नईदिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए खिलाड़ियों का चयन कई कारकों पर निर्भर करता है और यह व्यक्तिगत प्रदर्शन के स्कोर की तुलना करना जितना सामान्य नहीं है। अदालत ने कहा कि चयन प्रक्रिया को लेकर दायर होने वाले मामलों से खिलाड़ियों की तैयारी और प्रदर्शन बाधित और प्रभावित हो सकता है।
देश की राष्ट्रमंडल खेलों की टीम में जगह नहीं मिलने के खिलाफ टेबल टेनिस खिलाड़ियों मानुष शाह और स्वस्तिका घोष की याचिका खारिज कर अदालत ने जोर देते हुए कहा कि देश का प्रतिनिधित्व करने और भाग लेने और उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए एक खिलाड़ी के पास शारीरिक और साथ ही मानसिक और भावनात्मक मजबूती और चपलता होनी चाहिए और इस प्रकार यह महत्वपूर्ण है कि उनके दिमाग में कोई अनिश्चितता नहीं होनी चाहिए।
याचिकाकर्ताओं ने आग्रह किया था कि राष्ट्रमंडल खेल 2022 के लिए टेबल टेनिस टीम के लिए चार चयनित खिलाड़ियों की सूची में उनके नाम शामिल करने का भारतीय टेबल टेनिस महासंघ (टीटीएफआई) को निर्देश दिया जाए।
अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में संबंधित अधिकारियों ने पूरे मामले पर गौर किया और सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने के लिए भेजे जाने वाले नामों को अंतिम रूप दिया और वे “प्रशासकों की समिति (सीओए) और चयन समिति के नजरिए पर अपने विचार को नहीं थोप सकते’’ और ‘‘सुपर चयनकर्ता’’ नहीं बन सकते।
न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने पिछले सप्ताह पारित आदेश में कहा, ‘‘एक राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने और अंतरराष्ट्रीय खेलों में भाग लेने, प्रदर्शन करने और उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए एक खिलाड़ी के पास न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और भावनात्मक मजबूती और चपलता होनी चाहिए। इस प्रकार यह महत्वपूर्ण है कि खिलाड़ियों के मन में कोई अनिश्चितता नहीं होनी चाहिए। इस तरह के मुकदमे खिलाड़ियों की तैयारी और प्रदर्शन को बाधित और प्रभावित कर सकते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए मैं समझता हूं कि वर्तमान याचिकाओं में कोई सार नहीं है। इसलिए सभी लंबित आवेदनों के साथ याचिकाएं खारिज की जाती हैं।”
अदालत ने कहा, ‘‘अदालत को यह ध्यान रखना होगा कि चयन समिति / विशेषज्ञ समिति को देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए खिलाड़ी का चयन करने का निर्णय लेते समय कई कारकों को ध्यान में रखना होगा। यह व्यक्तिगत प्रदर्शन के आधार पर अंकों की तुलना करने जितना आसान नहीं हो सकता। वर्तमान मामले में भी प्रशासक की समिति ने विभिन्न कारकों को आंका है और इसलिए यह अदालत न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति के प्रयोग में खुद को असमर्थ पाती है।’’
अदालत ने कहा कि खेल से संबंधित मामलों में न्यायिक समीक्षा की शक्ति का प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिए जब दुर्भावना का आरोप हो और वर्तमान मामले में प्रशासकों की समिति द्वारा लिए गए निर्णय में किसी भी मनमानी या दुर्भावना का पूर्ण अभाव था।
अदालत ने एक अन्य मामले में पारित पहले के आदेश पर भी विचार किया और कहा कि अगर न्यायिक समीक्षा की शक्तियों को ऐसे मामलों में लागू किया जाता है तो यह खेल पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।