
पटना। हर दिल अजीज था यह शख्स। लंबे अरसे तक बिहार में रहा शह-मात वाले खेल का बादशाह पर अपने इस खेल को सारी समस्याओं को मात देकर ऊचाईयों पर ले गया और राष्ट्रीय क्षितीज पर पहचान दिलाई। चाय और विल्स सिगरेट के शौकीन थे। जब कोई मिले तो चाय जरूर पिलाते और सिगरेट का ऑफर करते। अगर ऑफर ठुकरा दिया जाता तो यही कहते है आप अभी बालिग नहीं हुए है चलिए ठीक है। जी हां बात कर रहे हैं कि शतरंज वाले स्व. ए आर खान की। तो आइए जानते हैं इस शख्स के बारे में-
साधारण परिवार में जन्मे लेकिन अपने कर्मों के दम पर ए आर खान साहब ने राज्य खेल जगत में अपना अलग स्थान बनाते हुए राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई थी।
स्वभाव से जिद्दी जनाव ए आर खान ने कभी किसी को अपने ऊपर हावी होने नहीं दिया। खान साहब की बदौलत ही बिहार में शतरंज का आगमन हुआ। उनकी शिक्षा-दीक्षा पटना में हुई, लेकिन वे मूलत: बरबीघा (शेखपुरा) के रहने वाले थे। कालांतर में इनके माता-पिता ने गोलकपुर (महेंद्रू) में अपना ठिकाना बनाया।
सायंस कॉलेज से आईएससी करने के बाद खान साहब ने पूर्व राष्ट्रीय बैडमिंटन चैंपियन सरोजनी गोगटे के पति स्व. सुरेश गोगटे के साथ बाटा कंपनी में पर्यवेक्षक के पद पर योगदान दिया था, लेकिन मात्र 15 दिन में ही बाटा की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद कई मौके मिले लेकिन प्राइवटे ट्यूशन देकर अपना जीवन चलाया।
स्व. खान साहब की पत्नी का इंतकाल कम में ही समय में हो गया। इसके बाद उन्होंने शादी नहीं की। अपने छोटे भाई के साथ जीवन के अंतिम क्षण तक गोलकपुर में रहे।

1967-68 में क्रिसेंट क्लब की स्थापना की। इसी क्लब के माध्यम से खान साहब ने शतरंज का माहौल बनाया। उस समय क्रिसेंट क्लब में राज्य खेल की सबसे बड़ी हस्ती स्व. मोइनुल हक साहब भी पधारते थे। 1969 में बिहार शतरंज संघ का गठन हुआ। इसके पहले अध्यक्ष स्व. डीएन प्रसाद, सचिव स्व. प्रो एसएस अहमद और संयुक्त सचिव स्व. ए आर खान बने थे।
1978-79 में चेस आर्बिटर की परीक्षा पास की। कालांतर में खान साहब ऑल बिहार शतरंज संघ के सचिव बने। यह पद इन्हें स्व. पीएम शर्मा और प्रो प्रभाकर झा की लड़ाई के फलस्वरुप मिला था, लेकिन अपने बेहतर कामों और खेल की राजनीति के माहिर खान साहब 15 वर्ष से ज्यादा समय तक इस पद पर रहे। वे फेडरेशन के संयुक्त सचिव भी बने।
खान साहब को बिहार राज्य खेल प्राधिकरण गवर्निंग बॉडी का सदस्य और जय प्रकाश विश्वविद्यालय सारण के सीनेट सदस्य के रूप में मनोनित किया। इन्होंने अपने जीवन काल में कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं कराई। टीम भेजने के लिए इन्होंने बड़ा ही अनूठा तरीका निकाला था जिसे वे अपने साथ लेते चले गए।
गोलकपुर का ईमली बागान कबड्डी के लिए मशहूर था। वे कबड्डी के खिलाड़ी थे और बाद में राष्ट्रीय रेफरी भी बने। खान साहब की बिहार राज्य कबड्डी संघ के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका थी।

खान साहब का रुटीन था सुबह उठकर घर के कार्यों को निबटा कर गोलकपुर स्थित बदरी की चाय की दुकान पर पहुंच जाना। यहां पर कलाकार सह उनके मित्र आर नरेंद्र के अलावा इस इलाके के शतरंज प्रेमी और खेल प्रेमियों का जमघट लगता। खेलकूद की बातें होतीं फिर घर चले जाना। फिर शाम को अशोक राज पथ स्पोट्र्स ब्यू पहुंच जाना। इस स्थल पर राज्य के दिग्गज खेल हस्तियां का जमावड़ा लगा करता था। यहां पधारने वालों में बिहार क्रिकेट संघ के पूर्व सचिव अजय नारायण शर्मा, बिहार राज्य कबड्डी संघ के सचिव कुमार विजय, बिहार वॉलीबॉल संघ के संयुक्त सचिव सुनील कुमार सिंह, राष्ट्रीय उद्घोषक शैलेश कुमार समेत कई लोग थे। पीडीसीए कार्यालय होने के नाते क्रिकेट के लोग भी आया करते थे। कालांतर में यह स्थल बंद हुआ और खान साहब का यहां से नाता टूट गया। इसके बाद उनकी जिंदगी में अकेलापन आ गया और 16 सितंबर 2010 को इस खुबसूरत सी दुनिया को छोड़ कर चले गए पर उनकी यादें आज भी ताजा हैं।
वे किसी भी खेल महफिल की जान थे। अपने लाजवाब चुटकुलों से माहौल को हल्का रखते थे। उनके राम ईश्वर सिंह, मोइनुल हक साहब, बीएन प्रसाद, अब्दुल बारी सिद्दिकी, अशोक कुमार सिंह, विजय शंकर मिश्र जैसे राजनेताओं से अच्छे संबंध थे पर इसका फायदा उन्होंने कभी नहीं उठाया।
न केवल खेल जगत बल्कि खेल पत्रकारों से उनके संबंध काफी मधुर थे। छोटा हो या बड़ा सब की कद्र एक समान। अपने समाचारों को लेकर वे खुद अखबार के दफ्तर जाया करते और चाय की चुस्की के साथ ढेर सारी बातें किया करते थे। उनके द्वारा बिहार क्रिकेट के एक दिग्गज हस्ती के लिए कही गई बात अबतक सच है। वे कहते थे कि मेरे जाने के बाद तुम लोग हमें जरुर याद करोगे जो सच है।