पटना, 4 जून। जुगाड़ हो तो बिहार क्रिकेट जगत में कहीं न कहीं आसरा मिल ही जाता है। जुगाड़ किसी तरह का भी हो सकता है। फिलहाल हम जुगाड़ की परिभाषा या तरीके पर नजर नहीं डालेंगे हम नजर डाल रहे हैं बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) द्वारा आयोजित श्यामल सिन्हा अंतर जिला अंडर-16 क्रिकेट टूर्नामेंट में खेलने के लिए अपनाई गई जुगाड़ टेक्नोलॉजी। अभी तो एक ही मामला खेलढाबा.कॉम के नजर में आया है। ऐसे और भी मामले संभवत हो सकते हैं। तो आइए चलिए जानते हैं उस खिलाड़ी द्वारा अपनाई गई जुगाड़ टेक्नोलॉजी पर। खिलाड़ी का नाम हम आपको नहीं बता पायेंगे।
जिस खिलाड़ी ने जुगाड़ टेक्नोलॉजी के जरिए बिहार के क्रिकेट में इंट्री की है आंकड़े यह बताते हैं कि बिहार में उसने क्रिकेट न के बराबर ही खेला है। इस खिलाड़ी का आधार कार्ड है गंगा पार के जिला में। इस जिला में तेलशोधक कारखाना है। सूत्रों से मिली खबर के अनुसार इस खिलाड़ी ने पहले अपने गृह जिला की टीम में इंट्री करने के लिए शायद हाथ-पैर मारा पर वहां दाल नहीं गल पाई। यह जिला उसका गृह जिला है या नहीं इस पर भी संदेह का पर्दा है।
उसके बाद वहां से पहुंचा बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के हेडक्वार्टर वाले जिला में। यहां इसकी एक क्लब में हो गई इंट्री। इंट्री कराई एक नामी क्रिकेट एकेडमी के कोच ने शायद! खबर तो यह है कि कुछ ले देकर। अंडर-16 टीम का सेलेक्शन ट्रायल हुआ। ट्रायल में हिस्सा लिया। ट्रायल मैच भी खेला। ट्रायल मैच के बाद इसने पैरवी शुरू की पर यहां भी ग्रीन सिग्नल दिखता नजर नहीं आया।
खिलाड़ी दूर दिल्ली से यहां पहुंचा था मन में कुछ ठान कर। इस बार कहीं न कहीं तो गोटी सेट कर लेना है और गोटी सेट हो गई बंदुक फैक्ट्री वाले जिला में। बंदुक फैक्ट्री वाला जिला काफी भारी भरकम है। वहां की अंडर-16 टीम में इंट्री हो गई। पहले मैच में खेल चुका है। प्रदर्शन अच्छा है, आगे भी खेलेगा, ऐसी उम्मीद है। खिलाड़ी गेंदबाज है। लाइव स्कोरिंग करने वाले एप क्रिकहीरोज पर इस खिलाड़ी का मैच देखेंगे तो बिहार में खेले गए मैचों में केवल बीसीए के हेडक्वार्टर वाले जिला में हुआ ट्रायल मैच ही दिखेगा। बाकी सारे आंकड़े दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम में हुए मैचों का है।
मामला यहीं तक नहीं रुकता है। एक खिलाड़ी और जिसने बीसीए के हेडक्वार्टर जिला में अंडर-16 टीम के ट्रायल मैच का सफर तय किया और उसे भी लगा कि यहां अब हमें आसरा नहीं मिलेगा तो बंदुक फैक्ट्री वाले जिला का रुख कर लिया। वह वहां की टीम में जगह बनाने में कामयाब हो गया। इस खिलाड़ी का गृह जिला सीमांचल में हैं। बैटर है और ओपनिंग करने में विश्वास रखता है।
सवाल यह उठता है कि यह तो केवल एक उदाहरण है। ऐसे कितने हो सकते हैं। ऐसा इसीलिए है कि जिस जिला में सेलेक्शन ट्रायल के जरिए टीम बनेगी। अपना घरेलू मैच नहीं होगा वहां तो यह जुगाड़ टेक्नोलॉजी का कभी अंत नहीं होगा। ट्रायल और ट्रायल मैच के जरिए ही टीम का चयन हो पर घरेलू मैचों में किये प्रदर्शन से सेलेक्टेड प्लेयरों का। सही टीम बनाने के लिए जिला संघों को अपना घरेलू मैच भी समय पर कराने होंगे तथा बिहार क्रिकेट संघ को अपने घरेलू मैचों के जरिए टीम चयन पर ध्यान देना होगा। चूंकि बिहार क्रिकेट संघ (बीसीए) द्वारा बिना घरेलू मैचों में खेले प्लेयरों की इंट्री कराई जाती रही तो जिला संघ कहां पीछे रहने वाले हैं। अब तो देखना है कि इस मामले पर बीसीए कितना गंभीर होता है। खबर सूत्रों के अनुसार मगर है पुख्ता।