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Friday, October 18, 2024

जानिए धौनी की पुस्तक में क्यों है सुनील कुमार की चर्चा

Md. Afroz Uddin

Md. Afroz Uddin
पटना। बिहार क्रिकेट में सुनील कुमार का अपना ही मुकाम है। राज्य के लिए रणजी ट्रॉफी में लंबे समय तक खेलने और कप्तानी करने वाले पटना के इस क्रिकेटर ने अपने कैरियर में कई कामयाबी हासिल की हैं। उनके साथ खेले कई खिलाड़ी आज देश के नामी क्रिकेटर हैं। वह चाहे सुनील कुमार की कप्तानी में खेले हों या, फिर उनके विपक्ष में मैदान पर उतरे हों। वैसे सुनील कुमार को सभी सम्मान की नजर से देखते हैं। एक समय सचिन तेंदुलकर ने उनके खिलाफ 175 रन की पारी खेली थी तो सुनील ने भी 82 रन बनाकर अपनी टीम को जीत दिलाई थी। थोड़ा वक्त बिता तो महेंद्र सिंह धौनी को भी रणजी ट्रॉफी में उन्होंने आगे बढ़ने का मौका दिया। धौनी और सचिन भारतीय क्रिकेट इतिहास के सितारे बने जबकि सुनील कुमार टीम इंडिया में आते-आते रह गए।

बिहार से टीम इंडिया तक धौनी का सफर
भारत के सफल कप्तानों में से एक महेंद्र सिंह धौनी भले ही सुनील के मुकाबले लगभग 10 साल बाद बिहार की रणजी ट्रॉफी टीम में शामिल हुए थे, लेकिन उन्होंने हमेशा ही सुनील को अपने दिल में जगह दी है। फिलहाल धौनी को लेकर आजकल इस बात की चर्चा जोरों पर है कि क्या उनका भारतीय टीम में पुनः प्रवेश होगा । कोरोना वायरस के कारण फिलहाल यह चर्चा थम सी गई है। वैसे माही की कामयाबी को लेकर कई लोगों ने किताब लिखी है। माही के कैरियर पर आधा दर्जन से ज्यादा किताबों में लगभग एक सी ही चर्चा है। फिर भी एक किताब पर पाठक ज्यादा जोर देते हैं, धोनी, कैप्टन कूल नामक पुस्तक में कई बातें माही के प्रशंसकों को अपनी ओर खींचती हैं। इसमें धौनी ने बताया है कि 1999- 2000 के सत्र में जब रणजी ट्रॉफी में बिहार के लिए उनका डेब्यू हो रहा था तब सुनील कुमार ने आगे बढ़कर किस तरह विकेटकीपर की जगह उन्हें दी थी।

सुनील कुमार तब पिछले 10 साल से बिहार के लिए कई मैचों में विकेट कीपिंग कर चुके थे। सुनील चाहते थे कि अपनी बल्लेबाजी पर ध्यान दें, इसलिए धौनी को सुनील ने उस मैच में दस्ताने संभालने का मौका दिया। इसके बाद धौनी धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। अपने पहले रणजी सत्र में धौनी ने बिहार के लिए पांच मैचों में 283 रन बनाए थे और तीन स्टंप समेत कुल 15 शिकार किए थे, जबकि सुनील ने उस सत्र में 8 मैचों में 462 रन का योगदान किया था।

महेंद्र सिंह धौनी का क्रिकेट कैरियर 1995 से आगे बढ़ा। रांची में फुटबॉल से शुरुआत करने के बाद क्रिकेटर बने और फिर विकेटकीपर-बल्लेबाज के रूप में मशहूर हुए। 1995 से 1998 तक कमांडो क्रिकेट क्लब के लिए खेलते हुए उनकी पहचान एक धूम धड़ाका बल्लेबाज के रूप में हुई। 1999- 2000 में धोनी के साथ कई खिलाड़ियों का भविष्य बिहार की रणजी ट्रॉफी टीम के लिए तैयार हुआ। बिहार की टीम पहली और आखरी बार अंडर-19 कूच बिहार ट्रॉफी के फाइनल में पहुंची थी।

दिसंबर 1999 में कीनन स्टेडियम में बिहार का फाइनल में पंजाब के साथ मुकाबला हुआ था। लेकिन युवराज सिंह के 358 रन के तिहरे शतक की बदौलत पंजाब ने मैच पहली पारी के आधार पर जीत लिया। धौनी ने इस मैच में 84 रन की पारी खेली थी। टूर्नामेंट में धौनी के अलावा कप्तान विकास कुमार, मिहिर दिवाकर, आमिर हाशमी और रतन कुमार जैसे खिलाड़ी निकले जो बाद में राज्य के लिए रणजी ट्रॉफी में भी खेले। धौनी ने इसी के सिर्फ दो हफ्ते बाद रणजी ट्रॉफी में अपना डेब्यू किया था।

एम एस धौनी ने 2003-04 में काफी बढ़िया प्रदर्शन किया,  जिससे राष्ट्रीय चयनकर्ताओं की नजर उनकी ओर पड़ी । उस सत्र में पूर्वी क्षेत्र ने देवधर ट्रॉफी अपने नाम किया था। यह सत्र भारतीय घरेलू क्रिकेट में बिहार का आखिरी सत्र साबित हुआ, क्योंकि इसके अगले सत्र यानी 2004-05 से झारखंड के नाम से टीम रणजी ट्रॉफी में खेलने लगी और बिहार का नाम गायब हो गया। 2018-19 में बिहार की वापसी हुई थी। लेकिन 2003-04 के प्रदर्शन के आधार पर धौनी का चयन इंडिया ए टीम में जिंबाब्वे दौरे के लिए हुआ जो सफल रहा। इसके आधार पर धौनी भारत की वनडे टीम में शामिल हो गए। बांग्लादेश के खिलाफ दिसंबर 2004 में माही ने अपना पहला वनडे मैच खेला।

धौनी ने जल्दी ही भारतीय टीम में अपनी जगह पक्की कर ली। उनकी 123 गेंदों पर 148 रन की पारी ने सबका मन मोह लिया था। इसके बाद धौनी 2007 और 2011 का वर्ल्ड कप कैप्टन के तौर पर जीतकर भारतीय खेल प्रेमियों के सबसे चहेते खिलाड़ियों में से एक बन गए।

धौनी ने डेब्यू मैच में जमाया था अर्धशतक
12 जनवरी 2000 को कीनन स्टेडियम में असम के खिलाफ धोनी ने रणजी ट्रॉफी में डेब्यू किया। यह मैच बिहार ने 191 रन से जीता था। इसमें धोनी ने पहली पारी में 40 और दूसरी पारी में नाबाद 68 रन बनाए थे। कैप्टन सुनील ने भी 68 और 35 रन का योगदान किया था। बिहार के 258 और 343 के जवाब में असम की टीम 247 और 163 रन पर आउट हुई थी। यह भी दिलचस्प है कि इस मैच में पहली पारी में धौनी स्टंप हुए थे, तो उन्होंने ने भी अपना पहला शिकार स्टंप के रूप में ही किया था। गेंदबाजी में बिहार की ओर से अविनाश कुमार ने मैच में 10 और विकास कुमार ने 8 विकेट हासिल किए थे।

सुनील का दो दशक का कैरियर
दूसरी और सुनील कुमार का बल्ला भी खूब चला। 1999 -2000 के जिस मैच में सुनील ने धौनी को विकेटकीपर के रूप में मौका दिया था, उससे पहले ही सुनील लोकप्रिय हो चुके थे। सुनील का कैरियर 1984-85 में विजय मर्चेंट ट्रॉफी में शुरू हुआ। सुनील ने केवल 10 रन बनाए थे ।1985-86 में भी सुनील ने इसी टूर्नामेंट में त्रिपुरा के खिलाफ 21, बंगाल के विरूद्ध 93 और उड़ीसा के खिलाफ 53 रन की पारी खेली थी।
1987-88 में अंडर 17 विजय हजारे ट्रॉफी में सुनील ईस्ट जोन के मनोनीत उपकप्तान थे। लेकिन उनको कप्तानी का भी मौका मिला। पहला मैच सेमीफाइनल वेस्ट जोन के खिलाफ था। वेस्ट जोन की ओर से सचिन तेंदुलकर ने 175 रन बनाए। जबकि विनोद कांबली, जतिन परांजपे और जैकब मार्टिन भी उस टीम में शामिल थे। सुनील ने भी जवाब में 82 रन बनाकर ईस्ट जोन को फाइनल में पहुंचा दिया। फाइनल में ईस्ट जोन ने नॉर्थ जॉन को हराकर खिताब जीत लिया। इस मैच में भी सुनील ने 83 रन बनाए थे और उनका साथ सौरव गांगुली ने 67 रन बनाकर दिया था।

1988-89 में सुनील कूच बिहार ट्रॉफी की ईस्ट जोन टीम में थे और तब उन्होंने 116 रन की पारी खेली थी। उसी सत्र में एम ए चिदंबरम ट्रॉफी में सुनील कुमार को शेष भारत एकादश का कैप्टन बनाया गया। सुनील ने चयनकर्ताओं को निराश नहीं किया और 234 रन की दोहरी शतकीय पारी खेल डाली।

इसके बाद से सुनील कुमार का रास्ता सीनियर टीम में खुल गया। 1989-90 में सुनील ने त्रिपुरा के खिलाफ रणजी डेब्यू किया । वे बिहार के लिए लगातार 13 सत्रों में रणजी में खेले और कैप्टन भी रहे। एक सत्र सुनील ने झारखंड के लिए भी खेला।

सुनील ने जिस तरह 1989 में फरवरी और मार्च के महीने में कूच बिहार और चिदम्बरम ट्रॉफी में जोरदार बल्लेबाजी की थी, उससे उनका चयन अंडर 19 भारतीय टीम में हो जाता, लेकिन इंडिया टीम का चयन तब जनवरी में हो गया था। जनवरी और फरवरी 1989 में भारत अंडर 19 टीम पाकिस्तान के दौरे पर चली गया थी। इसलिए सुनील को आज भी इस बात का अफसोस रहेगा। अगर यह दौरा मार्च के बाद हुआ होता तो शायद उस टीम में सुनील भी होते और उनका कैरियर और भी बेहतरीन होता। 

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