पटना, 21 दिसंबर। जैसे मोबाइल में रिचार्ज या टॉप ऑफ रिचार्ज का ऑप्शन है,ठीक उसी तरह बिहार क्रिकेट जगत में भी इस तरह का प्रचलन चालू है। यह खेलढाबा.कॉम नहीं कह रहा है बल्कि इस तरह की चर्चा बिहार क्रिकेट जगत में हमेशा होती रहती है। आजकल फिर से इस चर्चा को बल मिल गया है एक वायरल ऑडियो से जो क्रिकेट जगत के व्हाट्शअप में तैर रहा है जिसमें एक खिलाड़ी को खेलने को लेकर बड़े पैमाने पर पैसों की लेन-देन की बात की जा रही है।
यह ऑडियो विजय हजारे ट्रॉफी टीम की घोषणा के बाद का बताया जा रहा है। हालांकि इस ऑडियो को सुनाने वाला अभी तक कोई नहीं मिल पाया है पर सब यही कह रहे हैं कि हमने ऑडियो सुना है। जो चर्चा है उसके अनुसार रणजी ट्रॉफी खेलने के लिए मोटे पैसे कई लेन-देन हुए हैं। ऐसे खिलाड़ी रणजी ट्रॉफी का कुछ मैच खेले, उसके बाद तय एग्रीमेंट के अनुसार उन्हें बाहर कर दिया गया। विजय हजारे ट्रॉफी के ट्रायल में वैसे खिलाड़ी फिर से आये। विजय हजारे ट्रॉफी के ट्रायल में वैसे खिलाड़ी बेहतर कर रहे थे था पर उन्हें पहले ही बुला लिया गया, ऐसा आरोप खिलाड़ियों की ओर से है।
इस ऑडियो में पैसे की लेन-देन की बात है। पैसा किसे दिया गया इसकी भी चर्चा बातचीत के क्रम में है। चर्चा है कि जिसे पैसा दिया गया है वह बिहार क्रिकेट एसोसिएशन का चर्चित नाम है। चर्चा है कि पैसा लेने वाले से खिलाड़ी के आदमी ने जब बात की तो उसने कहा कि बात तो केवल रणजी ट्रॉफी की ही हुई थी, आगे के लिए फिर से…..।

सवाल यह है कि ऐसी चर्चा क्यों होती है। खेलढाबा.कॉम इन चर्चाओं की सच्चाई की पुष्टि नहीं करता है पर कहा गया है ना अगर धुआं उठ रहा तो आग कहीं जरूर लगी होगी। अगर चर्चा है तो जरूर ऐसा ऑडियो होगा जिसे अभी दबा कर रखा जा रहा है और चुनावी समर के समय संभवत: इसे ऊपर लाया जायेगा।
बिहार क्रिकेट जगत के राजनीतिक पंडितों का कहना है कि बिहार क्रिकेट जगत में जो भी गंदगी फैलने की चर्चा है उसमें संघ के पदाधिकारियों और अधिकारियों से ज्यादा गलती घृतराष्ट्र सह धनी पिता और जिला संघों की है। वैसे पिता जो पैसे के बल पर अपने बेटे को खिलवाना चाहते हैं। उनका बेटा बेहतर परफॉरमेंस कर रहा है पर उन्हें माहौल को देखते हुए डर लगता है कि मेरा सेलेक्शन होगा की नहीं और बेटे को टीम में शामिल कराने के लिए लेन-देन की बात करने लग जाते हैं। एक बार अगर लेन-देन से खेला तो हमेशा की आदत पड़ जाती है।
दूसरा घृतराष्ट्र सह धनी पिता। वैसे पिता जिन्हें यह लगता है कि मेरा बेटा इंडिया खेलने के लायक है, हालांकि उनके बेटे का परफॉरमेंस आम खिलाड़ियों से काफी कम होता है पर पैसे के दम पर टीम बिहार में शामिल करा लेते हैं जिसमें जिला संघों का बड़ा योगदान होता है। ऐसे खिलाड़ी ज्यादात्तर पैराशूट से बिहार में उतरते हैं यानी बिना कुछ खेले सीधे टीम बिहार में।
सभी जिला संघ की बात नहीं पर कुछ जिलों में यह देखा जा रहा है कि पैराशूट से उतरने वाले वहीं इनरॉल होते हैं और वहां के कोटे से बिहार टीम में शामिल होते हैं वह भी पैसे के दम पर। उसी जिला या अन्य का हक ऐसे खिलाड़ी मार ले जाते हैं जिसे जिला संघों के पदाधिकारियों को तनिक भी अफसोस नही होता है।
एक तरफ बिहार क्रिकेट एसोसिएशन कहता है कि यहां साफ-सुथरी टीम चुनी जाती है, वहीं दूसरी तरफ टीमों में फेरबदल थोक भाव से होते हैं। पहले तो टीम बड़ी बनती है फिर चुपके-चुपके टीमों में भारी फेरबदल। चुने गए सभी प्लेयरों को मौका देने के फेर में टीम के परफॉरमेंस पर असर। यह सब से बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को कोई मतलब नहीं, ऐसी चर्चा है। उन्हें तो मतलब है कि जो चुने गए वह तो खेले हीं और उसके बाद जो बदलाव हो वह भी बिना खेले नहीं लौटे। अब तो यही देखना है कि इन चर्चाओं पर कब विराम लगता है या ऑडियो के बाहर आने पर हंगामा बरपता है।
