ओलंपिक का नाम सुनकर मन में यही आता है कि यह एक बहुत बड़ा आयोजन होता होगा और पूरी दुनिया की नजर उस पर रहती होगी। आयोजनकर्ता इसके लिए कोई कसर नहीं छोड़ते होंगे और दुनिया भर से आये खिलाड़ियों को बेहतरीन सुविधा देने की कोशिश करते होंगे, लेकिन उस समय ऐसा कुछ नहीं था।
उदासीनता और कुव्यवस्था का दौर अमेरिका के सेंट लुई में 1904 में हुए तीसरे ओलंपिक में भी जारी रहा। इसे किसी भी स्तर से अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता नहीं कहा जा सकता था। आयोजन करने वाले और खिलाड़ी भी इसकी महत्ता को अभी तक समझ नहीं पाये थे।
यह आयोजन पहले यह अमेरिका के शहर शिकागो में होने वाला था लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट के अनुरोध पर इसका आयोजन सेंट लुई को दिया गया क्योंकि उस समय वहां नई तकनीक से बने सामानों की एक विश्व प्रदर्शनी लगी थी। पेरिस ओलंपिक का आयोजन भी एक मेले दौरान ही किया गया था।
1904 में जापान और रूस के बीच संघर्ष छिड़ गया था जिस कारण पूरे विश्व की नजर उस तरफ चली गई। ऐसे हालात में एक और ओलंपिक का फ्लॉप शो हुआ। उस ओलंपिक में देशों को कम हिस्सेदारी का प्रमुख कारण सेंट लुई का यूरोपीय देशों से बहुत दूर होना था। फ्रांस और स्वीडन का कोई प्रतिभागी नहीं था। उस समय ओलंपिक में सिर्फ एमेच्योर खिलाड़ियों को ही प्रवेश दिया जाता था। ऐसी स्थिति मं संपूर्ण खर्च इन खिलाड़ियों को ही उठाना पड़ता था और आयोजन स्थल पर पहुंचने में इन्हें देखने वाला कोई नहीं होता था।
एक जुलाई से 23 नवंबर तक चल आयोजित इस ओलंपिक में खिलाड़ियों की संख्या पर्याप्त नहीं थी। इससे भी बढ़कर चिंता की बात यह हुई कि रंगभेद के आधार पर कुछ नीग्रो और अन्य लोगों के लिए अलग प्रतियोगिता आयोजित की गई। पियरे द कुबर्टिन को इससे गहर दुख हुआ। उन्होंने इस भेदवाली व्यवस्था का विरोध किया और स्पष्ट घोषणा की कि ओलंपिक किसी देश, जाति या गुट के विशेषाधिकारी के तहत नहीं आते। अगर ओलंपिक पर किसी का स्वामित्व है तो वह पूरे विश्व का है।
इन्हीं विवादों के माहौल के बीच करीब साढ़े चार महीने तक इस ओलंपिक का आयोजन हुआ। इस दौरान 91 स्पर्धाएं आयोजित की गई जिसमें 12 देशों के 687 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। इसमें छह महिलाएं और 681 पुरुष थे।
525 खिलाड़ी केवल अमेरिका से ही थे और कुल पदकों का 80 प्रतिशत इन्हीं के हिस्से में कगए। इस ओलंपकि में कुछ चीजें सामने आईं। खेलों के अंदर बॉक्सिंग, डम्बेल, डेकॉथलॉन और फ्री स्टाइल कुश्ती को पहली बार शामिल किया गया। पहला, दूसरा और तीसरा स्था प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को पहली बार स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक से सम्मानित किया गया। इससे पहले चांदी के मेडल और जैतून की शाखाएं प्रदान की जाती थी।
तस्वाना प्रांत के मैराथन धावक ले ताउ और जैन मसिआनि पहले अफ्रीकी बने जिन्होंने ओलंपिक में अफ्रीका का प्रतिनिधित्व किया। इस ओलंपिक की सबसे मजेदार बात यह रही कि अमेरिका के जिम्नास्ट जार्ज आयशर ने कुल छह पदक जीते।
यह जानकर आश्चर्य होगा कि उनका बायां पैर कटा हुआ था और लकड़ी केपैर लगा कर वे पदक जीतने में सफल रहे। अमेरिका के ही जेम्स लाइटबॉडी ने 800 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक और 1500 मीटर में विश्व रिकॉर्ड बनाते हुए स्वर्ण जीते। तैराकी में हंगरी के जोल्टन हाल्मे ने 100 मीटर और 50 मीटर की फ्री स्टाइल स्पर्धाएं जीती।
50 मीटर की स्पर्धा में उन्होंने अमेरिका के स्कॉट लेअरी को एक फीट की दूरी से मात दी। लेकिन अमेरिका के निर्णायक के इसे माने से इनकार कर दिया और लेअरी को विजेता घोषित कर दिया। इसे लेकर विवाद हो गया और फिर से मुकाबला कराया गया जिसे हाल्मे जीतने में कामयाब रहा।
इस ओलंपिक की मैराथन स्पर्धा में एक यादगार घटना घटित हुई। फिनिश लाइन को सबसे पहले पार करने वाले अमेरिका के फ्रेड लॉर्ज थे। जब वह अमेरिकी राष्ट्रपति की बेटी एलिस से पुरस्कार ग्रहण करने ही वाला था कि खुलासा हुआ कि उसने 11 मील की दूरी एक मोटरकार से सफर कर तय की है। तब उसे किसी एमेच्योर स्पर्धा में हिस्सा लेने से आजीवन प्रतिबंधित कर दिया गया।
इस तरह वे ओलंपिक में इस तरह का प्रतिबंध झेलने वाले पहले खिलाड़ी बने। हालांकि एक साल बाद उसे बोस्टन मैराथन में हिस्सा लिया और विजेता बना। 40 किलोमीटर की मैराथन दौड़ की स्पधार् का खिताब ब्रिटिश मूल के अमेरिका निवासी थॉमस हिक ने तीन घंटे, 28 मिनट और 53 सेंकेंड का समय निकाल कर जीता। फुटबॉल स्पर्धा का खिताब कनाडा के गाल्ट फुटबॉल क्लब ने जीता।