Sunday, August 3, 2025
Home Slider बिहार शतरंज की पांचवीं पीढ़ी की कहानी-कुछ आंखों देखी और कुछ सुनी जुबानी

बिहार शतरंज की पांचवीं पीढ़ी की कहानी-कुछ आंखों देखी और कुछ सुनी जुबानी

by Khel Dhaba
0 comment

अरविंद कुमार सिन्हा, फ़िडे मास्टर
पटना।
बिहार शतरंज की चौथी पीढ़ी की कहानी में बीते 14 वर्षों के सफर का सिंहावलोकन करें तो पाते हैं कि 1991 से 2005 की कालावधि में जिन खिलाड़ियों का नाम बिहार विजेता के रूप में  आया है वे  सभी कहीं न कहीं नियुक्ति पाने में सफल रहे |परंतु संतोष कुमार सिन्हा (4 बार) तथा जितेंद्र कुमार चौधरी ( 2 बार) राज्य विजेता रहे हैं जिन्होंने, एकाध बार को छोड दें तो लगातार बिहार  का प्रतिनिधित्व भी किया है| हम इन दोनों खिलाड़ियों का दुर्भाग्य मानें या कि कुछ और किइतने प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को बिहार में एक नौकरी तक नहीं मिली और न नए खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करके आय-अर्जन का उपयुक्त माहौल| नतीजा यह है कि 2005 से ही संतोष कुमार सिन्हा अहमदाबाद में तथा जितेंद्र कुमार चौधरी दिल्ली में रह कर बच्चों को शतरंज का  प्रशिक्षण देकर अपना और परिवार का जीवन-यापन कर रहे हैं |आपको याद हो बिहार सरकार की विशिष्टता के आधार पर खिलाड़ियों की नियुक्ति योजना 2009 ( 2011 संशोधित )| यद्यपि वह कालखण्ड चर्चा में आना बाकी है,तथापि प्रसंगवश, इस पर अभी चर्चा कर लेना समीचीन होगा |

खेल में विशिष्टता के आधार पर नियुक्ति योजना बिहार शतरंज के लिए बेमानी
बिहार सरकार द्वारा हर खेल से राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले 5 खिलाड़ियों की प्रतिवर्ष सरकारी सेवा में नियुक्ति योजना (2009 तथा 2011 में संशोधित)पूरे देश के संदर्भ में अनूठी कही जाएगी |संतोष कुमार सिन्हा या जितेंद्र कुमार चौधरी इस योजना का लाभ उठाने से वंचित तो रहे ही,आगे की पीढ़ी के उन सारे खिलाड़ियों  के लिए ,जो राज्य का राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रतिनिधित्व कर नौकरी पाने की आशा पाले थे,यह योजना बेमानी हो गई| वे  सरल नियम जिनसे सामान्यतया बिहार शतरंज के खिलाड़ी  लाभान्वित हो पाते , वे वरीयता क्रम मे इस प्रकार थे 🙁 1) राष्ट्रीय प्रतियोगिता में बिहार राज्य का प्रतिनिधित्व(2) अंतर विश्वविद्यालय खेलों में प्रथम, द्वितीय या तृतीय स्थान |शतरंज में दर्जनों आवेदन दिये गए जिनमें कई उपरोक्त दोनों पात्रता रखने वाले खिलाड़ी शामिल थे |नियम भी स्पष्ट थे , जूनियर, सीनियर, पदक आदि के  लिए अंक निर्धारित थे | वैसे खिलाड़ी जो उम्र सीमा के कगार पर थे, उन्हें वरीयता दिये जाने का भी नियम था |वरीयता सूची के प्रदर्शन के साथ ही [ उक्त पैनल में प्रमुख तौर पर अभय कुमार सिन्हा और राकेश रंजन के नाम थे ], कहते हैं कि तब राष्ट्रीय प्रतिभागिता वाले खिलाड़ियों और विश्वविद्यालय शतरंज के खिलाड़ियों के गुट बन गए , जिनके  सलाहकारों के अपने हित थे और जिन्हें राष्ट्रीय प्रतियोगिता की हार में अपनी जीत नजर आती थी |दर्जनों आपत्तियाँ भेजी गईं, यह भी बताया गया कि शतरंज की राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता से राष्ट्रीय ए प्रतियोगिता श्रेष्ठ हैऔर यह भी कि राष्ट्रीय ए  के अतिरिक्त शतरंज की सारी राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ‘डोनर’ प्रवेश का प्रावधान है |

शतरंज महासंघ का पत्र बना रोड़ा 

सामान्य प्रशासन विभाग, बिहार सरकार के तत्कालीन संयुक्त सचिव अजय कुमार चौधरी द्वारा हस्ताक्षरित पत्रांक 9 /विविध 14-12 /2012 सा प्र /2105  दिनांक 8/12/12 के माध्यम से अखिल भारतीय शतरंज महासंघ से  इस संबंध में पृच्छा की गई जो इस प्रकार है :- 

“ उपर्युक्त विषय के संबंध में निदेशानुसार यह कहना है कि बिहार उत्कृष्ट खिलाड़ी नियुक्ति नियमावली,2009 (यथा संशोधित नियमावली,2011 ) के तहत राज्य सरकार द्वारा विभिन्न खेल विधाओं में उत्कृष्ट खिलाड़ियों की नियुक्ति चयन समिति की अनुशंसा के आधार पर की जानी है | उक्त के आलोक में यह सूचित करने की कृपा की जाय कि नेशनल ‘बी’ चैम्पियनशिप जिसमें राज्य टीम का प्रतिनिधित्व करने हेतु चयनित खिलाड़ियों के अतिरिक्त डोनेशन द्वारा भी सीधे प्रवेश की अनुमान्यता होती है, को राष्ट्रीय चैम्पियनशिप मानी जाय अथवा नहीं | चूंकि शतरंज खेल विधा के लिए प्राप्त आवेदन पर चयन समिति की अनुशंसा उपरोक्त सूचना के अभाव में लंबित है , अत: अनुरोध है कि यथाशीघ्र सूचना उपलब्ध कराई जाय | “ प्रत्युत्तर में अखिल भारतीय शतरंज महासंघ के तत्कालीन सचिव भरत सिंह चौहान ने जो लिखा वह  निम्नलिखित है :-

AICF Reply  in English 
“ This has reference to your above cited letter and we clarify as stated below.

All state associations are permitted to field upto four entries in National challengers (previously it was called National B) based on merit. This is, these four players are selected from the respective State Championship. Apart from this, the federation allows players to participate as donor/ special entries by paying Rs 10,000/- ( as per existing financial regulations).

Any decision regarding the status of such Donor/ Special entries for consideration for appointments in your organization is left to your wisdom and the Federation will not interfere in it . “

उपरोक्त दोनों पत्रों की विषय-वस्तु को फिर से देखा जाय तो महासंघ के पत्र का अनगढ़ प्रारूप पहली नजर में राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता के ‘राष्ट्रीय’ होने से कहीं अधिक उसके ‘डोनर’होने का भान कराता है |सरल गंवई हंसी-खेल की भाषा में कहा जाय तो मक्खन (नवनीत) निकालना था, सो दही जमना तो दूर,दूध ही फाड़ डाला |

अब हम  सरकार द्वारा की गई पृच्छा एवं महासंघ के उत्तर को सरलता से तीन खंडों में समझें | सरकार ने साधारण सा स्पष्ट प्रश्न पूछा है कि राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता को ( डोनर प्रवेश के कारण)राष्ट्रीय प्रतियोगिता मानी जाय अथवा नहीं |मानी जाय या नहीं, इसका स्पष्ट उत्तर नदारत है  | सरकार तो मान/जान कर ही चली थी कि नेशनल बी में ‘डोनर’ प्रवेश है | यह भी नहीं पूछा है कि ‘डोनर’ प्रवेश के लिए क्या राशि निर्धारित है | पर आप देखें की उत्तर में डोनर प्रवेश का पूरा वृतांत दिया है |पत्रोत्तर का अंतिम पैराग्राफ बिलकुल बेमानी है |एक और गलत बात लिख दी, क्योकि बिना राज्य संघ की अनुशंसा के महासंघ ‘डोनर’प्रवेश नहीं दे सकता |

सामान्य समझ है कि ‘ डोनर/विशेष प्रवेश का प्रावधान उनविशिष्ट खिलाड़ियों को शामिल किए जाने के लिए होता है जिनकी प्रतिभागिता राज्य चयन प्रतियोगिता में किन्हीं अपरिहार्य कारणों से न हो पाये या उनका चयन असाधारण परस्थितियों के कारण नहीं हो पाया |महासंघ द्वारा खिलाड़ी कोटा तो पूर्व निर्धारित रहता है जिसे सामान्य खेल-भाषा में ‘सीडींग’ देना कहते हैं|

हम सभी सहमत होंगे कि नेतृत्व के स्तर पर पदासीन व्यक्ति को लिखित अथवा मौखिक वक्तव्य देते समय तथ्य की आधारभूत समझ होनी चाहिए और बिलकुल मुद्दे से भटकाव से बचना चाहिए, विशेष कर तब, जब उससे किसी समुदाय के हित प्रभावित होते हों|

विभागीय चयन समिति की हठधर्मिता
चयन समिति ने महासंघ के उक्त पत्र में दिये गए ‘डोनर’ प्रवेश के प्रावधान होने कारण समूची राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता को सिरे से नकार दिया और राष्ट्रीय ए प्रतियोगिता खेल चुकीं दो महिला खिलाड़ियों को नियुक्ति दे दी |और बाकी बचे तीन सीटों पर पात्रता के एक पायदान नीचे, अर्थात विश्वविद्यालय शतरंज में पदक पाने खिलाड़ियों की नियुक्ति कर दी |सरकार के  पत्र से ही जाहिर है  कि चयन समिति को भली-भांति पता था कि राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता में ‘डोनर’ प्रवेश का प्रावधान है और वह महासंघ से सिर्फ यह पुष्टि चाहती थी कि ‘डोनर’ प्रावधान होने के बावजूद,उसे राष्ट्रीय माना जाय या नहीं |  तो फिर चयन समिति को यह सामान्य तथ्य समझनी चाहिए थी कि महासंघ ने यदि “राष्ट्रीय’ शब्द का इस्तेमाल किया है तो वह ‘राष्ट्रीय’ है | दूसरे, महासंघ की स्पष्ट घोषणा कि राज्य से मेरिट के आधार पर चयनित चार तक खिलाड़ी राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता में  खेलते हैं, तो पात्रता की शर्त (1) वहीं पूरी हो जाती है |

राष्ट्रीय ए प्रतियोगिता में खेलने के लिए राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन ( शीर्ष 14 ) स्थान प्राप्त करना पड़ता है |पात्रता की शर्त सिर्फ राज्य का प्रतिनिधित्व है न कि उटकृष्ट प्रदर्शन जिसके आधार पर अन्य खेलों में नियुक्ति दी गई |तो शतरंज में उत्कृष्ट प्रदर्शन अर्थात नेशनल बी में शीर्ष 14 स्थान लाने की अनिवार्यता थोपा जाना भेदभाव पूर्ण नीति थी |इस आलोक में न्यायोचित था कि चयन समिति द्वारा राष्ट्रीय ए खेल चुकी दो महिला खिलाड़ियों के बाद बाकी बचे तीन रिक्त पदों पर मेरिट के आधार परराष्ट्रीय बी प्रतियोगिता में खेलने वाले खिलाड़ियों की नियुक्ति की जाती | यदि तब भी कोई रिक्ति बच जाती, तभी अधिनियम में घोषित वरीयता क्रम के निचले पायदान अर्थात विश्वविद्यालय शतरंज में पदक पायी टीम के खिलाड़ियों की नियुक्ति होनी चाहिए थी |जहां तक उन खिलाड़ियों के मेरिट या डोनर प्रवेश का प्रश्न है,तो इस बात की छान-बीन महासंघ अथवा राज्य संघ से कराई जा सकती थी|वैसे भी सरकारी सेवा के लिए प्रमाणपत्रों की सत्यता की जांच का विधान है |पर ऐसा न करते हुये ‘डोनर/विशेष’ प्रविष्टि की संभावना/आशंका  मात्र से पूरी की पूरी राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता को खारिज कर राज्य का वास्तविक प्रतिनिधित्व करने वाले सारे खिलाड़ियों को सिरे से नकार देना सर्वथा अन्यायपूर्ण, अवैधानिक और प्रदत्त अधिकारों का अतिरेक प्रयोग है |

राज्य संघ का हस्तक्षेप

उपरोक्त अवस्था मेंराज्य संघ के पद और सत्यनिष्ठा की मांग थी कि वह हस्तक्षेप करे |तदनुरूप,अरविंद ने चयन समिति के सदस्यों को ज्ञापन दिये , सामान्य प्रशासन विभाग के संयुक्त सचिव अजय चौधरी से लेकर,प्रधान सचिव,खेल विभाग के प्रधान सचिव से लेकर  खेल प्राधिकरण  के महानिदेशक तक ,और  बिहार के मुख्य सचिव तक से मिलकर अपनी बात रखी | यहाँ तक कि मुख्यमंत्री को भी पत्र द्वारा सारी घटनाओं से अवगत कराया , परंतु कुछ नहीं हुआ |

शतरंज महासंघ भी दुविधा में

महासंघ के उपरोक्त पत्र में देखा जा सकता है  कि सरकार द्वारा पूछे गए स्पष्ट प्रश्न के स्पष्ट उत्तर,अर्थात राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता को स्पष्ट रूप से ‘राष्ट्रीय’बताने से बचा गया है| संभव है, भरत सिंह की दुविधा रही हो कि किसे राष्ट्रीय कहा जाय – उसे, जिसमें प्रत्येक राज्य का प्रतिनिधित्व होता है अथवा उसे, जिससे राष्ट्रीय टीम का चयन होता है |परइसे समझना आसान है |एक ही वर्ग में दो राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं तो हो नहीं सकतीं हैं, अलबत्ता,राष्ट्रीय टीम के चयन के लिए दो या अधिक  आयाम/खंड हो सकते हैं |राष्ट्रीय ए प्रतियोगिता भी चयन प्रक्रिया का वह दूसरा भाग है जहां राज्य के प्रतिनिधित्व की अवधारणा ही समाप्त हो जाती है |चौहान जी कोषाध्यक्ष भी रहे थे, सो उन्हें तो भली-भांति मालूम था कि भारत सरकार मात्र नेशनल बी प्रतियोगिता के लिए अनुदान देती है, राष्ट्रीय ए के लिए नहीं| स्पष्ट है कि भारत सरकार का खेल मंत्रालय द्वारा इस विषय पर विवेकपूर्ण विवेचना के बाद ही राष्ट्रीय बी प्रतियोगिता,जिसमें देश के प्रत्येक राज्य से मेरिट के आधार पर चुने गए खिलाड़ियों का प्रतिनिधित्व होता है,को ही ‘राष्ट्रीय’ माना गया है, राष्ट्रीय ए को नहीं | महासंघ बाद में टीम का चयन के लिए चाहे जो प्रक्रिया  अपनाए, भारत सरकार का खेल विभाग हस्तक्षेप नहीं करता |इस आलोक में,अच्छा हो कि शतरंज महासंघ,‘राष्ट्रीय’ पद की घोषणा  के लिए अपने संविधान में इसे स्पष्ट रूप से परिभाषित करे |

बहरहाल,नियुक्ति प्रक्रिया पर असमंजस बना रहा और इस बीच महासंघ के सचिव वी हरिहरन हो गए|राज्य संघ ने एक बार फिर महासंघ की ओर से सरकार को स्पष्टीकरण दिये जाने का अनुरोध किया |वी हरिहरन का जुलाई 2015 का दूसरा पत्रथोड़ा और स्पष्ट था जो मुख्यत: ‘डोनर/विशेष’ प्रवेश का औचित्य पर आधारित था|पर, पूर्व सचिव के वक्तव्य पर लीपा-पोती की भी नहीं जा सकती थी |विभाग में हरिहरन के पत्र-प्राप्ति के बाद ,राज्य संघ द्वारा पुन: चयन समिति के सारे सदस्यों को लिखा और मिला गया|चयन समिति की बैठक में अरविंद को बुलाया भी गया,जहां सारे तर्क दिये गए, बहस भी हो गई और अधिकारों के अतिरेक प्रयोग को चुनौती देते हुये न्यायालय तक जाने की बात भी आ गई | पर नतीजा वही ढाक के तीन पात | बाकी तीन रिक्त पदों पर विश्वविद्यालय शतरंज के खिलाड़ियों को नियुक्ति पत्र दे दिया गया |

शायद यह मामला कोर्ट में भी ले जाया गया है| पर बिहार शतरंज के लिए यह किसी सदमें से कम नहीं है,जिसे खिलाड़ियों के लिए भूल पाना कठिन होगा|
कल पढ़ें इसके दूसरे भाग को

You may also like

Leave a Comment

खेलढाबा.कॉम

खेलढाबा.कॉम, खेल पत्रकार की सोच और बहुत सारे खेल प्रेमियों के सुझाव व साथ का परिणाम है। बड़े निवेश की खेल वेबसाइट्स की भीड़ में खेलढाबा.कॉम के अलग होने की यह भी एक बड़ी वजह है। तो, जिले-कस्बों से बड़े आयोजनों तक की कवरेज के लिए जुड़े रहें खेलढाबा.कॉम से।

Newsletter

Subscribe my Newsletter for new blog posts, tips & new photos. Let's stay updated!

Laest News

@2025 – All Right Reserved.

Verified by MonsterInsights