पटना, 25 अगस्त। लगता है बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के चयनकर्ताओं के चश्मे में पावर ड्रॉप हो गया है या फिर उनके पीछे खड़े कुछ ‘साहेबों’के पॉवर का जादू चल रहा है। तभी तो दो रन बनाने वाला खिलाड़ी ट्रेनिंग कैंप का हिस्सा है, जबकि वही खिलाड़ी जिसने घरेलू मैचों और प्रेसिडेंट कप में जलवा बिखेरा, बाहर बैठे हैं।
यह खिलाड़ी पटना के पड़ोसी जिला के टीम का इस साल अंडर-23 टीम का हिस्सा था। दो मैच, 23 गेंद और बस दो रन। गेंदबाजी में शून्य, विकेटकीपिंग में शून्य, पर कैंप में जगह पक्की। लगता है, बिहार क्रिकेट में ‘जुगाड़’परफॉर्मेंस से भी बड़ा नियम है।
दूसरी ओर जिले के कुछ पदाधिकारी अपनी पसंदीदा खिलाड़ी की पैरवी में इतने जुटे हैं कि अच्छे प्रदर्शन वाले खिलाड़ियों को नाक रगड़नी पड़ रही है। कुछ खिलाड़ी हैं जिन्होंने न केवल घरेलू टूर्नामेंट बल्कि उससे ऊपर के इवेंट्स में भी दम दिखाया, पर कैंप की सूची में उनका नाम नहीं।
सूत्र बताते हैं कि “बैक डोर” से आने वाले खिलाड़ी अभी भी कैंप में हैं। बीसीए के कुछ खास लोग, जो खुद को सुपरमैन या सुप्रीमो समझते हैं, चयनकर्ताओं पर धौंस डाल रहे हैं। खबर यह भी है कि जब यह मामला अध्यक्ष के पास पहुंचा, तो संबंधित व्यक्ति को चेतावनी दी गई। चुनावी साल है, इसलिए फिलहाल हर कदम पर ताव नहीं दिखाया जा रहा।
क्रिकेट जानकारों का कहना है कि अगर लिस्ट की अच्छी तरह जांच हो, तो पाएंगे कि कई खिलाड़ी हैं जिनका प्रदर्शन चुनिंदा खिलाड़ियों से कई गुना बेहतर है। यानी जिले के अंदर ही हकीकत कुछ ऐसी है: कम प्रदर्शन वाला कैंप में, ज्यादा प्रदर्शन वाला बाहर।
खैर, बिहार क्रिकेट का यह “जुगाड़-तंत्र” कोई नई बात नहीं। हर साल यही कहानी, बस किरदार बदलते रहते हैं। सवाल बस यही है – कब परफॉर्मेंस बनेगी असली मापदंड और कब “दो रन” का जादू खत्म होगा
