Friday, March 14, 2025
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अब बांस का भी बनेगा क्रिकेट बैट, लगेंगे खूब चौके-छक्के

by Khel Dhaba
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अब क्रिकेटर बांस के बने बैट से चौके-छक्के लगायेंगे। कैम्ब्रिज यूनवर्सिटी के रिसर्चरों ने इसकी खोज की और यह भी कहा है कि बांस से बना बल्ला किफायती और बेहतरीन है। इस रिसर्च को दर्शील शाह और बेन टिंक्लर-डेविस ने किया है। वर्तमान समय में क्रिकेट में ज्यादातर कश्मीर या इंग्लिश विलो (विशेष प्रकार के पेड़ की लकड़ी) के बैट का इस्तेमाल होता है।

रिसर्चर दर्शील शाह का मानना है कि बांस सस्ता है और काफी मात्रा में उपलब्ध है। यह तेजी से बढ़ता है और टिकाऊ भी है। बांस की उपज भी काफी है। बांस चीन, जापान, साउथ अमेरिका जैसे देशों में भी काफी मात्रा में पाया जाता है जहां क्रिकेट अब लोकप्रिय हो रहा है। इस अध्ययन को ‘स्पोर्ट्स इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नॉलजी’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

शाह और डेविस की जोड़ी ने खुलासा किया कि उनके पास इस तरह के बैट का प्रोटोटाइप है जिसे बांस की लकड़ी को परत दर परत चिपकाकर बनाया गया है। इंग्लिश विलो से बना एक बेहतरीन बैट लाख रुपये तक का भी मिलता है। औसतन इसकी कीमत आठ से दस हजार के बीच होती है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, बांस से बना बैट ‘विलो’ से बने बैट की तुलना में अधिक सख्त और मजबूत’ होगा हालांकि इसके टूटने की संभावना अधिक है। इसमें भी विलो बैट की तरह कंपन होता है।

शाह ने कहा, ‘यह विलो के बैट की तुलना में भारी है और हम इसमें कुछ और बदलाव करना चाहते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘बांस के बैट का स्वीट स्पॉट ज्यादा बड़ा होता है, जो बैट के निचले हिस्से तक रहता है।’ शाह पहले थाईलैंड की अंडर-19 क्रिकेट टीम से खेल चुके हैं।

आईसीसी (इंटरनैशनल क्रिकेट काउंसिल) के नियमों के मुताबिक हालांकि फिलहाल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सिर्फ लकड़ी (विलो) के बैट के इस्तेमाल की इजाजत है। वैसे भी इस बैट का अभी कई स्तरों पर इस्तेमाल करके इसकी उपयोगिता का अंतिम आकलन करना बाकी है।

बल्ले में स्वीट स्पॉट बीच के हिस्से से थोड़ा नीचे लेकिन सबसे निचले हिस्से से ऊपर होता है और यहां से लगाया गया शॉट दमदार होता है। दर्शील शाह ने ‘द टाइम्स’ से कहा, ‘एक बांस के बैट से यॉर्कर गेंद पर चौका मारना आसान होता है क्योंकि इसका स्वीट स्पॉट बड़ा होता है।

यॉर्कर पर ही नहीं बल्कि हर तरह के शॉट के लिए यह बेहतर है।’ गार्जियन अखबार के मुताबिक, ‘इंग्लिश विलो की आपूर्ति के साथ समस्या है। इस पेड़ को तैयार होने में लगभग 15 साल लगते हैं और बैट बनाते समय 15 प्रतिशत से 30 प्रतिशत लकड़ी बर्बाद हो जाती है।’

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