से ज्यादा इंटरनेशनल मैच खे चुके श्रीजेश ने अपने रिटायरमेंट प्लान को लेकर कहा कि फिलहाल वे जूनियर इंडियन टीम के कोच के रूप में अपनी सेवा दे रहे है। 2 बार एशियन गेम्स का गोल्ड मेडल भारतीय टीम के साथ जीतने वाले श्रीजेश ने बिहार के खिलाड़ियों को हरसंभव मदद देने का आश्वासन भी दिया। बता दें कि 4 ओलंपिक गेम्स (लंदन 2012, रियो 2016, टोक्यो 2020 और पेरिस 2024) खेले जिसमें 2 बार कांस्य अपने नाम करने वाले श्रीजेश का स्वागत बिहार राज्य खेल प्राधिकरण के महानिदेशक रविंद्रन शंकरन व खेल मंत्री सुरेंद्र मेहता ने किया।

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