बिहार क्रिकेट संघ के लोढ़ा कमेटी की अनुशंसा के बाद बिहार के 38 जिला ही पूर्ण सदस्य हैं, और उन्हें ही एक-एक वोट अपने जिला के प्रतिनिधि द्वारा डालने का अधिकार है, और यही मूल वजह है, जो यह थ्री मैन कमिटी जिलों में जांच कर रही है।
असली बात यह है कि जिले में तो कोई विवाद ही नहीं है यह बीसीए में पद पर आसीन द्वारा मगगढ़त किया गया है। जब माननीय लोकपाल न्यायमूर्ति जस्टिस जयनंदन सिंह ने 19 जनवरी 2019 को एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए कौन से जिले में कौन सी कमेटी कार्यरत रहेगी, तय कर दिया और बीसीए के तत्कालीन मुख्य चुनाव पदाधिकारी रह चुके हेमचंद्र सिरोही ने उसी तर्ज पर जिलों में विवाद को सुनवाई के बाद तय कर दिया जिस पर दूसरे चुनाव पदाधिकारी श्रीमती मीरा पांडे ने भी मुहर लगा दी और उस पर ही चुनाव हुआ।

चुनाव में जीत कर आने के बाद निवर्तमान अध्यक्ष राकेश कुमार तिवारी ने एक तीन सदस्य समिति बनाकर सभी 38 जिलों के अंतिम प्रारूप को तय किया गया जिस पर आम सभा ने मुहर लगा दी। सभी जिलों के जिला पदाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक को उसकी सूची भेज दी।
फिर कहां से कौन सा विवाद आ गया।
जब विवाद है नहीं तो जिला की खाता-बही का सत्यपापन का मुद्दा कहां। बिहार क्रिकेट के जानकारों का कहना है कि फिर खुद के तय किए हुए निर्णय को सिर्फ वोट की प्रोक्सी के लिए गलत तरीके से 28 फरवरी 2021 को कमेटी बना दी। खबर है कि इस कमेटी का पुरजोर विरोध हुआ और तत्काल इसे स्थगित कर दिया गया।
इसके बाद सत्ता में विराजमान लोगों ने आपसी ग्रुप में और आपसी वार्तालाप में, फिर चुपके से कब 9 अक्टूबर को आम सभा में उसे शामिल कर लिया गया पता नहीं चल पाया।

इस संबंध में जिला संघों से संपर्क करने पर पता चला कि आजतक इस संबंध में हमें कॉपी मिली ही नहीं है। विरोध को देखते हुए सत्तासीना पदाधिकारियों ने एक विवाद खड़ा किया 12/2021 और उसके बाद पहले से प्लान सारी चीजों को नियमवाली को प्रभावित करते हुए कार्य किया गया।
क्रिकेट जानकार कहते हैं कि बिहार क्रिकेट संघ के नियमावली में या बीसीसीआई के नियमावली में या माननीय सर्वोच्च न्यायालय के बीसीसीआई संबंधी किसी भी निर्णय में एडहॉक कमेटी बनाने का कोई प्रावधान का जिक्र ही नहीं है, फिर कहां से यह निर्णय और यह कार्यक्रम चल रहा है पता नहीं। सत्तासीन लोगों का शायद मकसद होगा कि वोटर डरा सहमा हमारे लिए प्रोक्सी कर सके।

क्रिकेट जानकार कहते हैं कि हास्यास्पद यह है कि नियमावली में स्पष्ट उल्लेख है कि बीसीसीआई को बीसीए के अंदरूनी मामले में और बीसीए को जिला के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप करने का मनाही है। अपने सदस्यों के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं, फिर भी, इस तरह का आदेश आना और इस तरह के क्रियाकलाप करना और अपने ही किए गए निर्णय को अपने ही गलत साबित करना समझ से परे है।

गौर से देखा जाए तो इस आदेश में 12 जिलों को जहां हाल में चुनाव हो चुका था, शामिल नहीं किया गया है। बाकी 26 जिलों के पेपर की जांच के लिए समिति बनाई गई है, पर जिन 12 जिलों में चुनाव हो चुका वहां से पुराने गड़े मुर्दे को फिर से लाया जा रहा है। इसका मतलब यह है कि चुनावी वर्ष पर जनता (यानी जिला संघ) में डर पैदा कर वोट अपने पाले में किया जाए। क्रिकेट जानकार कहते हैं कि जब जनता सजग हो जायेगी तब किसी की दाल नहीं गलनी वाली है। क्रिकेट जानकारों का कहना है कि जिला संघ के पदाधिकारी अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर बिहार क्रिकेट के बारे में सोचना होगा तभी उनका मालिकाना हक बचा रह सकता वरना ऐसे ही हमेशा हलकान किये जाते रहेंगे।
(बिहार क्रिकेट के जानकारों व जिला संघ के पदाधिकारियों से बातचीत पर आधारित। जिला संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि सत्यमेव जयते)
