Thursday, July 31, 2025
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Bihar Cricket : खिलाड़ियों पर हमेशा लटकती है तलवार, कब टूटेगी कोच-सेलेक्टर की स्थायी दीवार?

BCA में हर साल बदले जाते हैं खिलाड़ी पर कोच-सेलेक्टर की कुर्सी अडिग क्यों

by Khel Dhaba
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Bihar Cricket Association controversy over unchanged coaches and selectors despite poor performance

नवीन चंद्र मनोज

पटना, 31 जुलाई। बिहार क्रिकेट की यह कहानी अब कोई नई नहीं रही। हर सीजन की शुरुआत एक उम्मीद के साथ होती है, लेकिन जैसे-जैसे टूर्नामेंट आगे बढ़ता है, हार-जीत से ज़्यादा चर्चा खिलाड़ियों की अदला-बदली की होती है। खिलाड़ी अगर दो मैचों में फेल हो जाए, तो बाहर का रास्ता तय है। पर सवाल ये है जो कोच-सेलेक्टर सालों से नतीजे नहीं दे पा रहे, वो कैसे हर बार सिस्टम में टिके रहते हैं?

पुरानी टीम, नए वादे, लेकिन कुर्सी वही!

बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (BCA) को मान्यता मिले सालों हो चुके हैं, लेकिन क्रिकेट संचालन के तौर-तरीकों में खास सुधार नहीं दिखता। टीम के प्रदर्शन में गिरावट आई है, राज्य प्लेट ग्रुप में पहुँच चुका है, लेकिन जिन कोचों और सेलेक्टरों की निगरानी में यह पतन हुआ, उनकी भूमिका पर कभी कोई गंभीर चर्चा नहीं होती।

हर साल खिलाड़ियों का मैच खेलने के दौरान सख्ती बरती जाती है। कटऑफ पार न करने वाले बाहर हो जाते हैं। लेकिन वही सख्ती कोच और सेलेक्टरों पर क्यों नहीं लागू होती? क्या उनके लिए कोई परफॉर्मेंस रिव्यू सिस्टम नहीं है? या फिर वे “सिस्टम के चहेते” हैं?

जिसने टीम को ऊपर पहुंचाया, वो बाहर, जिसने गिराया, वो बरकरार!

खेल जगत में यह स्वाभाविक माना जाता है कि जब टीम का प्रदर्शन अच्छा हो, तो उस टीम के कोच और चयनकर्ताओं को सम्मान मिलता है और जब प्रदर्शन गिरे, तो जिम्मेदारी तय होती है। लेकिन बीसीए में मामला उलटा दिखता है।

जिस कोच के कार्यकाल में अंडर-19 टीम से लेकर सीनियर टीम ने शानदार प्रदर्शन किया, उसे अगले सीजन में हटा दिया गया। वहीं ऐसे लोग जो टीम को प्लेट ग्रुप तक ले आए, उन्हें या तो बनाए रखा गया या पदोन्नति मिली। यह न केवल खिलाड़ियों के मनोबल को गिराता है, बल्कि पूरे चयन तंत्र की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।

नया सीजन, पुराने सवाल

2025-26 सत्र के लिए BCA ने कोच, सेलेक्टर और सपोर्ट स्टाफ की नियुक्तियों की प्रक्रिया शुरू की है। आवेदन लिए जा चुके हैं, साक्षात्कार की प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी होगी। लेकिन पूरे बिहार क्रिकेट जगत में बस एक ही चर्चा है-“क्या बदलाव होगा या फिर वही पुराने चेहरे लौटेंगे?”

कुर्सी का खेल, परफॉर्मेंस नहीं पहचान है पैमाना?

अगर टीम हार रही है, बार-बार खिलाड़ियों को बदला जा रहा है, तो इसका सीधा मतलब यह है कि चयन और कोचिंग रणनीति विफल रही है। फिर भी अगर वही लोग हर साल दोबारा चुन लिए जाते हैं, तो इसका मतलब है कि बीसीए में चयन सिर्फ औपचारिकता बन कर रह गया है।

कई पूर्व खिलाड़ियों और जानकारों का मानना है कि जब तक कोच और सेलेक्टरों के लिए भी एक ठोस परफॉर्मेंस रिव्यू सिस्टम लागू नहीं होगा, तब तक बिहार क्रिकेट का भविष्य यूँ ही उलझता रहेगा।

अब निगाहें फैसले पर टिकी हैं

बिहार इस बार चार प्लेट ग्रुप टीमों के साथ मैदान में उतरने वाला है। अब देखना यह है कि क्या इस बार बीसीए पुरानी गलती नहीं दोहराएगा? क्या कोच और सेलेक्टर की स्थायी दीवार आखिरकार गिरेगी? या फिर बदलाव की उम्मीदें इस बार भी सिर्फ फाइलों और बैठकों में ही दबकर रह जाएंगी?

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