पटना। बिहार के क्रिकेटरों के लिए बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (BIHAR CRICKET ASSOCIATION) के रहनुमाओं द्वारा डबल बोनांजा ऑफर दिया जा रहा है। यह बात अलग है इसका साइड इफेक्ट भी गंभीर भी हो सकता है और आज से चार-पांच साल पहले लंबा वनवास काट चुके बिहार क्रिकेट को एक बार फिर से वह दिन देखना ना पड़े।
आप सोच रहे होंगे बोनांजा ऑफर के साथ-साथ ये साइड इफेक्ट और फिर पुराने दिनों की तरह वनवास का क्या चक्कर है!
मामला यह है कि बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के दो सामानांतर गुट एक ही ट्रैक पर अपनी गाड़ी दौड़ा रहे हैं और दोनों गुट धरातल पर क्रिकेट को दिखाने के लिए खेल कम, खेल की राजनीति ज्यादा कर रहे हैं।
एक ओर जहां एक गुट खिलाड़ियों के लिए टूर्नामेंट कराने की घोषणा की है तो दूसरे गुट ने लगभग उन्हीं तिथियों में ट्रायल कराने की।
कुछ जिलों को छोड़ दें तो बाकी जिलों के पदाधिकारियों को दोनों खेमा अपना यूनिट एवं अधिकारी मानता है। इसका असर यह होगा में एक खेमा में एक जिला 20 खिलाड़ियों को मैच खेलने के लिए भेजेगा और बाकी खिलाड़ियों को ट्रायल देने के लिए भेज देगा। तो हुई ना क्रिकेटरों के लिए डबल फायदा। इससे उस जिला के निर्धारित संख्या से दोगुनी खिलाड़ियों को अपना जौहर दिखाने का मौका मिलेगा। यदि एकजुट होता बीसीए तो एक जिला से ज्यादा से ज्यादा 20 खिलाड़ियों को ही खेलने का मौका मिलता लेकिन विवाद से खिलाड़ियों की चांदी हो गई। यह तो भविष्य बताएगा कि किस गुट और किन खिलाड़ियों को बीसीसीआई हरी झंडी देता है।
अब इसका साइड इफेक्ट यह होगा कि बीसीए के रहनुमाओं की आपसी खींचतान व राजनीति तथा उनके द्वारा क्रिकेटरों दिए जा रहे डबल बोनांजा ऑफर भविष्य में पुराने दिनों को कहीं दुहरा ना दे और बिहार क्रिकेट को फिर से वनवास देखने को न मिले।
बीसीए में आपसी खींचतान से वर्तमान में क्रिकेटरों को ही फायदा होगा। एक गुट का क्रिकेटर मैच खेलेगा और दूसरे गुट का ट्रायल देगा। यानी कुल मिला कर फायदा तो क्रिकेटर को ही होगा। यह उनके लिए गम भरी खुशी होगी या पूरा गम ही होगा यह तो बिहार क्रिकेट के आला अधिकारी ही बता पायेंगे।
बिहार क्रिकेट एसोसिएशन में विवाद का सिलसिला कभी नहीं थमा। झारखंड बंटवारे के बाद जिस दिन से बिहार क्रिकेट एसोसिएशन की स्थापना हुई उस समय यहां के पदाधिकारी एक साथ मिल कर कभी संघ को नहीं चला पाये। जिसने चलाया वहां कुछ न कुछ विवाद होता गया और हर बार बलि का बकरा बना क्रिकेटर। यहां के क्रिकेटरों को भी गुटों में बांट दिया गया। तुम उस गुट के हो हमारे यहां नहीं खेल सकते हो जिसका खामियाजा आज की तारीख में पटना जिला के क्रिकेटर भुगत रहे हैं।
इन क्रिकेटरों के दर्द को बिहार के क्रिकेट रहनुनामा नहीं समझ सकते हैं। हालांकि उनके अपने भी क्रिकेट खेलते हैं पर जब भी टीम में जाने- आने की बात होती है वे आपस में बातचीत या कुछ सेटिंग गेटिंग अपनों के मामले को सलटा लेते। बाकी क्रिकेटर गया हवा खाने उनकी फिक्र कहां है। खैर जो भी हम सबों को उस दिन का इंतजार करना होगा जब इन क्रिकेट रहनुमाओं की नींद खुलेगी पर तबतक कितने क्रिकेटरों का भविष्य चौपट हो गया होगा।
(गुस्ताखी माफ)