पटना। बिहार क्रिकेट एसोसिएशन की सेलेक्शन प्रक्रिया में सुधार होने की संभावना कम ही दिख रही है। पिछले साल जो उससे इस साल दो कदम आगे ही बढ़ा है और इस चक्कर में बाहरी खिलाड़ियों के आने से अपने खिलाड़ी बेगाने हो गए हैं। घरेलू टूर्नामेंट में आप लाख तीर मारे हों पर आपका सेलेक्शन संभावित टीम में भी नहीं हो सकता है।
घरेलू टूर्नामेंट में लगातार प्रदर्शन करने और बिहार में क्रिकेट का मौसम लौटने तक बरसों इंतजार करने वाले खिलाड़ी अभी संघ की नजर में नहीं हैं। ऐसे एक दो नहीं कई हैं। सुपौल के राजेश कुमार सिंह, पूर्णिया के विजय भारती, भागलपुर के बासुकीनाथ, भोजपुर के ह्यदयानंद, पटना के सिद्धांत विजय, कमलेश सिंह, रुपक कुमार, वरुण राज, साकेत कुमार, सतीश राय, प्रीतम भारती, निशांत कुमार, राजीव कुमार, आशुतोष कुमार, अरवल के रंजन राय सहित अन्य जिलों के कई ऐसे खिलाड़ी है जो बिहार की ओर मैच खेला और सीनियर ग्रुप के मैच खेलने की आस में बिहार में बने रहे पर जब मौका आया तो ये दरकिनार कर दिये गए और जगह किन्हीं मिली जिसने कभी बिहार में खेला नहीं। पिछले सीजन में बिहार की ओर से खेलने वाले उत्कर्ष भाष्कर और विभूति भाष्कर का नाम भी इस सूची में नहीं रहना आश्चर्य व्यक्त करता है।
पिछले साल बिहार के विजय हजारे टीम में शामिल मनीष कुमार राय ने भी संघ के रुखे रैवये के कारण बिहार को अलविदा कह दिया है। उस खिलाड़ी ने वर्ष 2011 में कूच बिहार ट्रॉफी में शानदार खेल दिखाया था।
संघ द्वारा घोषित लिस्ट में कई ऐसे प्लेयर हैं जो बिहार में खेला ही नहीं वे सीधे सेलेक्शन ट्रायल में पहुंचे और क्या चौका-छक्का जमाया कि 61 खिलाड़ियों की लिस्ट में जगह बना ली।
अपने खिलाड़ियों को तो जगह नहीं ही मिलेगी क्योंकि उनका कोई वकील ही नहीं है या उन्हें इसीलिए दरकिनार कर दिया गया है कि वे विरोधी खेमे से ताल्लुक रखते हैं। अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में बिहार टीम में केवल बाहरी खिलाड़ियों की भरमार रहेगी जो यहां आकर आधार कार्ड बना सीधे टीम में जगह बनायेंगे। अगर संघ को लगता है कि हमें इस साल चैंपियन होना है तो देश के नामी-गिरामी क्रिकेटरों को लायें जिससे टीम का परफॉरमेंस भी सुधरेगा और यहां के खिलाड़ियों को कुछ सीखने को मिलेगा।