पटना। खेल समाचारों का वेब पोर्टल आपका अपना खेलढाबा.कॉम शान-ए-बिहार के नाम से एक वीडियो शृंखला चला रहा है। इस वीडियो शृंखला में आपको बिहार की वैसी खेल हस्ती के बारे में हम बताते हैं जिन्होंने राज्य, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खेल जगत की क्षितिज पर अपने गांव, जिला, राज्य और देश का नाम रोशन किया है। इसी कड़ी में आज हम चर्चा कर रहे हैं बिहार फुटबॉल के द्रोणाचार्य सुनील वर्मा की। तो आइए जानते हैं सुनील वर्मा के बारे में ढेर सारी बातें इस वीडियो के माध्यम से-
पश्चिम चंपारण के नरकटियागंज प्रखंड के शिकारपुर गांव के रहने वाले सुनील वर्मा बिहार फुटबॉल जगत की ऐसी हस्ती हैं जिनका नाम न केवल अपने राज्य बल्कि देश में भी लोग जानते हैं। इस शख्स ने जमाने के ताने सुन कर इस इलाके समेत अन्य जिलों की बेटियों को फुटबॉल की ट्रेनिंग दी और उनके स्टार प्लेयर के बनने के सपने को पूरा किया।
सुनील वर्मा को फुटबॉल के प्रति लगाव बचपन से था। पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई उन्होंने अपने गांव से की। इसके बाद हाईस्कूल की शिक्षा के लिए वे नरकटियागंज आ गए। यहां आने के बाद फुटबॉल के प्रति उनका प्रेम और बढ़ गया। उन्होंने यहां से स्कूली लेवल के फुटबॉल खेले। मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने अपना नामांकन मुजफ्फरपुर के आरएस कॉलेज में करा लिया। इन्होंने कॉलेज की ओर से खेला और बिहार विश्वविद्यालय टीम का भी प्रतिनिधित्व किया। मुजफ्फरपुर में उन्हें खेल के साथ खिलाड़ियों के किट का भी इंतजाम करना पड़ता था। राजनीति शास्त्र से स्नातक की डिग्री लेने के बाद उन्होंने तिरहुत फिजिकल कॉलेज से डीपीएड की डिग्री ली। इसके बाद एक बार फिर वे नरकिटयागंज लौटे। यहां इन्हें टीपी वर्मा कॉलेज में खेल शिक्षक की नौकरी मिल गई। नरकटियागंज लौटने के बाद उन्होंने हाईस्कूल नरकटियागंज में ट्रेनिंग देनी शुरू की। पहले लड़कों को ट्रेनिंग देते थे।




इनके ट्रेनिंग कैंप में एक दिन एक लड़की आई। नाम था आयदा तब्बसुम। लड़की ने कहा कि हमें भी फुटबॉल की ट्रेनिंग लेनी हैं। सुनील वर्मा ने तो हां कर दी पर उसके गांव वालों ने इस पर पंचायत बैठा दी। पर सुखद बात यह रही है कि आयदा के भाई इस बात पर डटे रहे कि उन्हें अपनी बहन के सपने को पूरा करना है सो आयदा ट्रेनिंग लेने लगी। जमाने ने भी सुनील वर्मा को तरह-तरह के ताने सुनाए। आयदा पहले जिला टीम में शामिल हुई। इसके बाद स्टेट, फिर नेशनल और इंटरनेशनल। ताने मारने वाले चुप हो गए। इसके बाद अभिभावक अपनी बेटियों को लेकर आये और बोले कि हमारी बेटियों को भी फुटबॉल की ट्रेनिंग दें।
इसके बाद सुनील वर्मा के कैंप में महिला खिलाड़ियों का जमघट लग गया और ट्रेनिंग लेकर ये खिलाड़ी स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, जिला और राज्य का प्रतिनिधित्व करने लगे। सुनील वर्मा के यहां से ट्रेनिंग लेकर अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय क्षितिज पर छाने लगीं। अंशा कुमारी ने वर्ष 2004 से 2013 तक भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया। इनकी तीन बहने रजनी, लकी और रश्मि ने राष्ट्रीय टूर्नामेंट में बिहार टीम का प्रतिनिधित्व किया। इस कैंप की सोनी कुमारी राष्ट्रीय अंडर-14 फुटबॉल टीम की कप्तान बनी। इसके अलावा शिखा और ज्योति समेत कई लड़कियों ने परचम लहराया।

सुनील वर्मा ने अपने खर्च पर लड़कियों को रखते हैं। खाना से लेकर उनके पढ़ने और खेलने के सामान की सारी व्यवस्था भी खुद करते हैं। इन्हें इस मुकाम तक पहुंचने में उनके भाई अनिल वर्मा,पत्नी पूर्णिमा कुमारी, आलोक वर्मा, ओम बाबू, वर्मा समेत कई हस्तियों ने न केवल आर्थिक मदद की बल्कि इनका हौसला अफजाई भी की। सुनील वर्मा उसे मनोयोग से आज भी लड़कियों को ट्रेनिंग देकर उन्हें अपने सपने को पूरा करा रहे हैं।