अनुपम वर्मा
पटना। क्रिकेट में आपने कई नियम व तकनीक जोड़ने के साथ-साथ चौकों छक्कों सहित अनेक आकड़ों एवं रिकॉर्डो को देखा और सुना होगा। मगर इससे अलग क्रिकेट व इसके प्रशासन के अंदर फैली गंदगी यानी भ्रष्टाचार मिटाने में भी इस शख्स ने रिकॉर्ड कायम किया है। आज खेल जगत में देश क्या, विदेशों में भी विशेषकर क्रिकेट जगत इनको जानता व पहचानता है। इन्होंने संघर्ष की जो गाथा लिखी है उसकी एक लंबी फेहरिस्त है। ये बचपन से ही हक की लड़ाई लड़ने में जुझारू रहे है। एक खिलाड़ी के तौर पर उतने सफल तो नहीं हो पाये पर क्रिकेट से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए जो लड़ाईयां लड़ी वह खेल जगत में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गई है। तो आइए जानते हैं क्रिकेट से भ्रष्टाचार मिटाने वाली पिच पर लंबी पारी खेलने वाले शख्स आदित्य वर्मा के बारे में उनकी पत्नी अनुपम वर्मा की कलम से।
आदित्य वर्मा के घर में कोई खिलाड़ी तो नहीं था पर उनके पिता स्व. महावीर प्रसाद वर्मा (जन्म दिन-22 जून) खेलों के बड़े शौकिन थे। खास कर क्रिकेट के। साठ के दशक मे वे अनेकों बार टेस्ट मैच देखने के लिए जाते रहते थे। खिलाड़ियों को करीब से देखने के लिए जिस होटल मे टीम रूकती थी वे उसी होटल में रूकते थे। पिता की क्रिकेट के प्रति दीवानगी के कारण आदित्य वर्मा का भी क्रिकेट के प्रति जूनुन बचपन से था। स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। ओपनर बैट्समैन के रूप में बिहार विश्वविधालय क्रिकेट टीम की ओर खेलते हुए सत्र 80-81, 81-82 में वाराणसी और भागलपुर में हुई पूर्व क्षेत्र विश्वविद्यालय क्रिकेट प्रतियोगिता में हिस्सा लिया।
इसके पश्चात वर्ष 1982 मे टाटा स्टील में खिलाड़ी के तौर पर नौकरी लग गई। इनके चाचा कन्हैया प्रसाद जो कि उस समय नामी फुटबॉलर थे टाटा स्टील में ही नौकरी करते थे। 82 से 92 तक टाटा स्टील मे नौकरी किया। कंपनी के टीम के लिए खेला। वर्ष 1992 में छुट्टी मे घर आये फिर लौट कर नहीं गए। त्याग पत्र भी नहीं दिया। टाटा स्टील में नौकरी की करने का उनका उद्देश्य वह पूरा नहीं हो पाया। इनका सपना था कि बिहार क्रिकेट टीम का सदस्य बनूं पर जमशेदपुर का वर्चस्व होने के कारण इन्हें नकरा दिया जाता रहा। इसके बाद इन्होंने टाटा स्टील की नौकरी छोड़ दी पर क्रिकेट से नाता जुड़ा रहा।
बिहार विभाजन के बाद बिहार में क्रिकेट का माहौल लौटा तो एक बार फिर आदित्य वर्मा लाइम लाइट में आये। यहां के क्रिकेट के माहौल को सुधारने के लिए उन्होंने क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार का गठन किया और लंबी लड़ाई लड़ी जो अबतक जारी है। झारखंड द्वारा बिहार का जो हक छिना गया उसके लिए वर्ष 2003 से उन्होंने जो लड़ाई शुरू की वह पटना, झारखंड, बाम्बे हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा। वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर केस फाइल किया।
वर्ष 2005 के 12 अप्रैल का अशुभ दिन जब आदित्य वर्मा के सर से पिता का साया हट गया। इस दिन पाकिस्तान और भारत के बीच एक दिवसीय क्रिकेट मैच अहमदाबाद में चल रहा था। पिता मैच टीवी पर देख रहे थे अचानक उनकी मौत हो गई। इसके बाद आदित्य वर्मा सपरिवार पटना में आकर बस गए। पटना आने के बाद आदित्य वर्मा ने बिहार के क्रिकेटरों को हक दिलाने की लड़ाई तेज कर दी। जो लोग साथ चलने को तैयार हुए उन्हें अपने साथ जोड़ा।
लड़ाई जारी थी। इसी बीच वर्ष 2013 में आईपीएल फिक्सिंग का मामला उजागर हुआ। आदित्य वर्मा ने ठाना कि भारतीय क्रिकेट में फैले भ्रष्टाचार को हटा कर बीसीसीआई प्रशासन को साफ-सुथरा बनाया और उन्होंने इसके खिलाफ लड़ाई तेज कर दी। उनका मकसद था बिहार का हक मारने वाले बीसीसीआई को साफ-सुथरा बनाना। इस लड़ाई में उन्होंने जीत हासिल की और चार जनवरी 2018 को बिहार को बीसीसीआई के सीनियर फॉरमेटों में खेलने का हक मिल गया। सीएबी के द्वारा दायर याचिका पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई में अनेको सुधार कर दिया।
इस लंबी लड़ाई में आदित्य वर्मा ने काफी कुछ खोया। केस लड़ने के लिए अपनी पुश्तैनी जमीन बेची। पत्नी (यानी मेरी) सोने की चेन बेची। आदित्य वर्मा की इस लंबी लड़ाई में इनके छोटे भाई अधिवक्ता चंद्रशेखर वर्मा का पूरा साथ मिला। तमाम केस में पैरवीकार की तरह मौजूद रहे।
आदित्य वर्मा द्वारा किये गए इस कार्य के न केवल उनके परिवार के सदस्य पर पूरा क्रिकेट जगत मुरीद है। बीसीसीआई के वर्तमान अध्यक्ष सौरभ गांगुली ने भी एक बार कहा था कि आदित्य जी आपने बीसीसीआई के कार्यप्रणाली में जो सुधार करवाया वह काबिलेतारीफ है। सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धौनी, अजहरूदीन, दिलीप वेगंसरकर, सुरेंद्र खन्ना जैसे भारतीय क्रिकेट के महानायक कहते है कि आदित्य भाई आपने तो पूरे बीसीसीआई को बदल दिया।
बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष शरद पवार ने एक बार कहा था कि मैंने अपने 50 सालों की राजनीति कैरियर आदित्य वर्मा के जैसा ईमानदार और कर्मठ व्यक्ति नहीं देखा है।
बिहार में क्रिकेट के बेहतर माहौल बनाने के लिए आदित्य वर्मा का जो लगन है उसे पागलपन भी कह सकते हैं उसे पत्नी (खुद लेखिका) होने के नाते में जानता हूं। जिस बिहार क्रिकेट के लिए आदित्य वर्मा ने इतनी लड़ाई लड़ी उसकी अपने ही राज्य में कद्र नहीं है वह हार मानने वाले शख्स नहीं है और उनकी लड़ाई अभी जारी है।