बुधवार यानी 19 नवंबर को मोइनुल हक स्टेडियम की दोपहर किसी धीमी चलती फिल्म जैसा था-एक ऐसी फिल्म जिसके पहले तीन दिन बेहद लंबे, बेहद सपाट और बिना ट्विस्ट वाले बीत चुके थे। दोनों टीमों ने पहली पारियों में पाँच-पाँच सौ से ऊपर ठोंक दिया था, और मैदान पर फैली हल्की धूप, बैठे हुए दर्शक, और थक चुकी गेंदें-सब इस बात की गवाही दे रही थीं कि यह कहानी अब बिना किसी रोमांच के ख़त्म होने वाली है।
फिर अचानक किसी निर्देशक ने स्क्रिप्ट बदल दी।
मिजोरम ने स्पोर्टिंग डिक्लेरेशन कर दिया-मानो किसी किरदार ने अचानक चिल्लाकर कहा हो, ‘चलो, देख लेते हैं- किसमें कितनी जान है!’
248 रन का टारगेट वह भी 30-31 ओवरों की मोहलत। उनके चेहरों पर विश्वास था, और कहीं भीतर यह सोच भी-कि बिहार यह तंग गलियारा पार नहीं कर पाएगा।
लेकिन फिल्मी कहानियों में असली किरदार हमेशा वक्त से थोड़ा देर से आते हैं-और आते ही मंच पर कब्जा कर लेते हैं।
शुरुआती दृश्य सकीबुल गनी और मंगल महरौर ने सेट किया। उनके शॉट ऐसे लग रहे थे जैसे बैकग्राउंड में अचानक कोई तेज म्यूजिक शुरू हो गया हो पर इस कहानी में असली मोड़ तो अभी पर्दे के पीछे खड़ा था।

और फिर-बिपिन सौरभ की इंट्री। वह इंट्री ऐसी थी जैसे किसी बॉलीवुड स्पोट्र्स फिल्म में क्लाइमेक्स के ठीक पहले हीरो स्लो-मोशन में आता है-बाल उड़ते हुए, हवा थमती हुई, और हर नज़र उसी एक फ्रेम में कैद हो जाती है।
22 गेंदों में 47 रन।
एक चौका, पाँच छक्के।
हर छक्का ऐसा जैसे किसी ने आसमान की तरफ़ दरवाज़ा खोल दिया हो और गेंद को कहा हो-‘जा, उड़’ और लौटकर बता कि कहानी बदल चुकी है।
मिज़ोरम की गेंदबाज़ी उस समय किसी दुश्मन फ़ौज की तरह थी जो अचानक बिना आदेश के पीछे हटने लगती है। उनकी रणनीतियाँ टूटती गईं, फील्डर एक-दूसरे का चेहरा देखते रह गए, और गेंदबाज़ों की रन-अप में हिचकिचाहट भर गई।
वह केमियो नहीं था-वह एक विद्रोह था, जिसने मैच की स्क्रिप्ट को बीच से फाड़कर नया अध्याय लिख दिया।
और फिर जैसे किसी रफ्तार-प्रेमी निर्देशक ने कैमरा तेज़ कर दिया हो-बिहार ने 27.4 ओवर्स में 251 रन कूट दिए।
सात विकेट से जीत।
इतनी तेज़, इतनी बेख़ौफ़ पीछा-यात्रा कि रणजी ट्रॉफी के रिकॉर्ड भी चकित होकर खड़े रह जाएँ।
कल तक जिस सिक्किम के फाइनल में पहुँचने के सपने लिखे जा रहे थे, वे भी इस तूफान में उखड़ गए। बिहार ने सिर्फ मैच नहीं जीता-उसने पूरे प्लेट ग्रुप के नक्शे पर अपनी उँगली से एक नई लकीर खींच दी।
आज मोइनुल हक स्टेडियम की हवा में एक गूँज अटकी हुई है-‘हाँ’ यहीं। यहीं बिपिन का तूफ़ान उठा था। सालों बाद अगर कोई इस मैदान की मिट्टी छुएगा, तो शायद उसे उसी तूफ़ानी दिन की थरथराहट महसूस होगी।
अब कहानी आगे बढ़ चुकी है- फ़ाइनल में बिहार के सामने मणिपुर। रोमांच का नया सीन तैयार है। और निर्देशक इस बार कौन होगा? शायद वही जिसने 22 गेंदों में पूरी पटकथा पलट दी थी।