Home Slider बिहार के पास भी है विश्व का नंबर वन जैवलिन थ्रोअर पर….

बिहार के पास भी है विश्व का नंबर वन जैवलिन थ्रोअर पर….

by Khel Dhaba
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पटना। आजादी के बाद ओलंपिक इतिहास में भारतीय एथलेटिक्स की स्वर्णिम शुरुआत से आज पुरा देश गौरान्वित है तो वहीं खेल जगत फुले नहीं समा रहा है। जिसका कारण है टोक्यो ओलंपिक में भारत के नीरज चोपड़ा ने जैवलिन थ्रो स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत कर ओलंपिक में एथलेटिक्स में पहला एवं व्यक्तिगत स्पर्धा में दूसरा स्वर्ण पदक जीतने का इतिहास रच दिया।

हम बिहारवासी भी खुशी से झूम रहे हैं । लेकिन क्या आपको पता है कि अपने प्रदेश बिहार में भी विश्व का नंबर वन जैवलिन थ्रोअर समेत कई राष्ट्रीय पदक विजेता जैवलिन थ्रोअर हैं। जिन्हें भी उचित सुविधा, संसाधन, उपकरण, प्रशिक्षण आदि सुविधाएं और हम सबो का साथ मिले तो यहां से भी आने वाले दिनों में नीरज चोपड़ा जैसी कई उपलब्धि हासिल की जा सकती हैं। जी हां ,ऐसे ही जैवलिन थ्रोअर का गढ़ है जमुई जिला ।जहां से अंतरराष्ट्रीय समेत राष्ट्रीय जैवलिन थ्रोअर उभर कर सामने आये हैं।

तो आइए जानते हैं उनके बारे में
जमुई शहर के केकेएम कॉलेज पर सुबह-शाम जमघट लगता है। वे सभी इसी ग्राउंड पर अभ्यास करते हैं। उन्हें ट्रेनिंग देते हैं सीनियर खिलाड़ी आशुतोष कुमार सिंह। आशुतोष कुमार सिंह खुद एक राष्ट्रीय भाला फेंक खिलाड़ी हैं। वे जिलाधिकारी जमुई कार्यालय में कार्यरत हैं। उन्होंने जूनियर लेवल के साथ-साथ सर्विसेज एथलेटिक्स प्रतियोगिता की जैवलिन स्पर्धा में कई पदक अपने नाम किये हैं। आशुतोष कुमार सिंह के शिष्यों में शामिल हैं अंडर-18 में दुनिया के नंबर एक जेवलिन थ्रोअर रहे सुदामा कुमार यादव, राष्ट्रीय पदक धारी रोहित सिंह, अंजनी कुमारी, अरुण मोदी, राज कुमार गुप्ता।

केकेएम कॉलेज पर चलने वाले इस ट्रेनिंग सेंटर में लगभग 35 एथलीट अभ्यास करते हैं जिसमें से लगभग 20 जैवलिन थ्रो के खिलाड़ी हैं। बाकी में से ज्यादा थ्रोअर इवेंट के ही खिलाड़ी हैं। इस ग्राउंड पर प्रैक्टिस करने वाले सुदामा कुमार यादव अंडर-18 कैटेगरी में दुनिया के नंबर वन जैवलिन थ्रोअर रह चुके हैं। चोट के कारण उनके कैरियर पर थोड़े दिन के ब्रेक लग गया और अब वे वापसी करने को तैयार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय जूनियर लेवल की प्रतियोगिओं में स्वर्ण समेत कई पदक जीते हैं। उन्होंने मीट रिकॉर्ड भी बनाए हैं। वे भारतीय टीम के सदस्य रह चुके हैं। भारतीय टीम के साथ जब वह हांगकांग एक इवेंट में हिस्सा लेने पहुंचे थे तो उनका लक्ष्य स्वर्ण जीत टोक्यो ओलंपिक के और करीब पहुंचना था। सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन इवेंट से पूर्व थ्रो चेक के दौरान पैर फिसल जाने से घुटने में फ्रैक्चर हो गया इसके बाद उनके कैरियर पर ब्रेक लग गया पर वे अब वापसी कर रहे हैं। सुदामा कुमार यादव को अपने इलाज के लिए कई जगहों पर गुहार लगानी पड़ी आखिर में फिल्म अभिनेता सोनू सूद ने उनकी सुनी और इलाज हो पाया।

अंजनी कुमारी ने खेलो इंडिया, एसजीएफई समेत राष्ट्रीय जूनियर एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं को मिला कर अबतक कुल 20 पदक जीते हैं। इनमें कई स्वर्ण पदक शामिल हैं। उसी तरह से रोहित सिंह ने एसजीएफई में अरुण मोदी और राज कुमार गुप्ता ने स्कूली से लेकर राष्ट्रीय जूनियर प्रतियोगिताओं में पदक जीते हैं।

ये सारे खिलाड़ी अपनी मेहनत और अपने बलवूते इस मुकाम तक पहुंचे हैं। इन्हें कोई सरकारी मदद नहीं मिलती है। बस एक मदद है वह कॉलेज का ग्राउंड जो सरकारी है। बाकी सारा खर्च अपना। खिलाड़ियों ने कई बार मदद के लिए जिला प्रशासन के दरवाजे खटखटाये पर कोई समाधान नहीं निकला।

इन जैवलिन थ्रोअर के अलावा पूर्वी चंपारण के मोहित, भागलपुर के मीनू सोरेन समेत कई अन्य हैं। मीनू सोरेन ने राष्ट्रीय स्कूली एथलेटिक्स प्रतियोगिता में स्वर्ण समेत कई अन्य पदक अपने नाम किये हैं। उन्होंने जूनियर लेवल की राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में कई पदक जीते हैं।

इन खिलाड़ियों को पदक जीतने के बाद सरकार सम्मानित कर चंद रुपए देकर अपना पल्ला झाड़ लेती है पर इन्हें आगे बढ़ने के लिए जो संसाधन चाहिए वह उपलब्ध कराने में अबतक विफल रही है। अगर इन्हें सही से संसाधन और बेहतर ट्रेनिंग सुविधा मुहैया कराई जाए तो ये भी नीरज चोपड़ा बन सकते हैं।

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