पटना, 22 जुलाई। बिहार क्रिकेट एसोसिएशन में क्रिकेट के विकास का कार्य पाक्षिक चलता है पर दुर्भाग्य की बात यह है कि इस कार्य को संभालने वाले अधिकारी का जब पटना प्रवास होता तो मौसम खलनायक बन जाती है और उनके यहां से चले जाने के बाद मौसम मेहरबान हो जाती है। इसी पाक्षिक व्यवस्था का परिणाम है कि इस सत्र में भाग लेने वाली बिहार टीम के गठन के लिए होने वाला ट्रेनिंग कैंप अभी तक नहीं शुरू हो पाया है।
क्रिकेट जानकार तो यहां तक कह रहे है कि ऐसी पाक्षिक व्यवस्था के भरोसे अगर बिहार क्रिकेट एसोसिएशन का कार्य चलता रहा तो कुछ मैचों में बिहार की भागीदारी न गायब हो जाए क्योंकि इसे संभालने वाले अधिकारी जब यहां नहीं रहेंगे तो पत्ता तो हिलेगा नहीं। जब पत्ता नहीं हिलेगा तो टीम के चयन की बात तो दूर की रही।
इसकी पाक्षिक व्यवस्था का परिणाम है कि खिलाड़ियों की प्रतिभा को देखने के लिए संबंधित अधिकारी द्वारा शुरू किया प्रेसिडेंट कप का फाइनल नहीं हो पाया। टूर्नामेंट भी हुआ तो बिना किसी कायदे-कानून का। इसके संचालन में रोज नियमों का बदलाव होता रहा। इस कप में प्रतिभा दिखाने वालों को आगे कितना मौका मिलेगा यह देखने वाली बात होगी।
बीसीसीआई द्वारा आयोजित होने वाले घरेलू टूर्नामेंटों में भाग लेने वाली टीम के गठन और बेहतर परफॉरमेंस के लिए लगभग हर राज्यों में कैंप शुरू हो चुका है। कई राज्यों में तो कैंप के दो-तीन चरण खत्म हो चुके हैं पर बिहार में इसका अभी तक बिगुल नहीं बजा है।
खिलाड़ी रोज आपस में इस संदर्भ बात करते रहते हैं। खिलाड़ी के साथ-साथ अविभावक भी कैंप की सूचना के लिए जिला संघों के अधिकारियों से लेकर अन्य स्रोतों को कंगालते रहते हैं। बिहार क्रिकेट एसोसिएशन से जुड़े अधिकारियों को फोन लगाते रहते हैं। बस एक जवाब मिलता है यह कार्य मेरे क्षेत्र से बाहर का है। ऊपर के अधिकारी बता पायेंगे या बिहार क्रिकेट एसोसिएशन की वेबसाइट देखते रहिए।
क्रिकेट जानकारों का कहना है कि पाक्षिक व्यवस्था को कम से कम सीजन के दौरान थोड़ा ठीक करना होगा नहीं तो बिहार के क्रिकेटरों के विकास की गति रुक जायेगी। कहीं ऐसा न हो प्लेट ग्रुप में खेलने वाले टूर्नामेंटों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो जाए।