
नवीन उत्पल
पटना। अपने समय में एक फुटबॉलर के रूप में बिहार में जिसका जलवा था जब वह निर्णायक के रूप में अपनी ऊंचाइयों को छू रहा था तभी एक दिन अचानक मैच के दौरान चोट लगी और इस पर लग गया ब्रेक। वर्तमान समय में वे निर्णायक के क्षेत्र में अपने अनुभवों को बांट रहा है और बिहार फुटबॉल रेफरी बोर्ड का बॉस है। उसकी तमन्ना है कि बिहार से नेशनल रेफरी की कंगाली को खत्म करना है। इस शख्स का नाम है सत्येंद्र कुमार। तो आइए नेशनल रेफरी नवीन उत्पल की कलम से जानते हैं उनके बारे में-



बिहार के बेगूसराय जिला के रहने वाले सत्येंद्र कुमार जिन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई राजकीय उच्च विद्यालय,शालीग्रामी, बेगूसराय से की। उच्चतर व माध्यमिक शिक्षा की पढ़ाई जीडी कॉलेज से की। इनका बचपन से फुटबॉल के प्रति प्रेम था। 12 वर्ष की उम्र में अपने गांव की ओर पहला मैच खेला और सफर आगे बढ़ता चला गया। वर्ष 1989 में पहली बार अपने जिला टीम का प्रतिनिधित्व किया और मोइनुल हक कप अंतर जिला फुटबॉल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इसके बाद उनकी नौकरी दरभंगा पुलिस में हो गई। इसके बाद पुलिस के डिपार्टमेंटल मैच में इनका प्रदर्शन जारी रहा। इनके खेल का जलवा यही नहीं रुका बिहार पुलिस टीम में शामिल करने के लिए पटना लाने के लिए स्टार फुटबॉलर स्व. रामेश्वर सिंह और मनोज कुमार सिंह ने एड़ी-चोटी एक कर दी और अंतत: वे सफल हो गए और सत्येंद्र कुमार उस जमाने की स्टार फुटबॉल टीम बिहार पुलिस के सदस्य हो गए। उस जमाने में बिहार पुलिस में एक से एक खिलाड़ी हुआ करते थे पर सत्येंद्र कुमार ने अपनी अलग पहचान बनाई और इसके चलते हुए वे संतोष ट्रॉफी में हिस्सा लेने वाली बिहार टीम के चार साल तक सदस्य रहे। पांच बार ऑल इंडिया पुलिस गेम्स में शिरकत की। खेल में वो स्व0 रमेश्वर सिंह एवं जयवहादुर सिंह को अपना गुरु मानते है।


बिहार पुलिस की ओर खेलते हुए इनका रुझान धीरे-धीरे रेफरिंग की ओर गया और उन्होंने उसमें कुछ हासिल करने की जिज्ञासा हुई। उन्होंने जितेंद्र कुमार जॉनी से इसके गुर सीखे। वे इस क्षेत्र के लिए जितेंद्र कुमार जॉनी को गुरु और ग्यासुल हक एवं ज्वाला प्रसाद सिन्हा को अपना आदर्श मानते हैं। वे कहते हैं कि विपरित परिस्थितियों में दृढ़ संकल्प होकर आगे बढ़ना हमने फुटबॉल रेफरी सह दोस्त मनोज कुमार एवं श्यामबाबू सिंह से सीखा है।
वर्ष 2000 में उन्होंने निर्णायक की पहली परीक्षा पास की। स्टेट ग्रेड-1 होने के बाद निर्णायक के क्षेत्र में इनकी रूचि बढ़ गया और ये आगे बढ़ते गए। वर्ष 2007 में इनकी मेहनत रंग लाई और राष्ट्रीय पटल पर निर्णायक के रूप में उभर कर आये। राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने अंडर-19 आई लीग, अंडर-16 मैनचेस्टर कप (फाइनल), ऑल इंडिया पुलिस गेम्स (फाइनल) और एआईएफएफ के महिला और पुरुष वर्ग एवं बिहार के अनेक प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में बेहतरीन निर्णायक की भूमिका निभाई।


वर्ष 2010 में एक हादसे ने इन्हें निर्णायक के क्षेत्र में आगे बढ़ने से रोक दिया। पटना में हुए विभागीय मैच के दौरान पैर टूट गया और वे अंतत: इस क्षेत्र में कमजोर पड़ गए पर हौसला नहीं टूटा। अभी वे बिहार फुटबॉल एसोसिएशन के हेड ऑफ रेफरी हैं और निर्णायक के क्षेत्र में बिहार को आगे बढ़ा रहे हैं। बिहार फुटबॉल संघ के सचिव सैयद इम्तियाज हुसैन की मदद से उन्होंने बिहार निर्णायकों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन का प्रमुख कार्य सफलतापूर्वक किया। इस कार्य के बाद दो नेशनल रेफरी दिवाकर कुमार और नवीन उत्पल (लेखक खुद) राष्ट्रीय मानचित्र पर पहुंचे।
वे कहते हैं कि हमारी तमन्ना है कि अगले पांच सालों में बिहार के कम से कम पंद्रह बीस रेफरी को राष्ट्रीय पटल पर पहुंचाया जाए और साथ हि बिहार फुटबॉल संघ के सचिव सैयद इम्तियाज हुसैन के साथ मिलकर निर्णायक के क्षेत्र और फुटबॉल के क्षेत्र में बिहार को समृद्ध बनाया जाए।

अब चर्चा इनके प्रेम प्रसंग की……..
बिहार पुलिस में आने के बाद वे बीएमपी कैंपस में रहते थे। यहीं इनकी मुलाकात कई बार नेशनल खेल चुकी विभागीय महिला एथलेटिक्स खिलाड़ी नमिता चट्टराज से हुई। प्रेम परवान चढ़ा और दोनों ने प्रेम विवाह कर ली। इस शादी के बाद खूब हंगामा हुआ। तत्कालीन कैंप इंचार्ज आरक्षी महानिरीक्षक अभयानंद ने इन दोनों को बुलाया। दोनों तरफ से सवाल-जवाब हुआ। इन दोनों ने कहा कि सर बताएं क्या प्रेम विवाह करना गलत है। आखिर फैसला हुआ कि दोनो को पुलिस टीम से नही हटाया जाय इन दोनों को कैंपस से बाहर रहने की इजाजत मिल गई।फिलहाल इनकी पत्नी राँची में एस0 पी0 ऑफिस में सब इंसपेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। वर्तमान में श्री सत्येन्द्र कुमार वर्ष 1999 से स्पोर्ट्स कोटा में महालेखाकार कार्यालय ( ए0 जी0 ऑफिस) में वरीय लेखा परीक्षक के पद पर कार्यरत है। वर्ष 2001 में विभागीय प्रतियोगिता जो गैंगटॉक ( सिक्किम) में आयोजित थी के सेमीफाइनल में मेघालय के खिलाफ सत्येन्द्र कुमार ने दो गोल कर अपने टीम को 23 वर्ष बाद आल इंडिया के लिए क्वालीफाई करवाया था, वो इसे यादगार मानते हैं। वो अभी भी डिपार्टमेंटल मैच खेल भी रहे हैं निर्णायक की भूमिका भी निभा रहे हैं साथ ही साथ बिहार फुटबॉल एसोसिएशन में हेड ऑफ रेफरी का दायित्व भी बखूबी निभा रहे है।
(लेखक फुटबॉल के नेशनल रेफरी हैं)