Friday, October 31, 2025
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BCA सचिव अमित कुमार ने कहा-संघ में गैर संवैधानिक तरीके से हो रहे हैं सारे कार्य

by Khel Dhaba
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बीसीए सचिव

पटना। बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) में अध्यक्ष और सचिव के बीच तनातनी जारी है। इधर बीसीए के सचिव अमित कुमार ने अपने व्हाटशग्रुप में एक मैसेज डाला है जिसमें अपने सचिव बनने से लेकर 30 दिसंबर तक हुई सीओएम की बैठक की चर्चा करते हुए बीसीए अध्यक्ष द्वारा किये जा रहे कार्यों के बारे में बताया। उन्होंने अपने मैसेज में जिला संघों से अपील की है कि आप साथ दें और गलत कार्यों का विरोध करें।

बिहार किक्रेट संघ से जुड़े समस्त पदाधिकारीगण एवं किक्रेट परिवार
नमस्कार
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि नववर्ष आनंदमय रहा होगा। मैं आज कुछ बातें आपसे इस प्लेटफार्म के माध्यम से शेयर करना चाहता हूं, जो आपको जान लेना बेहद आवश्यक है।

मैं आपलोग के साथ 25 सितंबर की आमसभा की बैठक में रिपब्लिक में बैठा था। उस दिन की बैठक में सुप्रीमकोर्ट के आदेश के कारण कोई रिजल्ट सुनाया नहीं गया और पूरी बैठक पूर्व के पदाधिकारियों ने संचालित की, केवल दिलीप भैया को छोड़कर, वो माननीय लोकपालमहोदय के आदेश के कारण।

30 सितंबर के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 3 अक्टूबर को चुनाव परिणाम घोषित हुए और अचानक खबर आई 4 अक्टूबर को COM की बैठक बेबिनार से है। मैं बीसीए के संविधान के बारे में कुछ नहीं जानता था। जब बेबिनार से जुड़ा तो अध्यक्ष जी ने कहा, पिछली बैठक की संपुष्टि। मैंने कहा, प्रिया, ओमप्रकाश जी और मैं पिछली बैठक के बारे में कुछ नहीं जानते हैं, अत: फिजीकली जब बैठक होगी तब पढ़कर हमलोग संपुष्ट कर देगें।

शायद पहली बार अध्यक्ष जी को यह बात नागवार लगी। अरवल और मधुबनी पर कोई निर्णय नहीं हुआ था, फिर भी बाद में दिखाया गया कि निर्णय हुआ। अनेक सदस्य की आवाज को भी म्यूट रखा गया, इस बैठक में। इस बैठक के बाद जिज्ञासावश मैनें बीसीए के सीईओ से बीसीए का संविधान एवं कुछ अन्य पेपर मेल के माध्यम से मांगा। लेकिन सीईओ ने बड़ी ही रूडली कहा, अमित बेबसाइट पर है, अवलोकन करें।

मेरा प्रथम अनुभव था, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक जीवन में लगातार जुड़े रहने से पता चला कि दाल में कुछ न कुछ काला है। मैंने मेल के माध्यम से कागज मांगने का दबाव बनाना शुरु किया, अध्यक्ष, सीईओ और बीसीसीआई से लगातार पत्राचार किया। इसी बीच एक खबर आई कि 18 अक्टूबर को सुप्रीमकोर्ट में एक केस मेंशन हुआ है। मैं तब तक बीसीए के संविधान का अध्ययन बहुत हद तक कर लिया था, जिसमें स्पष्ट है कोई भी केस किया जाएगा तो वह सचिव के द्वारा, तो मुझे लगा यह केस कौन किया है, जिज्ञासावश जब पता किया तो मैं अंदर से हिल गया और लगा कोई इतनी बड़ी भी साजिश कर सकता है, क्या …?

मैं निर्वाचित सचिव था, लेकिन कार्यकारी सचिव की हैसियत से अध्यक्ष जी ने किया है, और मेंशन का विषय अगर हमारे बेगूसराय की भाषा में कहें तो बिहार किक्रेट एसोसिएशन को तिवारी एंड फैमिली लिमिटेड बनाने की पूरी तैयारी थी। एक सप्ताह युद्ध स्तर पर काम किया, अंतत: इन्हें सुप्रीमकोर्ट से उन्हें अपना मेंशन वापस लेना पड़ा।
इस बीच इस मेंशन को लेकर अध्यक्ष जी ने लगभग 20 लाख रुपए बीसीए का बीसीए के अस्तित्व को समाप्त करने के लिए पानी की तरह सुप्रीमकोर्ट में व्यय किया गया। इसी बीच बीसीसीआई से पर्यवेक्षक के आने की सूचना प्राप्त हुई। लगातार मेल के दबाव में जो कार्यवाही पंजी आम सभा, विशेष सभा चाहे COM को हो, जो किसी को देखने नहीं मिला था, जबकि नियमन उसकी प्रति हर जिला को भेजनी थी। वह बेबसाइट पर प्रकाशित हुआ। पढ़ने के बाद लगा एक पर एक षड्यंत्र।

चयनकर्ता का साक्षात्कार लेने वाले दिलीप भैया, शंकर दादा और प्रफुल्ल। चयनकर्ता में हस्ताक्षर केवल दिलीप भैया और शंकर दा का और दोनों का बेटा रणजी टीम में।

महिला चयनकर्ता में जूनियर चयनकर्ता, जूनियर में सीनियर चयनकर्ता। U25 के किसी टीम को जूनियर कमिटि तो किसी टीम को सीनियर कमिटि चुन रही है। जो चयनकर्ता वहीं कोच, वहीं आईसीए के सदस्य। हां चयनकर्ता चुनाव में एक बात कामन था कि साक्षात्कार देने में जो सबसे कम मैच खेले थे, उन्हें चयनकर्ता बनाया गया।

बिहार में योग्य खिलाड़ियों के बाबजूद अन्य प्रांत से कम योग्य लोग चयनकर्ता बनें। ऐसा मानिए कुछ लोगों का सुनियोजित गिरोह जो बिहार क्रिकेट को परिवार की सम्पत्ति नहीं बना पाया तो अयोग्य एवं लोभी लोगों के माध्यम से अपने जेब में रखने का भरसक प्रयास किया। अब आप 25 सितंबर की आमसभा में केवल सुप्रीमकोर्ट द्वारा दिए गए संशोधन का प्रस्ताव पास हुआ और रिजल्ट लिफाफा में करके देने की बात हुई। लेकिन कार्यवाही पंजी का अवलोकन कीजिए। सुप्रीम कोर्ट के संशोधन को अंगीकृत भी करते हैं, सम्मान भी करते हैं, फिर सुप्रीमकोर्ट के फैसला पर विचार करने के लिए तीन लोगों की कमिटि बना देते हैं। इन्हें मालूम होना चाहिए सुप्रीमकोर्ट का फैसला नियम होता है, इनके छेड़ छाड़ से एक बार फिर बीसीए, बीसीसीआई के अनुदान से वंचित रह सकता है।

दूसरी बात जब परिणाम लिफाफा में था ,घोषणा 30 को हुआ तो 25 को ही मैं सचिव, दिलीप जी उपाध्यक्ष और आशुतोष कोषाध्यक्ष कैसे बन गए। अगर हमलोग 25 को बन गए तो संयुक्त सचिव प्रिया क्यूं नहीं बनी, शंकर दा कैसे बन गए। पटना से बेगूसराय दूर हो गया और कैमूर नजदीक हो गया। रेगुलर प्रैक्टिस करने वाले वकील के पास काफी समय है, और जो बिल्कुल फ्री है, उसके पास समय नहीं है। जबकि कोई भी संशोधन प्रभावी तब होगा, जब सुप्रीमकोर्ट अनुमति देगा, लेकिन यहां मौखिक कानून चलता है।

अपने संविधान के तहत हर तीन महीने में COM की बैठक होनी है और उसे सचिव कभी न करता है। इस नियम के अनुसार तीन जनवरी को बैठक संवैधानिक रूप से होनी चाहिए थी, मैनें 19 को एक मेल सीईओ को तीन जनवरी को रिपब्लिक में रखने को कहा। जगह की अनुपलब्धता बताकर एकबार फिर असंवैधानिक रूप से 30 को बैठक अपने घर के सामने होटल में रखा गया। मैं यह जानते हुए बैठक नियमानुकूल नहीं है, फिर भी जाने का फैसला लिया ताकि किसी साजिश को रोका जाए। मैनें सीईओ से कहा वीडियो रिकार्डिंग की व्यवस्था बैठक के दौरान रहे ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके, बाद में, अगर कोई विवाद होता है तो। लेकिन सीईओ साहब ने वीडियो रिकार्डिंग की व्यवस्था नहीं की और मैंने जो व्यवस्था की उसे अध्यक्ष जी के द्वारा बुलाए गए कुछ अराजक तत्व भीतर जाने नहीं दे रहे थे। मुझे ऐसी संभावना थी, इसीलिए निबंधन विभाग, जिला पदाधिकारी, एवं ऊपर से नीचे तक सभी प्रशासन को खबर कर दिया था।

अंततः पाटिलीपुत्रा थाना आई, और सभा स्थल पर वीडियो रिकार्डिंग लगवा दिए। फिर क्या था 2 बजे से 3.30 हो गए। मीटिंग स्थल पर होटल प्रबंधक आए और कहे बैठक स्थगित हो गई । मैनें पूछा क्यूं। प्रबंधक ने कहा अध्यक्ष जी फोन से बुक किए थे, अभी उन्होनें कहा, आज बैठक स्थगित हो गई। (प्रबंधक का वीडियो मौजूद) फिर वेयरा ने सारा समान हटाना शुरु किया। तब मैंने संजय जी से कहा बैनर खोलवा लीजिए।

5 बजे तक मैं और ओमप्रकाश जी मीटिंग स्थल पर रहा, कोई नहीं आया फिर हमलोग ने बैठक स्थगित करके 3 तारीख पर डालकर चल दिया। अचानक रात में एक फोटो शूट के सहारे बैठक का झूठा प्रपंच दिखाकर एक बार फिर मनगढ़ंत कहानी लिखते हुए, हर पदाधिकारी का भयादोहन करते हुए, क्योंकि हर एक की कमजोरी का नस उसने अपने पास रख लिया है, उनसे जहां तहां हस्ताक्षर करवाया जा रहा है।

दिलीप भैया और शंकर दा की तो यह स्थिति है कि जिस वार्षिक ऑडिट पर इनके हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं है, वहां भी कर रहे हैं, और अध्यक्ष का हस्ताक्षर आवश्यक है तो वह कहीं नहीं कर रहे हैं। लड़ाई बड़ी है, 19 को फिर सुप्रीमकोर्ट में चर्चा है। अब आवश्यक है एक बार हम सब एक साथ बैठकर कोई ठोस नीति बनाकर उसपर अमल करें। हमारी खामोशी, कुछ लोगों का अतिस्वार्थ हम लोग के रास्ते के रोड़े हैं। इनपर एक विस्तृत चर्चा की आवश्यकता है। अत: आप अपना बहुमूल्य सुझाव फोन, व्यक्तिगत वाटशप के माध्यम से दें सकते हैं। एक बार पुनः आप सभी को नववर्ष की मंगलकामना।

 

 

 

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