पटना। सोमवार से एक बार फिर बिहार क्रिकेट एसोसिएशन पर काले धब्बे लगने शुरू हो गए हैं लेकिन अभी तक बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) के कमेटी ऑफ मैनेजमेंट (सीओएम) के कोई पदाधिकारी बिहार राज्य की करीब साढ़े 12 करोड़ जनता को स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रहा है। अपने आपको बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के अबतक के ताकतवर अध्यक्ष मानने वाले राकेश कुमार तिवारी पर एक महिला द्वारा लगाए गए छेड़खानी के आरोप पर एफआईआर दर्ज होने के बाद बीसीए से जुड़े पदाधिकारी एवं कर्मचारी बगलें झांकते दिख रहे हैं। आखिर इतने बड़े मामले हो जाने के बाद भी सीओएम के कोई पदाधिकारी संघ हित में आगे क्यों नहीं आ पा रहे हैं। जिस तरह से बिहार क्रिकेट एसोसिएशन का सीओएम अब तक मौन हैं उससे बिहार क्रिकेट जगत ने सीओएम के सदस्यों पर अंगुली उठाने शुरू कर दिये हैं। लोग यहां तक कह रहे हैं कि संघ में निर्णय लेने में दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है।
बिहार क्रिकेट जगत के जानकारों का कहना है कि जिस तरह बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव संजय कुमार, संयुक्त सचिव कुमार अरविंद, जीएम एडमिन नीरज सिंह, मीडिया एंड कम्यूनिकेशन के जीएम सुभाष पांडेय, बीसीए के प्रवक्ता सह अध्यक्ष के मीडिया सलाहकार संजीव कुमार मिश्र, इंफ्रास्ट्रक्चर कमेटी के संयोजक सुनील दत्त मिश्रा उर्फ पप्पू मिश्रा, वित्त कमेटी के सदस्य अजीत कुमार शुक्ला, सीनियर टीम के हेड कोच निखिलेश रंजन और जिशान उल यकीन सहित अन्य पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों को बिना कानूनी प्रक्रिया पूरी किये किसी को तो दिन में और किसी को तो मध्य रात्रि में बर्खास्त करने के मामले सामने आते रहते हैं फिर भी उस समय से लेकर आज तक कोई बोलने के लिए तैयार नहीं है। लोगों का कहना है कि मानों सभी को सांप सूंघ गया हो।
इन सबों से कहीं न कहीं बड़े मामले इस बार के हैं। जिसमें लंबी जांच के बाद पुलिस द्वारा बीसीए अध्यक्ष के ऊपर गैर जमानती धारा में एफआईआर दर्ज करा दी गई और मामले को गंभीर मानते पुलिस ने नईदिल्ली के संबंधित माननीय न्यायालय में पीड़िता महिला का 164 का फर्ज बयान भी दर्ज करवा दिया जो माननीय न्यायालय का विषय है। लोगों का कहना है कि इतना होने के बाद भी बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के सीओएम के पदाधिकारी कुंभकर्णी नींद में सोए हुए हैं और बिहार की प्रतिष्ठा लगातार धूमिल होती जा रही है। क्रिकेट के जानकारों का कहना कि इससे स्पष्ट होता है कि राज्य के उदीयमान क्रिकेटरों के भविष्य से बीसीए के सत्तासीन लोगों को कोई लेना देना नहीं हैं। लोगों का कहना है कि बीसीए अब तो प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में हो गई है तो कई पदाधिकारियों को तो पुत्र मोह का बादल घेर चुका है।
राज्य के लोगों के बीच यह भी चर्चा का विषय बना हुआ है कि ऐसे आरोप अगर बीसीए से जुड़े अन्य पदाधिकारियों, जिला संघों के पदाधिकारियों, कर्मचारियों, संघ से जुड़े खिलाड़ियों पर लगा होता तो उन सबों पर बीसीए का तानाशाही रूपी चाबूक कब का चल गया होता लेकिन अब तो लोग कहावत भी कहने लगे हैं कि ‘सैंया भये कोतवाल-तो डर काहे का’। अब तो लोग यहां तक चर्चा कर रहे हैं कि देश और राज्य की सरकारें बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ के अभियान में लगी। वहीं गैरजमानती धारा में लगे आरोप के बाद भी लोग कुर्सी से चिपके रहने में अपनी भलाई समझ रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि बात तो वही हो गई कि ‘खेत काहे गदहा और मार खाए जुलाह’।
लोगों का कहना है कि ऐसे में बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के वर्तमान सीओएम के पदाधिकारियों को अपनी अंतर आत्मा की आवाज को जगा कर राज्य एवं बीसीए हित में संघ के नियमावली के आलोक में सीधी कार्रवाई करनी चाहिए। अब देखना है कि बीसीए का सीओएम केवल कागज पर बलशाली है या संवैधानिक निर्णय लेने में भी ताकतवर है।
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